जिंदा युवती की हत्या के आरोप में 3 छात्रों को भेजा जेल।

Advertisements
Advertisements
Advertisements

रांची:- रांची के चुटिया थाने की पुलिस ने जिस प्रीति नामक लड़की के फर्जी अपहरण व हत्या के बाद जला देने की झूठी कहानी गढ़कर तीन निर्दोष छात्रों को जेल भेजा था, उन्हें अब सात साल के बाद एक-एक लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा,राज्य मानवाधिकार आयोग के आदेश के बाद अब इन छात्रों को मुआवजा देने के लिए महालेखाकार को पत्राचार किया गया है। 15 फरवरी 2014 को रांची के चुटिया की रहने वाली प्रीति नामक एक युवती लापता हो गई थी।

Advertisements
Advertisements

ठीक दूसरे ही दिन बुंडू थाना क्षेत्र स्थित मांझी टोली पक्की रोड के समीप एक युवती का शव जले हुए हालत में मिला था। पोस्टमार्टम में यह खुलासा हुआ था कि उस युवती की हत्या के बाद अपराधियों ने उसे जला दिया था। शव अज्ञात था, पुलिस ने प्रीति के परिजनों को पहचान करने को कहा। कद-काठी लगभग एक जैसी होने के कारण प्रीति के परिजनों ने आशंका जताई कि हो सकता है, यह उसकी बेटी का शव हो। पुलिस ने डीएनए मैच कराए बिना मान लिया कि शव प्रीति का है।

इस केस में पुलिस ने प्रीति के अपहरण के बाद हत्या कर जलाने का मामला दर्ज किया और धुर्वा के तीन युवकों अजित कुमार, अमरजीत कुमार व अभिमन्यु उर्फ मोनू को जेल भेज दिया। 15 मई 2014 को रांची पुलिस ने तीनों के विरुद्ध अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म व हत्या कर जलाने के मामले में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया था। युवक इन्कार करते रहे कि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं, लेकिन पुलिस ने एक नहीं सुनी। उसे तो जैसे बस फाइल बंद करनी थी।

See also  महालया के शुभ अवसर पर आकाशवाणी जमशेदपुर से महिषासुर मर्दिनी का होगा विशेष प्रसारण

अपने प्रेमी के साथ फरार हुई प्रीति करीब चार महीने बाद 14 जून 2014 को जिंदा वापस लौटी, तो सबके होश उड़ गए। मामले ने तूल पकड़ा और इस पूरे प्रकरण की जांच की जिम्मेदारी अपराध अनुसंधान विभाग (सीआइडी) को दे दी गई। सीआइडी की जांच के बाद तथ्य की भूल बताते हुए कोर्ट में रिपोर्ट प्रस्तुत किया गया। इसके बाद तीनों ही निर्दोष छात्र बरी हुए थे।

सीआइडी की जांच के बाद इस केस के अनुसंधानकर्ता सुरेंद्र कुमार, तत्कालीन चुटिया थाना प्रभारी कृष्ण मुरारी और तत्कालीन बुंडू थाना प्रभारी संजय कुमार निलंबित किए गए थे। साबित हुआ था कि इन तीनों ने बिना उचित अनुसंधान के ही तीनों छात्रों को गिरफ्तार किया और उन्हें जेल भिजवा दिया। जेल से बाहर आने के बाद पीड़‍ित युवकों के परिजनों ने राज्य मानवाधिकार आयोग की शरण ली थी। पिछले साल ही आयोग ने यह आदेश जारी किया था, लेकिन राशि की स्वीकृति संबंधित पत्राचार करने में एक साल लग गए।

बुंडू में बरामद शव किसका, अब तक पता नहीं

चुटिया की प्रीति के जिंदा लौटने के बाद एक सवाल आज तक अनसुलझा है कि 16 फरवरी 2014 को बुंडू के मांझी टोली पक्की रोड के समीप स्थित जंगल से बरामद एक युवती का जला हुआ शव किसका था। उस शव का अंतिम संस्कार प्रीति के परिजन ने ही कर दिया था। इसमें रांची पुलिस की लापरवाही यह रही कि पुलिस ने उस शव के डीएनए से प्रीति के परिजन के डीएनए को मैच नहीं कराया था। अगर डीएनए मैच कराया होता, तो फर्जी प्रीति हत्याकांड में तीन निर्दोष छात्र जेल नहीं जाते

You may have missed