134वें सृजन संवाद में उपन्यासकारों की लेखन यात्रा
जमशेदपुर: जमशेदपुर की साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ‘सृजन संवाद’ की 134वीं संगोष्ठी का आयोजन स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर किया गया। शुक्रवार शाम छ: बजे कवि- पत्रकार सारंग उपाध्याय तथा कहानीकार-उपन्यासकार अनघ शर्मा प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित थे। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. नेहा तिवारी एवं डॉ मंजुला मुरारी ने किया। वैभव मणि त्रिपाठी ने स्ट्रीमयार्ड संभाला। स्वागत करते हुए ‘सृजन संवाद’ कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. विजय शर्मा ने बताया संस्था नए और स्थापित दोनों रचनाकारों को मंच उपलब्ध कराती है इसी सिलसिले में आज दो ऐसे उपन्यासकार उपस्थित हैं, जिनका पहला उपन्यास प्रकाशित हुआ है। सृजन संवाद के मंच से दोनों अपनी लेखन यात्रा दर्शकों/श्रोताओं से साझा करेंगे। मस्कट से अनघ शर्मा तथा भोपाल से सारंग उपाध्याय अपने उपन्यास अंश का पठ करते हुए अपनी लेखन यात्रा बताएँगे। आज की गोष्ठी की में पाटकर कॉलेज, गोरेगाँव के छात्र भी जुड़े थे।
डॉ. नेहा तिवारी ने सारंग उपाध्याय का परिचय देते हुए बताया कि वे न केवल कवि हैं, वरन उनके उपन्यास में भी कविताएँ पिरोई हुई हैं। उपन्यास ‘सलाम बांम्बे वाया वर्सावा डोगरी’ बंबई के एक खास तबके के जीवन की उथल-पुथल को दिखाता है। सारंघ उपाध्याय ने बताया कि यह उपन्यास पहले तद्भव पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। पत्रिका के संपादक अखिलेश के उत्साहजनक शब्दों से प्रेरित हो कर इसे किताब की शक्ल में राजकमल ने प्रकाशित किया है। बंबई में काफ़ी समय बिताने और वहाँ की जिंदगी को करीब से देखने के बाद उन्होंने यह उपन्यास लिखा है जिसे पाठकों की भरपूर प्रशंसा मिल रही है। उपन्यास मछुआरों के जीवन पर केंद्रित है। छूँकि सारंग पत्रकार हैं वे उसी नजरिए से चीजों को देखते हैं।
अगले वक्ता अनघ शर्मा का परिचय देते हुए डॉ. मंजुला मुरारी ने बताया, अनघ शर्मा मूलत: कहानीकार हैं, उनके दो कहानी संग्रह ‘आवाजें काँपती रही’ तथा ‘धूप की मुरेड़’ प्रकाशित हैं। ‘नीली दीवार की परछाइयाँ’ उनका पहला उपन्यास है। शिक्षिण के पेशे से जुड़े अनघ शर्मा को उन्होंने अपनी लेखन यात्रा साझा करने केलिए आमंत्रित किया।
अनघ शर्मा ने बताया उन्होंने जब कई कहानियाँ लिख ली तो कई दोस्तों तथा रचनाकारों ने दबाव बनाना शुरु किया कि वे अब उपन्यास लिखें। पहले उन्होंने कहानी ही लिखी मगर रचनाकार दोस्त प्रत्यक्षा ने उसे उपन्यास बनाने का सुझाव दिया और जब इस प्रक्रिया में वे अटकने लगे तो प्रत्यक्षा ने महत्वपूर्ण सुझाव दे उसे आगे बढ़ने में मदद की। अनघ शर्मा ने उपन्यास के शुरुआती अंश तथा अंत के दो संक्षिप्त पत्र पढ़ कार सुनाए। उपन्यास मुख्य रूप से तीन पात्रों को लेकर चलता हैअ उर कैंसर जैसे रोग से जुड़ा है।
दोनों रचनाकारों ने स्जोताओं/दर्शकों के प्रश्नों के उत्तर दिए। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. विजय शर्मा ने दोनों वक्ताओं के वक्तव्य पर टिप्पणी करते हुए उनके भविष्य की शुभकामना की।
कार्यक्रम में सृजन संवाद फ़ेसबुक लाइव के माध्यम में देहरादून से सिने-समीक्षक मन मोहन चड्ढा, दिल्ली से रमेश कुमार सिंह, बनारस से जयदेव दास, जमशेदपुर से करीम सिटी-मॉसकॉम प्रमुख डॉ. नेहा तिवारी डॉ.क्षमा त्रिपाठी, डॉ. मीनू रावत, गीता दूबे, आभा विश्वकर्मा, राँची से तकनीकि सहयोग देने वाले ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी, गोरखपुर से पत्रकार अनुराग रंजन, बैंग्लोर से पत्रकार अनघा, लखनऊ से डॉ. मंजुला मुरारी, डॉ. राकेश पाण्डेय, भोपाल से सुदीप सोहनी, चितरंजन से डॉ. कल्पना पंत, गोरेगाँव से कॉलेज के कई छात्र आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे। जिनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और समृद्ध हुआ। ‘सृजन संवाद’ की दिसम्बर मास की गोष्ठी (135वीं) की घोषणा के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।