मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम ‘आदर्श पुरुष’ थे : मुक्ति नारायण स्वामी
बिक्रमगंज/रोहतास (संवाददाता ):- प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी कहा जाता है । पुराणों में लिखा है कि प्रभु श्री राम के रूप में भगवान विष्णु ने ही धरती पर अवतार लिया था , ताकि संतजनों पर बढ़ रहे राक्षसी अत्याचार को खत्म किया जा सके । ये सारी बाते काराकाट प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत मुंजी के निज ग्राम डिहरा (दुआरी) में शिव प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव सह श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के दौरान श्री लक्ष्मी प्रपन्न श्री जीयर स्वामी जी महाराज के शिष्य श्री मुक्ति नारायण स्वामी जी महाराज ने श्रोताओं को कथा प्रवचन के दौरान बताया । उन्होंने प्रभु श्री राम के बारे में आगे वर्णन करते हुए बताया कि भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को गुरु पुष्य नक्षत्र , कर्क लग्न में अयोध्या के राजा दशरथ के घर हुआ । दशरथ की पहली पत्नी कौशल्या के पुत्र के रूप में प्रभु श्री राम जन्में और समस्त ऋषि मुनियों के जीवन में राक्षसी अत्याचारों का अंत हुआ । आगे वर्णन करते हुए कहा कि सवाल उठता है कि दूसरे राजाओं के राजकुमार की तरह श्री राम का जन्म हुआ लेकिन वो मर्यादा पुरुषोत्तम राम कैसे बने । कैसे वो मानव जाति के लिए असत्य पर विजय पाने वाले विजयी पुरुष बने । तुलसीदास जी ने लिखा है कि जब पृथ्वी पर रावण का अत्याचार बढ़ा और धर्म की हानि होने लगी तब भगवान शिव कहते हैं कि – राम जनम के हेतु अनेका । परम विचित्र एक तें एका ।।
जब जब होई धरम की हानि । बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी ।।
तब तब प्रभु धरि विविध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा ।। अर्थात असुरों के नाश हेतु और धर्म की रक्षा के लिए प्रभु तरह तरह के शरीरों में जन्म लेकर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं ।
श्री राम की जन्म कुंडली बताती है कि श्री राम की कुंडली में उच्च ग्रहों का अप्रत्याशित योग ही उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाता है । दरअसल राम को विष्णु के सातवें अवतार के रूप में जाना जाता है । इस अवतार में विष्णु ने सामान्य मानस की तरह व्यवहार किया और समाज में रहे । बिना किसी चमत्कारिक शक्ति के राम ने एक आम इंसान की तरह जिंदगी व्यतीत की और सामान्य जन मानस के लिए नए उदाहरण स्थापित किए । देखा जाए तो राम ने किसी भी लीक को नहीं तोड़ा । वो एक आदर्श व्यक्ति के तौर पर समाज के हर वर्ग और व्यक्ति के साथ खड़े दिखे । भरत और शत्रुघ्न के लिए आदर्श भाई के रूप में श्री राम दिखे । पिता के लिए आदर्श बेटा बनकर राम ने नई सुकीर्ति गढ़ जिसके तहत कहा गया कि प्राण जाए पर वचन न जाए । पिता की बात को रखने के लिए राम ने वनगमन तक किया और अनेक दुख सहे और नए समाज को भी इससे प्रेरणा मिली ।प्रजा के लिए राम सदैव नीति कुशल राजा के तौर पर दिखे । जनता की रक्षा करनी हो या नए समाज की परिकल्पना राम ने सदैव उच्च विचारों से प्रेरित होकर न्याय प्रिय राजा के जैसा व्यवहार किया । तभी तो राजतिलक से पहले ही जब राम को वनवास का आदेश मिला तो पूरी अयोध्या नगरी एक साथ रो पड़ी ।
लक्ष्मण के लिए भावनात्मक भाई : प्रभु श्री राम : श्री मुक्ति नारायण स्वामी जी महाराज ने कथा के दौरान कहा कि लक्ष्मण सदैव राम के लिए चहेते भाई की तरह रहे । वो जब मेघनाद के वार से अचेत हुए तो सबसे पहले राम ही घबराकर रुदन करने लगे थे । तब एक व्याकुल और अधीर भाई की छवि राम के भीतर दिखाई दी जिसे लौटकर पिता और भाई की पत्नी को जवाब देना था । कथा के दौरान प्रवचन स्थल पर हजारों-हजार की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी हुई थी ।