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कोचस /रोहतास (संवाददाता ):- आज शिक्षा मे ह्रास का प्रभाव समाज के निचले तबकों, वंचित वर्ग, महिलाओं तथा ग्रामीण पृष्ठभूमि के होनहार एवं कुशाग्र बुद्धि के बच्चों पर पड़ रहा है। समाज का उच्च व मध्यम वर्ग शिक्षा को आयात-निर्यात के माध्यम से कुछ हद तक भरपाई कर ले रहा है लेकिन बहुसंख्यक ग्रामीण (कुछ शहरी) समाज वंचित है। इस वंचना ने न केवल शिक्षा को संकुचित किया है बल्कि लोकतांत्रिक समाज में लोगों की भागीदारी एवं अवसर को सीमित भी किया है। 1980 के पूर्व तथा 1990 तक के दशक के बीच भारत में आयोजित होने वाली सेवाओं की परीक्षाओं विभिन्न पदों की जांच पड़ताल तथा विश्लेषण किया जाय तो ज्यादा भागीदारी ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़े लोगों की थी ध्यान रहे तब ग्रामीण साक्षरता का स्तर वर्तमान स्तर से कम था लेकिन वर्तमान समय में यह भागीदारी व अवसर निरंतर कम होता जा रहा है ऐसा क्यों ? विचार का प्रश्न है।बचे खुचे शिक्षकों से सरकार तथा नियोजकों ने मकान गणना, जनगणना, पशु गणना,पोलियो उन्मूलन,आर्थिक गणना,चुनाव मतदाता सूची पुनरीक्षण इत्यादि कार्यों में सहयोग लेने लगे।फलत: शिक्षा की स्थिति और दयनीय हो गई।आर्थिक सम्मपन व्यक्ति निजी स्कूल की तरफ ध्यान दे रहे है।जिसे चलते सरकारी स्कूल की इस्थिति बिगडती जा रही हैं।

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