मोदी सरकार का कृषि क़ानून पर यू-टर्न, कहाँ की हम समझा नहीं पाए तीन कृषि कानूनों के फायदे इसलिए इसे वापस लेने का फैसला किया.

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नई दिल्ली: गुरुपर्व के मौके पर देश को संबोधित कर पीएम ने कृषि कानूनों को वापस लिए जाने का फैसला सुनाया. यह घोषणा तब आई है, जब इन कानूनों के खिलाफ देश के किसानों का एक समूह पिछले एक साल से आंदोलन कर रहा है. दिल्ली के बॉर्डर से लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में पिछले एक सालों में कई स्तर और चरणों में किसानों का आंदोलन देखा गया है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सम्बोधन में कहा, ‘कोशिशों के बावजूद हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए, भले ही किसानों का एक वर्ग ही विरोध कर रहा था. हम उन्हें अनेकों माध्यमों से समझाते रहे. बातचीत होती रहे. हमने किसानों की बातों को तर्क को समझने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी. हमने 2 साल तक इन नए कानूनों को सस्पेंड करने की भी बात करें आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में कोई कमी रही होगी जिसके कारण दिए के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए. हमने इन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है.

पीएम ने कहा कि संसद के इसी शीतकालीन सत्र में सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरा कर देगी. यानी कि इस शीतकालीन सत्र में ये कानून आधिकारिक तौर पर हटा लिए जाएंगे.

इससे पहले ही मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने 20 अक्टूबर को अपने एक साक्षात्कार के माध्यम से कहा था, कृषि क़ानून पर केंद्र सरकार को ही मानना पड़ेगा, किसान नहीं मानेंगे.

वहीं उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और जयंत चौधरी का राष्ट्रीय लोक दल कृषि कानून के मुद्दे पर पश्चिमी यूपी में किसानों को एकजुट करने में लगा हुआ है. बीजेपी को अब उम्मीद होगी कि उसने यूपी चुनाव में अपने खिलाफ दिख रहे सबसे बड़े मुद्दे को निपटा दिया है. अगले तीन महीनों से भी कम समय में पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होंगे. हालांकि विपक्ष कृषि कानूनों की वापसी को अपनी जीत के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहा है.

बता दें कि मोदी सरकार ने इन कानूनों को जून, 2020 में सबसे पहले अध्यादेश के तौर पर लागू किया था. इस अध्यादेश का पंजाब में तभी विरोध शुरू हो गया था. इसके बाद सितंबर के मॉनसून सत्र में इसपर बिल संसद के दोनों सदनों में पास कर दिया गया. किसानों का विरोध और तेज हो गया. हालांकि इसके बावजूद सरकार इसे राष्ट्रपति के पास ले गई और उनके हस्ताक्षर के साथ ही ये बिल कानून बन गए.

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