संवाद का दूसरा दिन रिदम्स ऑफ द अर्थ द्वारा आदिवासी संगीत के पहले म्यूजिक एल्बम पर रहा केंद्रित, हिमाचल प्रदेश की बोध जनजाति का पिटी नृत्य ने लोगो को किया मंत्रमुग्ध
जमशेदपुर: संवाद के दूसरे दिन गोपाल मैदान में जनजातीय संगीत के पहले एल्बम का प्रदर्शन हुआ। भारत भर के आदिवासी समुदायों के 52 कलाकारों द्वारा 12 गीतों को संग्रह के रूप में क्यूरेट किया गया था, जिसकी प्रस्तुति स्वराथमा के सहयोग से पेश की गई।
केरल, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मणिपुर के आदिवासी समुदायों के मंत्रमुग्ध कर देने वाले सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा आयोजित जनजातीय सम्मेलन ‘संवाद 2022′ के दूसरे दिन,
शो में चार चांद लगा दिया।
टाटा स्टील फाउंडेशन के सीईओ सौरव रॉय ने कहा, “संवाद का प्रयास जनजातीय संस्कृति के विभिन्न गुणों को एक साथ लाना और आदिवासी लोगों की व्यक्तिगत यात्रा को नई दिशा देना है, जो इसके मूल में हैं। रिदम्स ऑफ़ द अर्थ, संगीत का एक मौलिक अंग है, हम सौभाग्यशाली हैं कि 52 प्रतिभागियों ने अपने संगीत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में सहयोग किया है, और आज इस एल्बम की प्रस्तुति उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
शाम वायनाड जिले में केंद्रित केरल की पनिया जनजाति (जिसे पनियार और पन्यान के नाम से भी जाना जाता है) द्वारा खुशी के अवसरों के दौरान किए जाने वाले नृत्य वट्टक्कली की प्रस्तुति के साथ शुरू हुई।
शाम को गोपाल मैदान में हिमाचल प्रदेश की बोध जनजाति का पिटी नृत्य अगला आकर्षण था। बोध हिमाचल प्रदेश में लाहौल/स्वंगला के सुंदर और शुष्क, बर्फ से ढकी पहाड़ी घाटी प्रांतों से ताल्लुक रखनेवाली एक जनजातीय समूह है। वे बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। पिटी नृत्य
आमतौर पर एक उत्सव के रूप में लोसर (बोध नव वर्ष), विवाह, जन्म समारोह आदि में किया जाता है।
पड़ोसी राज्य ओडिशा की धुर्वा जनजाति द्वारा बिरली नृत्य एक अन्य प्रस्तुति थी, जिसने इस वार्षिक कार्यक्रम को देखने के लिए अच्छी संख्या में एकत्रित दर्शकों को आकर्षित किया। यह नृत्य आमतौर पर जनजातियों द्वारा कटाई के बाद के मौसम में किया जाता है जब उनके घर भोजन और खुशी से भर जाते हैं।
छत्तीसगढ़ की गोंड जनजाति की उप-जाति दंडानी माड़िया ने गौर नृत्य प्रस्तुत किया, जो विवाह, त्योहारों और जात्राओं के दौरान प्रदर्शित किया जाता है। यह जनजाति मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के दक्षिणी जिलों (बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, कांकेर और कोंडगाँव) में रहते हैं।
अगला आकर्षण मणिपुर की मारम नागा जनजाति का माराम युद्ध नृत्य था। मारम नागाओं के पूर्वज महान योद्धा थे, जहाँ सिर इकट्ठा करना बहुत प्रसिद्ध था और वीर माना जाता था, जमा किए गए सिर की संख्या के आधार पर किसी व्यक्ति की प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा को बहुत अधिक महत्व दिया जाता था। यह विशेष युद्ध नृत्य आमतौर पर विजयी अवसरों के दौरान बहुत जोश और उल्लास के साथ किया जाता है।
समकालीन दुनिया में जनजातीय कला की प्रासंगिकता’ जैसे विषयों पर चर्चा हुई, जबकि संवाद फ़ेलोशिप प्रतिभागियों ने ‘सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में डिजिटल मीडिया के उपयोग को समझने’ पर चर्चा की।
संवाद, टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा आयोजित अपनी तरह का पहला अखिल भारतीय आदिवासी सम्मेलन 15 नवंबर को भारत के सबसे व्यापक रूप से सम्मानित आदिवासी नेता बीर बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि देने के साथ शुरू हुआ। उद्घाटन समारोह में 501 नगाड़ों की गूँजती धुन और धूमधाम के बीच जावा का अनावरण किया गया।
संवाद, जनजातीय संस्कृति पर एक सिग्नेचर कार्यक्रम, इस वर्ष अपना 9वां संस्करण आयोजित कर रहा है, जो 15 से 19 नवंबर के बीच आयोजित किया जा रहा है। महामारी के वर्षों के बाद ऑफ़लाइन मोड़ में फिर से शुरू होने वाला, संवाद 2022, दो हज़ार से अधिक लोगों की मेजबानी कर रहा है, जो 200 जनजातियों का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं, जिनमें 23 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों से 27 विशेष रूप से विलुप्तप्राय जनजातीय समूह (PVTGs)शामिल हैं।