यूरिया फैक्ट्री खेत में ही पाएं बस अपने खेत में ढैचा लगाएं : डॉ रामाकांत

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बिक्रमगंज/रोहतास (संवाददाता ):- सघन कृषि पद्धति तथा असंतुलित रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण दिन प्रतिदिन मिट्टी की उर्वरा शक्ति में खराश हो रहा है । क्योंकि रसायनिक उर्वरकों के व्यवहार से पौधों के लिए आवश्यक 17 पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं हो पाती । इसके कारण पौधे मिट्टी में उपस्थित सारे पोषक तत्व को अवशोषित नहीं कर पाते । हरी खाद न केवल सारे पोषक तत्वों की आपूर्ति करता है वरना मिट्टी में हार्मोन तथा विटामिन की मात्रा भी बढ़ाता है साथ ही हर पतवार के वृद्धि को भी रोकता है । हरी खाद जैविक खाद के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण है जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थित करता है साथ ही मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को बढ़ाता है । क्या है हरी खाद दलहनी तथा गैर दलहनी फसलों को उनके वानस्पतिक वृद्धि काल में 55 से 60 दिन पर मिर्जा पुरवा रखता और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए जुदाई करके मिट्टी में अपघटन के लिए दबाना ही हरी खाद है । इसके लिए सबसे उपयुक्त फसल ढैचा है, इसके बाद मूंग, उर्द, सनई इत्यादि फसलों का उपयोग करते हैं । रवि फसल जैसे गेहूं चना , मसूर कटने के बाद धान लगाने से पहले बीच-बीच में जो 60 दिन की अवधि खाली प्राप्त होती है । उस अवधि का संपूर्ण उपयोग करते हुए 20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से ढैचा का बीज अप्रैल या मई में खेत में छिड़काव कर देते हैं और 55 दिनो बाद मिट्टी में काटते हुए मिला देते हैं तो हमें पर्याप्त मात्रा में खेत में नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व और साथ ही साथ विटामिन एवं हार्मोन्स की खेतों में प्राप्ति होती है । अगर लगातार 3 साल तक हम ढैचा को इसी तरह से खेत में मिलाते रहे तो हमारी मिट्टी की उर्वरा शक्ति में गुणवत्ता पूर्वक वृद्धि होती है और फसलों में रसायनिक खादों को लगभग 30 परसेंट कटौती करेंगे तब भी हमें उतना ही उपज मिलेगा । जितना रसायनिक खादों के प्रयोग के द्वारा प्राप्त होता है साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति लगातार बनी रहेगी एवं जो उत्पाद प्राप्त होंगे । उसके गुणवत्ता में वृद्धि हो जाएगी उसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन एवं विटामिन प्राप्त होगा । जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभप्रद होगा । अगर अपने खेत में ढैचा की बुवाई अप्रैल-मई में 20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बीज का उपयोग करते हुए बुवाई करते हैं । तो लगभग 30 टन प्रति हेक्टेयर बायोमास प्राप्त होता है जो कि लगभग 90 से 120 किलो नाइट्रोजन 12 से 15 किलो फास्फोरस एवं आठ से 10 किलो पोटाश के साथ-साथ अन्य पोषक तत्व की भी आपूर्ति करता है ।लेकिन ढैचा को मिट्टी में मिल आते , उस समय कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए । जैसे हरी खाद का इस्तेमाल तभी सफल हो पाता है जब उसे सही समय पर मिट्टी में पलटा जाए एवं उसके बाद उस भूमि में लगने वाली फसल की बुवाई एवं हरी खाद की पढ़ाई के बीच का अंतर लगभग 10 से 15 दिन का होना सुनिश्चित हो । मिट्टी में पलटने के बाद उसके अपघटन के लिए पर्याप्त मात्रा में नमी होना चाहिए ।

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ढैचा को हरी खाद के रूप में लेने पर निम्न लाभ प्राप्त होते हैं :-

मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक संरचना के साथ-साथ जैविक संरचना में भी सुधार होता है । साथ ही वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर करता है । इसके अलावा इसकी जड़े गहरे जाती है , जिसके कारण मृदा में वायु संचार अच्छा हो जाता है । जिससे लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि होती है जो कि सभी पोषक तत्वों की उपलब्धता में सहायक होती है । जिससे मिट्टी की जल धारण क्षमता में सुधार होता है । सबसे उपयुक्त बात यह है कि रासायनिक उर्वरक दवा के प्रयोग में कमी होने से प्रति हेक्टेयर लगभग 4 से ₹5000 की बचत होती है । इसके प्रयोग करने से खरपतवार भी नहीं निकल पाते है ।

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