धनतेरस पर करें धन्वंतरि व कुबेर की पूजा
बिहार / झारखंड /पंडित सुधांशु तिवारी (आधत्मिक धर्म गुरू) :-हिंदू पंचांग के अनुसार, धनतेरस का त्योहार कार्तिक मास के त्रयोदशी को मनाया जाता है। त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत भी रखा जाता है। धनतेरस को धन त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन देवताओं के वैद्य धन्वंतरी की जयंती मनाई जाती है। धनतेरस के दिन सोना, चांदी व अन्य वस्तुओं की खरीदारी करना लाभकारी माना गया है।
इस साल धनतेरस के त्योहार को लेकर बहुत कन्फ्यूजन है. कुछ लोग 22 अक्टूबर को धनतेरस मनाने की बात कर रहे हैं तो कुछ 23 अक्टूबर को. इस विषय में अयोध्या के ज्योतिषाचार्य पंडित सुधांशु तिवारी ने विस्तार से जानकारी दी है.ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पंच दिवसीय महापर्व 22 अक्टूबर शनिवार से आरंभ होगा. इस साल धनतेरस का त्योहार दो दिवसीय होगा. देवताओं के प्रधान चिकित्सक भगवान धनवंतरी की जयंती के रूप में यह पर्व मनाया जाता है. धनतेरस के दिन सोने, चांदी के आभूषण और धातु के बर्तन खरीदने की परंपरा है. शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि इससे घर में सुख समृद्धि बनी रहती है, संपन्नता आती है और माता महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं.
इस बार धन त्रयोदशी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी शनिवार को शाम 4 बजकर 13 मिनट पर लग रही है और 23 अक्टूबर रविवार को शाम 4 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. इस अवसर पर अधिकांश लोग शुभ मुहूर्त में अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुरूप वस्तुएं खरीदते हैं. इसमें भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति, सोने-चांदी के आभूषण, धातु के बर्तन, श्रीयंत्र और कुछ विशेष चीजें जैसे कि वाहन, जमीन, फ्लैट आदि शामिल हैं.
धनतेरस की पूजा 22 अक्टूबर को ही करें
पंडित सुधाःशु तिवारी के मुताबिक, धनतेरस की पूजा 22 अक्टूबर यानी शनिवार को की जानी चाहिए. धनतेरस पर लक्ष्मी मां और कुबेर की पूजा त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल में की जाती है. इस साल त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त 22 अक्टूबर को ही बन रहा है. इस वजह से धनतेरस या धन त्रयोदशी की पूजा 22 अक्टूबर को करनी चाहिए. 22 अक्टूबर को धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07 बजकर 01 मिनट से रात 08 बजकर 17 मिनट तक रहेगा. आपके पास धनतरेस की पूजा के लिए एक घंटे 15 मिनट का समय रहेगा. शुभ मुहूर्त में धनतेरस की पूजा करने मात्र से धन लक्ष्मी पूरे वर्ष हमारे यहां निवास कर सुख समृद्धि प्रदान करती हैं तथा पूजा अर्चना करने मात्र से आने वाले कष्टों का निवारण स्वतः हो जाता है.
धनतेरस पर खरीदारी कब करें?
धनतेरस पर खरीदारी आप 22 अक्टूबर और 23 अक्टूबर दोनों ही दिन कर सकते हैं. लेकिन त्रयोदशी तिथि का ध्यान रखते हुए शनिवार को शाम 4 बजकर 13 मिनट के बाद और 23 अक्टूबर रविवार को शाम 4 बजकर 45 मिनट से पहले ही खरीदारी करें. हालांकि, अगर आप वाहन या लोहे का सामान खरीद रहे हैं तो रविवार को ही खरीदारी करें क्योंकि शनिवार के दिन लोहे की चीजें खरीदना शुभ नहीं माना जाता है.
धनतेरस पूजन मुहूर्त 2022-
22 अक्टूबर को धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07 बजकर 01 मिनट से शुरू होगा, जो कि राच 08 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। इस दिन पूजन की अवधि लगभग सवा घंटे की है। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त लक्ष्मी पूजन करने से सुख-समृद्धि व खुशहाली की प्राप्ति होती है।
धनतेरस की पूजन विधि
अयोध्या के ज्योतिषाचार्य पंडित सुधांशु तिवारी के मुताबिक, धनतेरस के दिन प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व स्नान करने के पश्चात शुद्ध हो जाएं तथा धनतेरस का पूजन प्रदोष काल में माना जाता है. ऐसा भी कहा गया है कि प्रदोष काल में धनतेरस के दिन भेंट की हुई सामग्री से अकाल मृत्यु नहीं होती इसलिए हमें चाहिए कि भगवान का विधि विधान से पूजन करें.
धनतेरस की पूजन विधि इस प्रकार है. प्रदोष काल में एक चौकी के ऊपर लाल वस्त्र बिछा दें तथा उस पाटे पर भगवान गणेश, कुबेर, धन्वंतरि और लक्ष्मी जी को विराजमान करें तथा साथ ही साथ एक करमांग दीपक घी का भर कर प्रज्वलित करे. एक कलश स्थापित करें. उस पर नारियल रखा हो तथा पांच प्रकार के पत्तों से शोभायमान हो और कंकू अबीर गुलाल सिंदूर हल्दी और चावल तथा पचरंगी धागा, जनेऊ थाली में स्थापित कर भगवान का विधि विधान से पूजन करना चाहिए.
सर्वप्रथम हाथ में सुपारी चावल कंकू अबीर गुलाल सिंदूर हल्दी और एक पुष्प हाथ में रखे भगवान का संकल्प ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: कहकर करें. उसके पश्चात भगवान कुबेर, लक्ष्मी, गणेश और धनवंतरी जी को 4 बार स्नान कराएं. उनको पंचामृत से स्नान कराकर भगवान धन्वंतरी और भगवान गणपति पर जनेऊ जोड़ा चढ़ाएं और अपनी सामर्थ्य अनुसार गुड़ या मिष्ठान का भोग लगाकर बाद में 13 मिट्टी के दीपक जलाकर उनकी कंकू अबीर गुलाल चावल से दीपक की पूजा करें, तथा अंत में महालक्ष्मी जी की आरती करें. उसके पश्चात शाम के समय एक भोग की थाली मिट्टी के दीपक के साथ घर की मुख्य देहली पर रखें और दीपक का मुंह दक्षिण में रखें. ऐसा कहा जाता है कि देहली पर इस दिन भोग की थाली और दक्षिण मुख दीपक रखने से पूरे वर्ष अकाल मृत्यु का भय नहीं होता है.