Navratri Special: मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना कर इन नौ आषधियों का करें इस्तेमाल, दूर होंगे भक्तों के रोग
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Navratri 2024: मां दुर्गा नौ रूपों में नौ औषधियों में विराजमान हैं। जो भक्तों के रोगों का नाश करती हैं और उन्हें सुखमय जीवन प्रदान करती हैं। शैलपुत्री हरड़, स्कंदमाता अलसी, महागौरी तुलसी, सिद्धीदात्री सतावरी और कालरात्रि नागदौन में वास करती हैं।
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मां दुर्गा के नौ रूप नौ औषधियों में भी विराजमान हैं। मान्यता है कि इन औषधियों में मां वास करके भक्तों के रोगों का नाश कर उन्हें सुखमय जीवन प्रदान करती हैं। मां की आराधना के साथ इन औषधियों का इस्तेमाल लोगों को रोगमुक्त बनाता है।
मां दुर्गा नौ रूपों में नौ औषधियों में विराजमान हैं। जो भक्तों के रोगों का नाश करती हैं और उन्हें सुखमय जीवन प्रदान करती हैं। शैलपुत्री हरड़, स्कंदमाता अलसी, महागौरी तुलसी, सिद्धीदात्री सतावरी और कालरात्रि नागदौन में वास करती हैं।
नवरात्र का वर्णन अथर्ववेद में है। इस वेद का उपवेद आयुर्वेद है। इसमें कई प्रकार की औषधियों का वर्णन है। इसमें दिव्य नौ ऐसी औषधियां हैं, जिनमें नवदुर्गा साक्षात वास करती हैं। आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के अनुसार इसका वर्णन मार्कंडेय महापुराण के ”दुर्गा कवच” और अग्निपुराण में भी हैं। अग्निपुराण के 125वें अध्याय के 43, 44 और 45वें श्लोक में वर्णित है- औषधी: सम्प्रवक्ष्यामि महारक्षा विधायिनी।
महाकाली तथा चण्डी वाराही चेश्वरी तथा।। सुदर्शना तथेन्द्रेणी गात्रास्या रक्षयन्ति तम्। बला चातिबला भीरूर्मुसली सहदेव्यपि।। जाती च मल्लिका यूथी गारुड़ी भृङ्गराजक:। चक्ररूपा महौषध्यो धारिताविजयादिदा:।। नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को मार्कंडेय चिकित्सा पद्धति के रूप में भी दर्शाया गया।
शैलपुत्री-हरड़
मां शैलपुत्री हरड़ में वास करती हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है जो सात प्रकार की होती है। इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है। पथया हित करने, कायस्थ शरीर को बनाए रखने, अमृता अमृत के समान, हेमवती हिमालय पर होने वाली, चेतकी चित्त को प्रसन्न करने, श्रेयसी (यशदाता) शिवा यानी कल्याण करने वाली है।
ब्रह्मचारिणी-ब्राह्मी
मां ब्रह्मचारिणी ब्राह्मी में विराजमान हैं। ब्राह्मी आयु और स्मरण शक्ति बढ़ाने में कारगर है। इससे विकारों का नाश होता है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती हैं। गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है।
चंद्रघंटा-चन्दुसूर
तृतीय रूप चंद्रघंटा चन्दुसूर या चमसूर रूप में हैं। यह धनिया के पौधे के समान होता है। यह औषधि मोटापा दूर करने में कारगर है। इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। ये शक्ति बढ़ाने और हृदय रोग को ठीक करने में भी प्रभावी है। इसकी पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है।
कूष्मांडा-पेठा
मां कूष्मांडा पेठा में विराजमान हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं, जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक और रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के सभी दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त और गैस को दूर करता है। कुम्हड़ा से मिठाई भी बनती है।
स्कंदमाता-अलसी
स्कंदमाता अलसी में विराजमान हैं। स्कंदमाता को पार्वती और उमा भी कहते हैं। अलसी वात, पित्त, कफ रोगों की नाशक औषधि है।
कात्यायनी-मोइया
मां कात्यायनी मोइया में वास करती हैं। माेइया को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है। जैसे- मोइया यानी माचिका, अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। यह कफ, पित्त, अधिक विकार और कंठ के रोग का नाश करती है।
कालरात्रि-नागदौन
मां दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जो नागदौनऔषधि में विराजमान हैं। देवी को महायोगिनी व महायोगीश्वरी भी कहा गया है। इस औषधि से सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं। खास तौर से मन और मस्तिष्क के सभी विकार दूर होते हैं। इसके पौधे को घर में लगाने से घर के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
महागौरी-तुलसी
अष्टम महागौरी तुलसी के पौधे में वास करती हैं। तुलसी का पौधा हर घर में लगाया जाता है। तुलसी सात प्रकार की होती है-सफेद तुलसी, काली, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र तुलसी है। तुलसी के सेवन से रक्त साफ होने के साथ हृदय रोग का नाश होता है।
सिद्धिदात्री-शतावरी
सिद्धिदात्री माता शतावरी में विराजमान होती हैं। शतावरी बुद्धि और बल के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार और वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। जो शतावरी का रोजाना सेवन करते हैं, उनके तमाम रोग दूर हो जाते हैं।
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