गीता चौबे गूंज की किन्नरों पर लिखी गई पुस्तक बंद घरों में रोशनदान बहुत ही प्रेरणादायक : रेणु झा

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जमशेदपुर:- गीता चौबे गूंज द्वारा लिखी गई पुस्तक बंद घरों के रोशनदान समाज के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है। रांची की रहने वाली साहित्यकार और ख्यातिप्राप्त कवयित्री रेणु झा ने बताया की लेखिका, गीता चौबे गूंज द्वारा लिखित उपन्यास “बंद घरों के रोशनदान” को पढ़ा। कहानी के माध्यम से लेखिका ने समाज के एक विशेष वर्ग का सामाजिक, मानसिक और पारिवारिक दशा का सटीक विश्लेषण किया है। किन्नरों के जज्बातों सहलाने की कोशिश की है।उनका कहना है कि जब न्यायालय ने किन्नरों को हर क्षेत्र में बराबरी का हक दिया है तो समाज या परिवार उन्हें हर खुशी से महरूम क्यों रखता है। यहाँ तक कि बच्चे के सगे माता-पिता भी उसे अपनाना नहीं चाहते। कितना भी काबिल इंसान हो रूप,रंग, गुणों से भरपूर लेकिन जैसे ही किन्नर शब्द उससे जुड़ता है,उसका अस्तित्व ही खत्म हो जाता है सभी के नजरों में हाथ नचाकर ताली बजाने वाले ही नजर आते हैं। उसकी भावना, संवेदना वहीं ध्वस्त!

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कहानी इंदु नामक एक संघर्ष शील महिला से शुरू होती है,तीन बेटियां परी,रानी और सुहाना जो एक किन्नर थी,उसके जन्म के बाद सुहाना के पिता ने मां और तीनों बच्चियों का त्याग कर दिया।इंदु अपनी तीनों बच्चियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए दूसरे शहर में आ बसी और स्वयं कमाकर तीनों बच्चियों का भविष्य बनाने में जुट गई। इस पुरूष प्रधान समाज में अकेले रहकर तीन बेटियों की परवरिश और वो भी सुहाना के रहस्यों को छुपाकर करना आसान नहीं था।परी का ब्याह हो गया। रानी अभिनेत्री बनने की इच्छा में मुम्बई चली गई। वहां वो एड्स जैसी बीमारी की शिकार हो गई और लौटना नहीं चाहती, लेकिन सुहाना एक मेडिकल छात्रा थी उसका एक दोस्त मोहित खन्ना जिसने बड़ी मशक्कत से परी को लौटाया। मोहित सुहाना से बेइंतहा प्यार करता था लेकिन जैसे ही पता चला वो किन्नर है उसने उसे ठुकरा दिया। सुहाना के जज्बात तहस नहस हो गए। मोहित की पत्नी ने जब एक संतान को जन्म दिया वो किन्नर हुआ और सदमे में मोहित की पत्नी चल बसी।बच्ची का जन्म सुहाना के हाथ से हुआ था सो मोहित ने क्षमा मांगते हुए बच्ची सुहाना को दे दिया। सुहाना ने उसे दिल से अपनाया और उसका नाम मोहिनी रखा।

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सुहाना सब कुछ समझती थी एक किन्नर को किन परिस्थितियों से गुजरना होगा और सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए मोहिनी को धीरे-धीरे सभी समस्याओं से अवगत कराया और हौसले से उसे समस्याओें का सामना करना सिखाया, धीरे धीरे सारे रिश्ते नातों से भी अवगत करवाया ताकि किसी उलझन से वो घबराए नहीं। यह कहानी के माध्यम से लेखिका ने समाज को सुंदर संदेश देने की कोशिश की है कि किन्नर के जन्म में उनका कोई दोष नहीं। उन्हें जीने का उतना ही हक है जितना हम आम लोगों को। उनके अंदर भी प्रेम, संवेदना, भावना वैसे ही पलते हैं जैसे आम लोगों के! उन्हें भी सुख दुख का अहसास है। उन्हें भी प्यार करने, खुश होने का बराबर का हक है। जब हम अपने दिमाग रूपी रोशनदान को खोलेंगे तभी हम उन्हें दिल से अपनाएंगे यानी वायु का अवागमन होगा तभी वातावरण शुद्ध और खुशनुमा होगा।

हालांकि कहानी समाज की सोच से हटकर है लेकिन लेखिका ने एक ज्वलंत समस्या का समाधान दिखाने की कोशिश की है। कहानी में किन्नरों के प्रति कसावट काबिले-तारीफ है। कहानी के हर किरदार ने अपना प्रभाव छोड़ा है।पुरूष प्रधान समाज और परिवार पर कटाक्ष, लेखिका ने बड़ी सहजता से की है। कहानी के कथ्य ने शानदार छाप छोड़ी है पाठकों के मन पर! कहानी आकर्षित करती है अपनी ओर और यही लेखिका की सफलता है। यूं भी लेखिका गीता चौबे गूँज हर विधा में पारंगत हैं। कहानी में पाठकों को बांधने की क्षमता के लिए मैं लेखिका को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं। कहानी ने मुझे बहुत प्रभावित किया। गीता सदा लिखती रहे और लेखनी की गूँज एक शक्ति के रूप में फैलती रहे। रेणु झा रेणुका, रांची,झारखंड।

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