Mahavir Jayanti 2025: वैभव छोड़ जंगल की राह… जब राजकुमार वर्धमान बने भगवान महावीर…



लोक आलोक सेंट्रल डेस्क:इस वर्ष महावीर जयंती 10 अप्रैल 2025, गुरुवार को देशभर में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है। यह दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे ऐसे महामानव थे जिन्होंने राजसी वैभव, सुख-सुविधाएं और परिवार का मोह छोड़कर संन्यास की राह पकड़ी और पूरी मानवता को सत्य, अहिंसा, और अपरिग्रह जैसे मूल्यों का रास्ता दिखाया।


राजघराने में जन्मे वर्धमान, बचपन में मिला नाम “वर्धमान”
भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में कुंडग्राम (वर्तमान बिहार के वैशाली के पास) में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर हुआ था। उनके जन्म के बाद पूरे राज्य में समृद्धि और शांति का माहौल बन गया, इसीलिए उनका नाम वर्धमान रखा गया, जिसका अर्थ होता है – ‘जो हमेशा बढ़े’। उनका जीवन प्रारंभ से ही शांति, संयम और करुणा से जुड़ा रहा।
30 की उम्र में त्यागा राजपाट, चुनी तप और साधना की राह
राजघराने में जन्मे वर्धमान का जीवन अत्यंत ऐश्वर्य में बीता। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, उन्होंने संसार के दुखों को गहराई से समझा। अंततः 30 वर्ष की आयु में उन्होंने राजपाट, परिवार और सुख-सुविधाओं को त्याग दिया और 12 वर्षों तक कठोर तपस्या और ध्यान में लीन हो गए। इस कठिन साधना के पश्चात उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई — जिसे मोक्ष या आत्मा की पूर्ण जागृति कहा जाता है।
कैसे बने भगवान महावीर
12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद महावीर को ज्ञान की प्राप्ति जम्बिक ग्राम में एक वृक्ष के नीचे हुई। इसके बाद उन्होंने जीवन का एकमात्र उद्देश्य मानवता को सही मार्ग दिखाना बना लिया। वे जगह-जगह घूमे, उपदेश दिए और पाँच मूल सिद्धांतों के माध्यम से मुक्ति का मार्ग बताया।
भगवान महावीर का संदेश – जियो और जीने दो
भगवान महावीर ने “जियो और जीने दो” का आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने मनुष्यों को पांच मूल सिद्धांतों का पालन करने की सलाह दी:
- अहिंसा (Violence का त्याग)
- सत्य (सच बोलना)
- अपरिग्रह (संपत्ति का लोभ छोड़ना)
- अस्तेय (चोरी न करना)
- ब्रह्मचर्य (संयमित जीवन)
इन सिद्धांतों को अपनाकर ही कोई ‘जिन’ बन सकता है – यानी वह जिसने अपनी इच्छाओं पर विजय पाई हो। इसी से आगे चलकर ‘जैन’ धर्म की उत्पत्ति हुई।
महावीर जयंती की परंपराएं और महत्त्व
महावीर जयंती के दिन जैन समाज के लोग पूजा, व्रत, दान, और भजन-कीर्तन करते हैं। मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है, उन्हें फूलों से सजाया जाता है और रथ यात्राएं निकाली जाती हैं। यह दिन आत्मचिंतन, संयम और सेवा का प्रतीक बन गया है।
आध्यात्मिकता और सामाजिक सुधार का संदेश
भगवान महावीर का जीवन न केवल आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि उन्होंने सामाजिक समानता, पर्यावरण प्रेम और अहिंसा जैसे मूल्यों को भी समाज में स्थापित किया। आज भी उनके सिद्धांत उतने ही प्रासंगिक हैं जितने सदियों पहले थे।
