हाथी के दांत बनकर रह गया डपिंग कचड़े से सॉलिड वेस्ट व फूलदान बनाने की नप का योजना, किसानों के खेतों तक नही पहुच रहा सॉलिड वेस्ट खाद

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सासाराम/बिक्रमगंज /रोहतास (  दुर्गेश किशोर तिवारी):-भारत सरकार के नगर विकास विभाग ने स्वच्छता सर्वेक्षण 2021के तहत बिक्रमगंज नगर परिषद के कार्यों की सराहना करते हुए इसे सबसे बेहतर काम करने के लिए पिक्चर ऑफ द डे के रूप में सम्मान से नवाजा गया था।हालांकि इसके पूर्व के वर्षो में यह नगर स्वच्छता अभियान में फिसड्डी भी साबित रहा।जिसकी काफी किरकिरी भी हुई थी।दामन पर लगे दाग को मिटाने के लिए केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना नगर निगम, नगर परिषद व नगर पंचायत में कचरा प्रबंधन को लेकर उसे सॉलि़ड वेस्ट निर्माण कर किसानों के खेत का उत्पादन बढ़ाने और नगर की आमदनी बढ़ाने के लिए बनाई गई थी।जिसे नगर परिषद ने बिक्रमगंज के काव नदी पुल के समीप लाखो की लागत से कचरा प्रबंधन केंद्र बनाकर इस योजना को अमलीजामा पहनाने का कार्य किया गया।शहर में कचरा प्रबंधन एक सिर दर्द है। इसके निष्पादन के लिए सरकार की योजना थी कि कचरा प्रबंधन से सॉलिड वेस्ट खाद का निर्माण कर आमदनी बढ़ाई जायेगी। अधिकारियों की मनमानी के कारण यह योजना सफेद हाथी के दांत बनक रह गया है। प्रति माह लाखो रुपए रखरखाव पर खर्च किए जाते हैं लेकिन इसके आमदनी ना के बराबर है।नगर परिषद ने कचड़ा से सॉलिड वेस्ट खाद व बेकार प्लास्टिक के बोतलों एवं डब्बे से फूलदान बनाने की योजना बनाया तथा लाखो की लागत से बने भवन में इसका बाजारीकरण करने के उद्देश्य से धरातल पर उतार सॉलिड वेस्ट खाद से लेकर गुलदस्ता बनाने की योजनाओं को मूर्तरूप भी दिया।जिसकी सराहना किसानों समेत नगरवासियों ने भी किया तथा सॉलिड वेस्ट बनने से आसपड़ोस के किसानों में एक आस भी जगी थी कि अब खेतो को जैविक खाद मिलेगा और फसल की उत्पादकता भी बढ़ेगी।लेकिन नगर परिषद की उत्सुकता धीरे धीरे उदासीनता की ओर बढ़ती चली गई व शिथिलता में तब्दील हो जाने से सभी योजनाएं फिलहाल खटाई में पड़ते दिखने लगी है।वही इस योजना के तहत बेरोजगारों के हाथ मिलने वाले रोजगार भी छीन गया।लाखो की लागत से बना कचड़ा संग्रह प्रबंधन केंद्र इन दिनों मजदूरों की चहलकदमी नही होने से वीरान सी पड़ गया है।जबकि सूबे की सरकार ने भी जैविक खाद बनाने पर काफी जोर दिया है।वावजूद योजनाओं को गति देने के बजाय शहर के मुख्य मार्गो के किनारे जगह जगह की जा रही कचड़ा डपिंग से न केवल राहगीरों को फैल रहे दुर्गंध से चलना फिरना दुस्वार हो गया है।बल्कि स्वास्थ्य भी प्रभावित होने के साथ महामारी फैलने की आशंका भी तेजी से बढ़ती जा रही है।जिससे शहर की स्वच्छता अभियान को धक्का लगने लगा है।जबकि जिस कूूड़े कचरे को हटाना और उसे रखना भी नगर परिषद के लिए समस्या थी।वही समस्या जैविक खाद के उत्पादन के जरिये आमदनी में बदलते नजर आई थी।इनके दम पर नगर परिषद प्रत्येक महीना में हजारो कमाने की लक्ष्य निर्धारित किया था। जिसकी शुरुआत भी तत्कालीन कार्यपालक पदाधिकारी प्रेम स्वरूपम के कार्यकाल में की गई।परंतु शुरुआत होने के साथ ही यह योजना अपना दम तोड़ दिया।किसानों के खेत तक वर्मी कंपोस्ट खाद पहुचाने एवं जैविक खाद की उत्पादकता बढ़ाने के लिए घर से निकलने वाले गीले व सूखा कचरे को सफाई कर्मी गाड़ी में डालकर प्रबंधन केंद्र यूनिट तक पहुचाने की जगह शहर के विभिन्न मुख्य मार्ग के किनारे डपिंग कर दे रहे है।जिससे फैलते दुर्गंध से आनेजाने वाले लोगो के लिए सिरदर्द बनते जा रहा है तथा कई बीमारियों को खुला आमंत्रण दे रहा है।वही कचरा से सॉलिड वेस्ट एवं फूलदान तैयार करने की योजना के बंद हो जाने से किसानों के खेतों तक सॉलिड वेस्ट पहुचने की आस धराशायी हो गई है।जबकि प्लास्टिक के डब्बे से फूलदान बनाकर बाजारीकरण करने की नीति भी नप की अंधर में लटक गई है।बताया जाता है कि नगर परिषद बिक्रमगंज के द्वारा स्वछता व पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के अन्तर्गत प्लास्टिक बोतल से निर्मित फूलदान का प्रयोग पौधारोपण में करते हुए पुष्प वाटिका का निर्माण किया जा रह था।ताकि  पर्यावरण स्वच्छ और सुंदर बना रहे ।वही ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया के तहत गीला एवं सूखा कचरा के प्रसंस्करण हेतु केंद्रीयकृत पीट बायो कम्पोस्टिंग के तहत जीवनोदक जैविक खाद का निर्माण कराया जा रहा था।जिसे कचरा प्रसंस्करण स्थल पर कंपोस्ट पीट में गीले कचरे से निर्मित जीवनोदक जैविक खाद का वितरण भी किसानों के बीच किया गया।इस योजना से जहां तहां डपिंग की जा रही गिला व सूखा कचरा के उठाव से नगर की स्वच्छता में चार चांद लगते वही नगर परिषद की आमदनी भी बढ़ती बल्कि बेरोजगरो को रोजगार भी मिलते।लेकिन जैविक खाद के जरिये किसानों के खेतों में फसल की उत्पादकता शक्ति को बढ़ाने एवं पौधरोपण के लिए फूलदान बनाने की नगर परिषद की योजना निर्माण के साथ ही बंद हो गई।जिससे मजदूरों के हाथों को मिलने वाले रोजगार भी बेरोजगार हो गए है।वही जैविक खाद का उत्पादन नही होने से किसानों के खेतो को सॉलिड वेस्ट खाद मिलने की आस भी अब टूटती जा रही है।बताते चले कि यहां चार यूनिट बनाये गए है ।प्रत्येक यूनिट को बनाने में करीब 7 लाख पचास हजार लागत खर्च आया है। यानी सभी चारों पीठ का लगभग तीस लाख रुपया लागत है। उसे चलाने के लिए प्रत्येक महीने करीब सात लाख महीने का खर्च आ रहा था।यहां 5 से 6 टन गीला कचरा रोजाना आ रहा था। जिससे हजारों बैग जैविक खाद का उत्पादन होने की संभावना थी।जिसे बाजार में छह रुपया प्रति किलो के हिसाब से बिक्री किया जाना था।

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