स्नान पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ होते हैं ‘बीमार’, जानें रथ यात्रा से पहले के इस अनोखे पर्व का रहस्य



आज है ‘स्नान पूर्णिमा’, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए एक विशेष पर्व। यह दिन रथ यात्रा से ठीक 15 दिन पहले आता है और भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दिन श्रीमंदिर में भगवानों को विशेष स्नान कराया जाता है, जिसे ‘स्नान यात्रा’ कहा जाता है।
इस स्नान के बाद एक अद्भुत परंपरा निभाई जाती है — भगवानों को बीमार मान लिया जाता है। वे दर्शन से दूर चले जाते हैं और उन्हें ‘अनासर’ गृह में रखा जाता है। इस अवधि को ‘अनवसर काल’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है — जब भगवान आम जनता के लिए उपलब्ध नहीं होते।
क्यों बीमार होते हैं भगवान?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ को इस दिन 108 कलशों के जल से स्नान कराया जाता है। इस शीतल जल से स्नान के बाद भगवान को सर्दी लग जाती है, और वे बीमार पड़ जाते हैं। इसके बाद उन्हें एक विशेष स्थान — ‘अनासर गृह’ — में रखा जाता है, जहां उनकी सेवा आयुर्वेदिक औषधियों और विश्राम से की जाती है।
इस दौरान भक्तों को भगवान के दर्शन नहीं होते। हालांकि, उनके स्थान पर ‘अनसारि पट्टी दी पत्ति’ (पेंटिंग रूपी दर्शन) को प्रदर्शित किया जाता है।
रथ यात्रा से क्या है संबंध?
अनवसर काल के ठीक बाद भगवान पुनः स्वस्थ होकर बाहर आते हैं और फिर शुरू होती है विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे देखना एक दिव्य अनुभव माना जाता है।
इतिहास और महत्व
यह परंपरा श्रीमंदिर की सबसे रहस्यमयी और भक्तिमय परंपराओं में से एक है। यह भगवान के मानवीय स्वरूप को दर्शाती है, जहां वे भी बीमार पड़ते हैं, आराम करते हैं, और फिर यात्रा के लिए निकलते हैं।
स्नान पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर है जब भगवान अपने भक्तों को यह संदेश देते हैं कि शरीर को विश्राम, सेवा और उपचार की भी आवश्यकता होती है। रथ यात्रा की उलटी गिनती भी आज से ही शुरू हो जाती है।


