175 साल पुराना ‘कमिश्नर हाउस’ बन गया पहचान की धरोहर: रांची का इतिहास समेटे खड़ा है अंग्रेजों का बनाया भवन…



लोक आलोक सेंट्रल डेस्क:आज विश्व विरासत दिवस के अवसर पर रांची का कमिश्नर हाउस फिर से चर्चा में है। यह भवन न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि यह रांची के इतिहास का एक अहम दस्तावेज भी है। लगभग 175 साल पुराना यह भवन आज भी प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय के रूप में कार्यरत है। इसे सन् 1850 में अंग्रेजों ने बनवाया था।


पांच से छह हजार वर्गफीट में फैला, 11 कमरों वाला यह भवन आज भी अपने भीतर इतिहास को संजोए हुए है।
कमिश्नर हाउस में 11 कमरे हैं, जिनमें से कुछ के फर्श आज भी लकड़ी के हैं। हर कमरे की बनावट खास है—जैसे एक कमरा 30×16 वर्गफीट में बना है। इस भवन में आज भी 30-40 किलो वजनी पुराने जमाने के पंखे इस्तेमाल किए जा रहे हैं। साथ ही अंग्रेजों के दौर की दुर्लभ मूर्तियां भी आज कमिश्नर चेंबर की शोभा बढ़ा रही हैं।
इतिहास की परतें खोलता है यह भवन
1850 में दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के पहले आयुक्त जेएच क्रोफोर्ड थे, जो 1853 तक इस पद पर रहे। उनके बाद डब्ल्यूजे एलैन 1857 तक आयुक्त रहे। यह भवन 2000 में झारखंड राज्य गठन के बाद भी प्रमुख प्रशासनिक केंद्र बना रहा। उस समय फूल सिंह पहले आयुक्त बने थे। वर्तमान में अंजनी कुमार मिश्रा 27वें आयुक्त के रूप में इस भवन में कार्यरत हैं।
गबन से बनी सरकारी इमारत!
इस भवन से जुड़ी एक चौंकानेवाली कहानी भी है। कहा जाता है कि राबर्ट ओमने, जो लोहरदगा डिवीजन के प्रिंसिपल असिस्टेंट थे, उन्होंने सरकारी खजाने से 12,000 रुपये का गबन कर यह भवन बनवाया था। यह मूलतः उनका निजी आवास था, जिसे आज सरकार उपयोग कर रही है।
विश्व धरोहर दिवस की थीम और संदेश
इस वर्ष विश्व विरासत दिवस की थीम है—”आपदाओं और संघर्षों से खतरे में पड़ी विरासत: आइसीओएमओएस की 60 वर्षों की कार्रवाइयों से तैयारी और सीख”। यह दिन हमें याद दिलाता है कि धरोहरें सिर्फ पुरानी इमारतें नहीं होतीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, पहचान और इतिहास की ज़िंदा निशानियाँ होती हैं।
रांची का कमिश्नर हाउस इसी गौरवशाली विरासत का एक प्रतीक है, जिसे संरक्षित रखना हम सभी की ज़िम्मेदारी है।
