टाटा स्टील माइनिंग ने टाटा स्टील फाउंडेशन के सहयोग से तसर रेशमकीट की स्वदेशी नस्ल ‘सुकिंदा इकोरेस’ के संरक्षण में मदद की

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• प्रजातियों के संरक्षण की अनूठी पहल
• विशेषज्ञ और तसर किसानों ने नस्ल के संरक्षण के लिए आगे की योजना पर विचार-विमर्श किया
• सेंट्रल सिल्क बोर्ड ने ओडिशा के जाजपुर जिले के सुकिंदा में सुकिंडा इकोरेस के संरक्षण पर पायलट प्रोजेक्ट के लिए समझौता किया

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सुकिंदा:-  क्षेत्र की जैव विविधता की समृद्धि में योगदान करने के अपने प्रयासों के रूप में, टाटा स्टील माइनिंग लिमिटेड (टीएसएमएल) ने अपने कॉरपोरेट सोशल सर्विस रिस्पॉन्सिबिलिटी इकाई टाटा स्टील फाउंडेशन (टीएसएफ) के साथ मिलकर सुकिंदा इकोरेस के संरक्षण के लिए हाथ बढ़ाया है। इकोरेस, ओडिशा के जाजपुर जिले में स्थित सुकिंदा की एक स्वदेशी रेशमकीट की नस्ल है।

सेंट्रल सिल्क बोर्ड (सीएसबी), टीएसएमएल, टीएसएफ के वरिष्ठ सदस्यों और अन्य विशेषज्ञों ने वैज्ञानिकों और तसर किसानों की उपस्थिति में टीएसएमएल की सुकिंदा क्रोमाइट माइन में आयोजित एक कार्यशाला में इस विषय पर विचार-विमर्श किया और सुकिंदा इकोरेस के संरक्षण के लिए एक रोड मैप तैयार किया, जो बेहतरीन रेशम पैदा करता है। सीएसबी, टीएसएफ और टीएसएमएल की निरंतर निगरानी में परियोजना को आगे बढ़ाया जाएगा और एक वर्ष के बाद इसे मुख्य धारा में लाने के लिए मूल्यांकन किया जाएगा।

इस पहल के लिए टीएसएमएल और टीएसएफ की सराहना करते हुए इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित केंद्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, रांची के निदेशक डॉ. के. सत्यनारायण ने कहा कि सुकिंदा इकोरेस रेशमकीट की इस स्वदेशी प्रजाति का संरक्षण हमारी जैव विविधता और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकृति की प्रचुरता का संरक्षण करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। इससे तसर की उत्पादकता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

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जैव विविधता के लिए टाटा स्टील माइनिंग की प्रतिबद्धता के बारे में विस्तार से बताते हुए, इसके प्रबंध निदेशक, पंकज सतीजा ने कहा, “हम इस क्षेत्र की जैविक विविधता में योगदान करने और स्थानीय तसर किसानों की मदद करने के उद्देश्य से सुकिंदा इकोरेस के संरक्षण की दिशा में केंद्रीय रेशम बोर्ड को सभी प्रकार से समर्थन देंगे। यह ऐसी कई पहलों में से एक है जो हम अपने संचालन के आसपास के समुदाय के बीच जैव विविधता के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कर रहे हैं।

2007 से, सुकिंदा की टसर रियरर्स कोऑपरेटिव सोसाइटी ने सुकिंदा इकोरेस को पालना शुरू किया था। हालांकि, यह नस्ल धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। एक और नस्ल – डाबा टीवी अब और अधिक प्रभावी हो गया है। सुकिंदा इकोरेस नस्ल का प्राकृतिक आवास सुकिंदा क्षेत्र है जहां उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन है, और लाल दोमट मिट्टी पाई जाती है। ओडिशा में उपलब्ध रेशम के कीड़ों की आठ नस्लों में से, इस क्षेत्र के कई किसान अपनी आजीविका के लिए सुकिंदा इकोरेस की तसर खेती पर निर्भर हैं।

आज की कार्यशाला में सुशांत कुमार मिश्रा, सीनियर जनरल मैनेजर, टीएसएमएल, मिहिर गजेंद्र महापात्र, अस्सिटेंट डायरेक्टर सेरीकल्चर, ढेंकनाल, डॉ. प्रशांत कुमार कर, वैज्ञानिक डी, सेंट्रल सिल्क बोर्ड (सीएसबी), डॉ कर्मबीर जेना, वैज्ञानिक-डी, सीटीआर एंड टीआई, रांची, डॉ डीआईजी प्रभु, वैज्ञानिक सी, सीएसबी, राजेंद्र खंडाई, इंटीग्रेटर, तसर डेवलपमेंट फाउंडेशन, रांची उपस्थित थे।

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