आदर्शनगर में आयोजित भागवत कथा के दूसरे दिन, आत्मदेव, धुंधली धुंधकारी और गोकर्ण की कथा का वर्णन किया गया.

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जमशेदपुर :  सोनारी आदर्शनगर फेज 11में आयोजित भागवत सप्ताह के दूसरे दिन भागवत मर्मज्ञ पंडित शैलेश कुमार त्रिपाठी ने आत्मदेव की कथा का वर्णन किया। पुत्रहीनता के कारण विद्वान और नैष्ठिक ब्राह्मण आत्मदेव एक दिन खिन्न होकर प्राण त्याग के लिए घर से निकल परे।रास्ते में उनकी भेंट एक सन्यासी से हुई। सन्यासी महाराज ने उनको फल देते हुए कहा कि फल पत्नी को खिलाने से उनको पुत्र प्राप्ति होगी। किंतु उनकी पत्नी ने वह फल अपनी गाय को खिला दिया क्योंकि पुत्र प्रसव और लालनपालन के झंझट में पड़ना नहीं चाहती थी। धुंधली गर्भवती होने

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का स्वांग कर घर में पड़ी रही और अपनी गर्भवती बहन को पास बुला लिया। बहन के पुत्र को उसने अपना पुत्र बता कर उसका नाम धुंधकारी रखा। तदनन्तर आत्मदेव की गाय से भी एक पुत्र हुआ जिसका नाम गोकर्ण पडा़। बालिग होने पर गोकर्ण विद्वान वेदज्ञ बने और धुंधकारी लम्पट हो गया। उसकी लम्पटता के कारण उसके पिता बन में चले गये और माता कुएं में डूब मरी। तत्पश्चात वह खुद कुलटा स्त्रियों के हाथ मारा गया और प्रेत बना। उसने छोटे भाई पंडित गोकर्ण से विनती की कि वह उसे प्रेत योनि से मुक्ति दिलाए। भाई की मुक्ति के लिये गोकर्ण ने भागवत कथा सप्ताह का आयोजन किया और भागवतजी के श्रवण से धुंधकारी प्रेतयोनि से मुक्त हुआ।

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