तीन दिवसीय फसल अवशेष प्रबंधन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम सम्पन्न
बिक्रमगंज(रोहतास): कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास द्वारा तीन दिवसीय दिनांक 14 से 16 मार्च तक फसल अवशेष प्रबंधन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम गुरुवार को सम्पन्न हुआ । यह प्रशिक्षण बामेती बिहार संस्थान द्वारा प्रायोजित है । इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में बिहार के 9 जिले के 30 कृषि तकनीकी प्रबंधक, प्रखंड उद्यान पदाधिकारी, कृषि समन्वयक इत्यादि भाग लिए । इनमें भोजपुर, अरवल, कैमूर, वैशाली, पटना, बक्सर, औरंगाबाद एवं रोहतास जिला के प्रतिभागी उपस्थित हुए । प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन के मौके पर प्राचार्य डॉ रियाज अहमद वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय डुमरांव ने सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरण किया ।
उन्होंने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए बताया कि गर्म वातावरण में किसी भी चीज को जलाने का सबसे अधिक योगदान है । वातावरण में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रहा है । इसकी वजह से हमें बेमौसम बरसात, सुखाड़ एवं बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है । खेत में फसल अवशेष जलाना नहीं चाहिए एवं इसके निदान हेतु प्रयास करते रहना चाहिए । प्रभारी वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान आर के जलज ने धान पुआल प्रबंधन में किए गए कार्यों के बारे में विस्तार पूर्वक बताया । राइस बेलर मशीन के द्वारा पुआल का गट्ठर बनाकर सुधा कंपनी कंपनी को 2 रुपये प्रति किलोग्राम के दर से बेचा गया । सुधा कंपनी द्वारा इसे 3 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से किसानों को बेचा गया । किसानों ने इसे पशु चारा में प्रयोग किया । उन्होंने बताया कि फसल अवशेष को खेतों में जलाने से खेतों में मौजूद सूक्ष्म जीव जंतु मर जाते हैं । पोटाश का क्षय होना हो जाता है एवं मिट्टी अम्लीय हो जाती है । इन तीन कारणों से कुछ वर्षों बाद मिट्टी की उर्वरा शक्ति बहुत ज्यादा घट जाती है । कार्यक्रम में उपस्थित मुख्य बैंक प्रबंधक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बिक्रमगंज ने सभी उपस्थित कृषि पदाधिकारियों को पराली आधारित उद्योगों के वित्तीय सहायता संबंधित जानकारी दी ।
डॉ रामाकांत सिंह, मृदा वैज्ञानिक ने पुआल से बायोचार बनाने की विधि प्रायोगिक तौर पर दिखाई । उनके अनुसार बायोचार में 40% कार्बन की मात्रा होती है , जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाती है । खेतों में 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से इसके प्रयोग करने से कार्बन की मात्रा में बढ़ोतरी हो जाती है । कार्बन तत्व सूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर बड़े-बड़े पौधों हेतु अत्यंत आवश्यक है । डॉ रतन कुमार उद्यान विशेषज्ञ ने फसल अवशेष से वर्मी कंपोस्ट एवं मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी । उप परियोजना निदेशक आत्मा सौरभ कुमार ने उपस्थित पदाधिकारियों को बिहार सरकार द्वारा दिए जा रहे हैं । कृषि अनुदान के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की । उन्होंने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन हेतु सभी मशीनों पर 70 से 80% अनुदान उपलब्ध है ।