132वें सृजन संवाद में सुदीप सोहनी – इंडिसिनेमा
जमशेदपुर : जमशेदपुर की साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ‘सृजन संवाद’ की 132वीं संगोष्ठी का आयोजन स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर किया गया। रविवार सुबह ग्यारह बजे भोपाल के सिने-व्यक्तित्व सुदीप सोहनी प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित थे। इस कार्यक्रम का संचालन करीम सिटी कॉलेज के मॉसकॉम विभाग की प्रमुख डॉ. नेहा तिवारी ने किया। डॉ. नेहा तिवारी ने स्वागत केलिए ‘सृजन संवाद‘ कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. विजय शर्मा को आमंत्रित किया। डॉ. विजय शर्मा ने मंच पर उपस्थित तथा फ़ेसबुक लाइव से जुड़े श्रोताओं/दर्शकों का स्वागत करते हुए बताया कि सुदीप सोहनी से वे केवल एक बार मिली है और उनकी भाषा तथा व्यवहार से बहुत प्रभावित हुई हैं, उन्होंने उनकी किताब-कविताएँ पढ़ी हैं, उनके द्वारा संयोजित फ़िल्म कार्यक्रम देखा है। आज बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न सुदीप सोहनी ‘सृजन संवाद’ के मंच से अपनी सिने-यात्रा तथा इंडिपेंडेंट सिनेमा पर अपनी बात दर्शकों/श्रोताओं से साझा करेंगे।
न्यू डेल्ही फ़िल्म फ़ाउंडेशन के संस्थापक आशीष कुमार सिंह ने सुदीप सोहनी का परिचय देते हुए कहा, एफ़टीआईआई, पुणे से पासआउट लेखक, निर्देशक सुदीप सोहनी मध्य भारत में इंडिपेंडेंट सिनेमा द्वारा विभिन्न विधाओं के कलाकारों को जोड़ रहे हैं। उनका कार्य सिनेमा, साहित्य, थियेटर एवं संस्कृति कई क्षेत्रों में है। उन्होंने विज्ञापन की दुनिया में कॉपीराइटर की हैसियत से काम प्रारंभ किया, कई कंपनियों में काम करते हुए आजकल वे सिनेमा के क्षेत्र में विशेष रूप से सक्रिय हैं। उनकी बनाई डॉक्यूमेंट्री ‘तनिष्का’ तथा ‘यादों में गणगौर’ कई फ़िल्म समारोह में देश-विदेश में सराही गई हैं। हाल में उन्होंने मध्य भारत के पुरस्कृत कई कलाकारों जैसे भील, गोड चित्रकार, राई, बैगा डॉन्सर पर बनी फ़िल्म का लेखन एवं सह-निर्देशन किया है। यह फ़िल्म मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग के द्वारा प्रड्यूस की गई है। वे इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टीवल सराहे गए हैं। उनका काव्य-संकलन ‘मंथर होती प्रार्थना’ नाम से उपलब्ध है। वे विश्वरंग इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टीवल, भोपाल के निर्देशक (2020-2021) रह चुके हैं। आजकल वे ‘सुदीप सोहनी फ़िल्म’ एक इंडिपेंडेंट फ़िल्म प्रोडक्शन के अंतर्गत फ़िल्म बना रहे हैं।
कुशल संचालन करते हुए डॉ. नेहा तिवारी ने सुदीप सोहनी को ‘इंडिपेंडेंट सिनेमा: स्वप्न एवं कठिनाइयाँ’ पर बोलने केलिए आमंत्रित किया। करीब एक घंटे में अपनी बात रखते हुए, सुदीप सोहनी ने अपनी फ़िल्म निर्देशन-यात्रा के अनुभवों के आधार पर स्वतंत्र रूप से सिनेमा बनानी की राह में आने वाली कठिनाइयों को विस्तार से बताया। एफ़टीआईआई, पूणे से निकलने के बाद उनके सामने अकी राहें खुली थीं, वे मुंबई जाकर किसी बड़े मीडिया हाउस से जुड़ सकते थे। लाखों-करोड़ों के बजट वाली फ़िल्मों में शामिल हो सकते थे। मगर उन्होंने स्वतंत्र रह कर फ़िल्म बनाना तय किया।
इंडिपेंडेंट सिनेमा या इंडी सिनेमा में बजट कम होता है और साधन स्वयं खोजने होते हैं। फ़ंडिंग परिवार, दोस्तों से मिलती है अथवा क्राउड फ़ंडिंग होती है। सुदीप सोहनी ने सिनेमा बनाने के उन पहलुओं को भी इस दौरान सीखा जिसका प्रशिक्षण उन्होंने पहले नहीं लिया था। पहले उनके पास बहुत अच्छा कैमरा नहीं था। मनमाफ़िक बैकग्राउंड म्युजिक केलिए उन्हें दूसरों को समझाना पड़ा, एडीटिंग करनी उन्होंने स्वयं सीखी, भिन्न कैमरों के रंगों का मिजाज ताड़ा। वे कहानियों पर फ़िल्म नहीं बनाना चाहते हैं। ‘तनिष्का’ बनाने में उन्हें कई बरस लगे मगर बना कर बहुत संतोष मिला। इस दौरान वे उस बच्ची के साथ लगातार रहे, उसको विकसित होते नृत्य में पारंगत होते देखते रहे। सुदीप सोहनी ने दर्शकों/श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए।
डॉ. क्षमा त्रिपाठी ने सुदीप सोहनी के वक्तव्य पर टिप्पणी करते हुए धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम में ‘सृजन संवाद फ़ेसबुक लाइव’ के माध्यम में देहरादून के सिने-समीक्षक मन मोहन चड्ढा (इस समय भोपाल में), जमशेदपुर से डॉ.क्षमा त्रिपाठी, डॉ. मीनू रावत, गीता दूबे, अरविंद तिवारी, राँची से तकनीकि सहयोग देने वाले ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी (इस समय इंदौर में), दिल्ली से न्यू डेल्ही फ़िल्म फ़ाउंडेशन के संस्थापक आशीष कुमार सिंह, मुंबई से कहानीकार ओमा शर्मा, कहानीकार-फ़िल्मकार विमल चंद्र पाण्डेय बड़ौदा से रानो मुखर्जी, गोरखपुर से पत्रकार अनुराग रंजन, बैंग्लोर से पत्रकार अनघा, कवि परमानंद रमण लखनऊ से डॉ. मंजुला मुरारी, डॉ. राकेश पाण्डेय, मुज्जफ़रपुर से चित्रांशि पाण्डेय, मस्कट से कहानीकार अनघ शर्मा आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे। जिनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और समृद्ध हुआ। ‘सृजन संवाद’ की जनवरी मास की गोष्ठी (133वीं) कला पर होगी। इसी सूचना के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।