शहर के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनाई अपनी पहचान, राष्ट्रीय खेल दिवस पर विशेष
NATIONAL SPORTS DAY 2022:-बचपन में हम सब ने यह कहावत जरूर सुना होगा की पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब। लेकिन अब जिस तरह से लोग खेल मे अपना योगदान दे रहे है अब यह कहावत बदल चुका है। आज के दौर में यह कुछ इस तरह है की पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब पर खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे नायाब। ऐसा इसलिए क्योंकि अब हमारे देश के युवा खेल मे भी खूब तरक्की कर रहे है, वो देश-विदेश में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा रहे है। अब हर तरफ खेलाड़ियों के जज़्बे को सम्मान किया जा रहा है और उनको प्रोत्साहित भी किया जा रहा है।
अगर इस दिन के इतिहास की बात करें तो ये महान हॉकी प्लेयर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस पर हर साल 29 अगस्त को मनाया जाता है, उनके खेलने के अंदाज को देख कर उनके प्रतिद्वंदी भी उनके खेल के मुरीद थे, और इसलिए ही लोग उन्हे हॉकी के जादूगर के नाम से बुलाने लगे। 2012 में भारत सरकार द्वारा उनके जन्म दिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाने का फैसला किया गया।
ध्यानचंद का कद हॉकी में उतना ही बड़ा माना जाता है जितना क्रिकेट में सर डॉन ब्रैडमैन और फुटबॉल में पेले का है। ध्यानचंद जब खेल करते थे तब उनकी अगुवाई में भारतीय टीम हॉकी के खेल में हमेशा ही टॉप पर रही। मेज़र ध्यानचंद ने लगातार तीन ओलंपिक में भारत को गोल्ड मेडल दिलाकर देश का मान बढ़ाया था। ये ओलंपिक साल 1928 में एम्सटर्डम , 1932 में लॉस एंजिल्स और 1936 में बर्लिन में खेले गए थे। मेजर ध्यानचंद को साल 1965 में हॉकी को अपना पूरा जीवन समर्पित करने के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। भारत के इस महान खिलाड़ी के बारे में कहा जाता था कि वह जब हॉकी स्टिक लेकर मैदान पर उतरते थे तो गेंद उनकी स्टिक में ऐसी चिपकी रहती थी, जैसे मानो किसी ने उसपर चुंबक लगा रखी हो। ऐसा ही संदेह होने पर एकबार उनकी स्टिक को तोड़कर जांच भी की गई थी, पर ऐसा कुछ न निकलने पर लोग उन्हे हॉकी का जादूगर कहने लगे।
भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न पुरस्कार है, खेल रत्न को 1991-92 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के नाम से पहली बार दिया गया था, हालांकि साल 2021 में इसका नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया गया था।
हमारे शहर जमशेदपुर के खिलाड़ी भी खेल जगत में खूब नाम कमा रहे है और अपने शहर का नाम रौशन कर रहे है। एक दौर था जब ज्यादातर लड़के ही इसमे रुचि लिया करते थे पर वक्त के साथ हमारे शहर की बेटियाँ भी खुद को साबित कर रही है। हालाकी अब खेल में लड़का-लड़की जैसा कुछ नहीं है अब दोनों ही बराबर स्तर पर कामयाब हो रहे है।
आइए जमशेदपुर के कुछ उम्दा खलाड़ियों पर एक नज़र डालते है:-
प्रेमलता अग्रवाल:-
जमशेदपुर की प्रेमलता अग्रवाल एक महिला पर्वतारोही हैं। इन्होंने 20 मई 2011 कों सुबह 9:35 बजे 48 साल की उम्र में 29,029 फुट की ऊंचाई पर पहुँचकर माउंट एवरेस्ट के शिखर कों छू उन्होने नई उपलब्धि हासिल की। वहीं 50 वर्ष की उम्र में 23 मई 2013 को उत्तरी अमेरिका के अलास्का के माउंट मैकेनले को फतह करके इस पर्वत शिखर पर चढ़ने वाली वे प्रथम भारतीय महिला हैं। इन्हें 2013 में पद्म श्री दिया गया है।
अरुणा मिश्रा:-
इन्होंने अपने शहर को देश और विदेश में एक अलग पहचान दिलाई, ये मुक्केबाज की चैम्पीयन है। इन्होंने भारत के लिया कई पदक भी जीता जैसे 2005 में नार्वे में, 2011 में न्यूयॉर्क में और 2015 में वर्जिनिया में गोल्ड मेडल जीता था। 2002 से मुक्केबाजी कर रही अरुणा एशियाई चैंपियनशिप और राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप में लगातार स्वर्ण पदक जीत रही हैं।
तरुणा मिश्रा:-
तरुणा मिश्रा एक महिला भारतीय मुक्केबाज हैं। इनके करियर के मुख्य आकर्षण में 2003 एशियाई चैंपियनशिप, 2004 विश्व कप और 2011 विश्व पुलिस और फायर गेम्स में स्वर्ण पदक शामिल हैं।
सौरभ तिवारी:-
जमशेदपुर के सौरभ सुनील तिवारी एक भारतीय क्रिकेटर हैं, जो बाएं हाथ के मध्य क्रम के बल्लेबाज के रूप में खेलते हैं। वह मलेशिया में 2008 अंडर -19 विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के प्रमुख बल्लेबाजों में से एक थे। सौरभ की तुलना कभी टीम इंडिया के पूर्व कप्तान एमएस धोनी से होती थी। इसका कारण दोनों का मिडल ऑर्डर का अटैकिंग बैट्समैन होना, बाउंड्री लगाने का स्टाइल और विकटों के बीच तेज दौड़ लगाना था। सौरभ को लेफ्ट हेंडर धोनी तक कहा जाता था।
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