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 विशेष :  बिहार में राजनीति या राजनीति में बिहार राज्य को देखा जा सकता है, नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के फलस्वरूप बिहार में समय से पहले एक बार फिर सत्ता परिवर्तन हुआ। इस के अहम किरदार स्वयं मुख्यमंत्री नितीश कुमार हैं। खट्टे मीठे समबन्धों के बीच भाजपा, जदयू और कुछ अन्य दलों  की सरकार बस चल रही थी। किंतु भाजपा की आक्रामक विस्तारवादी नीति से नितीश खुश नहीं थे। हाल ही में पटने में भाजपा ने, दो सौ विधानसभा सीटों से अकेले चुनाव लड़ने का एक तरफा बयान देकर, जदयू के कान खड़े कर दिये। वेसे भी भाजपा से उनका गठबंधन मजबूरी का बेमेल गठबंधन था। इस बेमेल गठबंधन के कारण उनकी सियासी सख्शियत को खरोंच भी आई थी । फिर भी भाजपा से पिंड छुड़ाकर उन्होंने अपने राजनीतिक साहस और कौशल का परिचय दिया है। गैर भाजपाई खेमे में उनकी वापसी का स्वागत हो तो कल की सियासत को नया रास्ता मिल सकता है। उनकी इस सियासी चाल में केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और देश भर में  बिखरे विपक्ष, दोनों के लिये संदेश है।

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देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा कई राज्यों सहित केंद्र में सत्तारूढ है। इस नाते लोकतंत्र की मजबूती उसकी जिम्मेदारी है। लोकतंत्र की मजबूती  के लिए विपक्ष की गरिमामयी उपस्थिति भी जरुरी है। भाजपा इस तथ्य की अनदेखी करती आ रही है। लोकतंत्र में लोक इच्छा बलीयसी होती  है। जनता ने विपक्ष को भी कहीं सत्ता तो कहीं  विपक्ष की भूमिका निभाने का आदेश दिया किंतु भाजपा ने उस जनादेश का सम्मान नहीं किया। कर्नाटक और मध्यप्रदेश की कांग्रेसी सरकारों को अस्थिर कर उसने वहां अपनी हुकूमत स्थापित की। महाराष्ट्र के विपक्षी दलों को धूल चटाकर उसने अपनी साझा सरकार बना ली। असहमति की आवाज उठाने वाले नेताओं पर शिकंजा कसने का उसने नायाब तरीका ढ़़ूंढ निकाला है। इस कारण बिखरा विपक्ष और भी हिम्मतपस्त हो गया है। हर विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ मुंह खोलने की बजाय अपना अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है।

इसके विपरीत इसी विषम परिस्थिति में नितीश कुमार ने भाजपा को अपनी पीठ से उतारकर नया गैर भाजपा गठबंधन खड़ा करने का जोखिम उठाया है। यह जोखिम अभी खतरे से खाली नहीं।घायल भाजपा क्या करेगी, कहना मुश्किल है। फिर भी बिहार की इस घटना से सबक लेकर विपक्ष के अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेताओं को भी एकजुट सबल विपक्ष निर्मित करने की कोशिश करनी चाहिए । तभी सत्ता पक्ष को लोकतंत्र और संविधान के रास्ते चलने को बाध्य किया जा सकता है। विपक्षी दल महसूस करें, लोकतंत्र में सार्थक विकल्प प्रस्तुत करने की जिम्मेवारी उनके कंधों पर है।

डॉ सुकचन्द्र झा

   इतिहासकार

 

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