पारम्परिक छठ लोकगीतों से सराबोर हो रही घर आंगन व सड़क ,बाजार
सासाराम (संवाददाता ):-सूर्योउपसाना के महापर्व छठ पर्व को लेकर घर-आंगन और घाट से लेकर बाजारों में काफी चहलपहल रहा।महापर्व के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति-भाव से गाये जाने वाले लोकगीतों की धूम से पूरा वातावरण गुजमान होने लगा है।शहर से लेकर गांव तक घर से लेकर सड़क तक चहुओर छठ गीत सुनाई पड़ने लगा है ।’केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय ।कांच ही बॉस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’।सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।निंदिया के मातल सुरुज आखियो न खोले हे।चार कोना के पोखरवाहम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।इस परंपरिक गीत में एक ऐसे तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें नहीं माफ करेंगे, पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है। पर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को? अब तो सूर्यदेव उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते, उसने आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है।