शिक्षा में सुधार के लिए नई शिक्षा नीति आने के बावजूद, आज भी बच्चे दो वक्त की रोटी के लिए जान हथेली पर रखकर करतब दिखाने पर मजबूर
गढ़वा: – शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी सुधार के लिए भले ही सरकार ने नई शिक्षा प्रणाली नीति अपनाई है। लेकिन आज भी छोटे-छोटे बच्चे अपने दो वक्त की रोटी के लिए जान हथेली पर रखकर करतब दिखाने पर मजबूर हैं। बच्चे कम उम्र में पढ़ाई करने के बजाए इतनी खतरनाक कारनामे में दिखाने के लिए गांव गांव शहर शहर जाकर अपना करतब दिखाने के एवज में मिले पैसे से परिवार का खर्चा चलाते रहते हैं। यह सब गरीबी की वजह से दो वक्त की रोटी के लिए इस कोरोना वायरस महामारी कार्यकाल में लोगों का मनोरंजन करने पर विवश है। बताते चलें कि इन छोटे-छोटे बच्चे के अभिभावकों के पास कोई रोजगार नहीं है। लेकिन करोना और लॉकडाउन ने उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए मजबूर कर दिया है।
इनकी जीवन शैली सुधारने एवं रोजगार उपलब्ध कराकर जीवन यापन करने का मात्र एक ही बाधा है वो है। सरकार के द्वारा लागू की गई शिक्षा एवं जागरूकता सिस्टम का धरातल पर नहीं उतारा जाना। आज सिस्टम की अपेक्षाओं का शिकार छोटे-छोटे बच्चे हो रहे हैं। जो मजबूरी में रस्सी के सहारे सर्कस दिखा कर लोगों का मनोरंजन करते फिर रहे हैं। मनोरंजन कर रहे बच्चों ने बताया कि मैं दूसरे प्रदेश बिलासपुर से आया हूं।
हम लोग जान हथेली पर रखकर पांच लुटे सर पर रख कर 15 फीट की ऊंचाई पर बंधी रस्सी पर एक पैर से चलते हैं। और साथ ही रस्सी पर थाली में पैर रखकर चलना समेत कई तरह के खतरनाक करतब दिखाकर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। गौरतलब हो कि आजादी के बाद से ही हर सरकार ने गरीबी उन्मूलन के लिए नाना प्रकार की योजनाएं संचालित की लेकिन अभी भी सही ढंग से धरातल पर नहीं उतारी जा सकी। जिसका नतीजा आज भी शिक्षा एवं जागरूकता की कमी की वजह से दो वक्त की रोटी के लिए खतरनाक खेल दिखाकर दर-दर भटक रहे हैं।
हालात यथावत है इसके बावजूद भी सरकार के द्वारा संचालित कई तरह की योजनाएं बनी मगर उनका क्रियान्वयन सही रूप से नहीं उतारा जा सका। शिक्षा और जागरूकता की कमी के चलते छोटे बच्चे कलम की जगह बांस का डंडा और रस्सी का सहारा ले बैठे हैं। सरकार की योजनाए का लाभ गरीब एवं गरीब परिवार के बच्चे के समक्ष नहीं पहुंच पा रही है। जिसके चलते आज भी छोटे-छोटे मासूम बच्चे अपना जान हथेली पर रखकर करतब दिखाने पर विवश हो चुके हैं।