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दावथ /रोहतास  (चारोधाम मिश्रा):-नवरात्र के अंतिम दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। व्रत रखने वाले भक्त कन्याओं को भोजन कराने के बाद ही अपना व्रत खोलते हैं। कन्याओं को देवी मां का स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन कन्याओं को भोजन कराने से घर में सुख, शांति एवं सम्पन्नता आती है। कन्या भोज के दौरान नौ कन्याओं का होना आवश्यक होता है। इस बीच यदि कन्याएं 10 वर्ष से कम आयु की हो तो जातक को कभी धन की कमी नही होती और उसका जीवन उन्नतशील रहता है।

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श्री मद देवी भागवत के अनुसार

नवरात्र पर कन्या पूजन के लिए कम से कम दो वर्ष की कन्या हो तो अच्छा रहता है। क्योंकि इससे छोटी कन्या भोजन ग्रहण नही कर सकती। कन्या पूजन नवमी के दिन करना सबसे अच्छा माना जाता है। दो साल की कन्याओं का पूजन करने से घर में कभी धन की कमी नहीं होती। इससे दरिद्रता भी दूर होती है।इसी तरह तीन वर्ष की कन्या का पूजन करने से घर में धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है। साथ ही परिवार का महौल खुशनुमा रहता है। तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति का स्वरूप भी माना जाता है।

नवमी वाले दिन चार साल की कन्या को पूजने से परिवार में कभी अशांति नहीं होती। सदैव कल्याण होता है। इसलिए इस उम्र की कन्याओं को कल्याणी भी कहा जाता है।. नवरात्र पर पांच वर्ष की कन्या का पूजन करने से व्यक्ति रोगमुक्त रहता है। इस आयु की कन्या को रोहिणी का स्वपरूप माना जाता है।इस दिन छह साल की कन्याओं को भोजन कराने से व्यक्ति को हर कार्य में विजय मिलती है। इसके अलावा उसे राजयोग की भी प्राप्ति होती है। छह साल की कन्या को देवी कालिका का रूप माना जाता है।वहीं 7 साल की कन्या मां चंडिका का स्वरूप माना जाता है। नवरात्र पर कन्या के इस रूप में मां की आराधना करने से घरवालों को ऐश्वर्य मिलता है। इससे वे सभी भोग—विलासिता की चीजों का आनंद ले सकेंगे।

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नवरात्र पर 8 वर्ष की कन्या को भोजन कराने से घर—परिवार में चल रहे सारे विवाद से मुक्ति मिलती है। यदि कोई जमीन —जायदाद का केस चल रहा है तो उसमें भी जातक को विजय मिलती है। इस आयु की कन्याएं शाम्‍भवी कहलाती हैं।नवमी वालें दिन 9 साल की कन्या का पूजन बहुत शुभ माना जाता है। क्योंकि इस उम्र की कन्या साक्षात मां दुर्गा का स्वरूप होती हैं। इनका पूजन करने से आपका बुरा सोचने वालों को सबक मिलता है और सारे शत्रुओं का नाश होता है। इसके अलावा कन्या पूजन से जातक के असाधारण कार्य भी पूरे हो जाते हैं।नवरात्र में दस साल की कन्या का पूजन करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। इन्हें सुभद्रा का स्वरूप माना जाता है।

पुराणों में है कन्या भोज का महत्व

पौराणिक धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार नवरात्री के अंतिम दिन कौमारी पूजन आवश्यक होता है। क्योंकि कन्या पूजन के बिना भक्त के नवरात्र व्रत अधूरे माने जाते हैं। कन्या पूजन के लिए सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि को उपयुक्त माना जाता है। कन्या भोज के लिए दस वर्ष तक की कन्याएं उपयुक्त होती हैं।

इस तरह करें पूजन

कन्या पूजन के दिन घर आईं कन्याओं का सच्चे मन से स्वागत करना चाहिए। इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं। इसके बाद स्वच्छ जल से उनके पैरों को धोना चाहिए। इससे भक्त के पापों का नाश होता है।इसके बाद सभी नौ कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए। इससे भक्त की तरक्की होती है। पैर धोने के बाद कन्याओं को साफ आसन पर बैठाना चाहिए।अब सारी कन्याओं के माथे पर कुमकुम का टीका लगाना चाहिए और कलावा बांधना चाहिए।कन्याओं को भोजन कराने से पहले अन्य का पहला हिस्सा देवी मां को भेंट करें, िफर सारी कन्याओं को भोजन परोसे। वैसे तो मां दुर्गा को हलवा, चना और पूरी का भोग लगाया जाता है। लेकिन अगर आपका सामाथ्र्य नहीं है तो आप अपनी इच्छानुसार कन्याओं को भोजन कराएं।भोजन समाप्त होने पर कन्याओं को अपने सामथ्र्य अनुसार दक्षिणा अवश्य दें। क्योंकि दक्षिणा के बिना दान अधूरा रहता है। यदि आप चाहते हैं तो कन्याओं को अन्य कोई भेंट भी दे सकते हैं।अंत में कन्याओं के जाते समय पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें और देवी मां को ध्यान करते हुए कन्या भोज के समय हुई कोई भूल की क्षमा मांगें। ऐसा करने से देवी मां प्रसन्न होती हैं और भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं।

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