चौधरी चरण सिंह की जीवनी: प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, राजनीतिक करियर, कार्य और योगदान, विरासत

0
Advertisements

चौधरी चरण सिंह की जीवनी- (Shafaque Firdous): चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के नूरपुर ग्राम में एक मध्यम वर्गीय कृषक परिवार में हुआ था। इनका परिवार जाट पृष्ठभूमि वाला था। इनके पुरखे महाराजा नाहर सिंह ने 1887 की प्रथम क्रान्ति में विशेष योगदान दिया था। महाराजा नाहर सिंह वल्लभगढ़ के निवासी थे, जो कि वर्तमान में हरियाणा में आता है। महाराजा नाहर सिंह को दिल्ली के चाँदनी चौक में ब्रिटिश हुकूमत ने फ़ाँसी पर चढ़ा दिया था।

Advertisements

तब अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रान्ति की ज्वाला को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए महाराजा नाहर सिंह के समर्थक और चौधरी चरण सिंह के दादा जी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के पूर्ववर्ती क्षेत्र में निष्क्रमण कर गए। चौधरी चरण सिंह को परिवार में शैक्षणिक वातावरण प्राप्त हुआ था। स्वयं इनका भी शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान रहा। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह चाहते थे कि उनका पुत्र शिक्षित होकर देश सेवा का कार्य करे। उनकी प्राथमिक शिक्षा नूरपुर में ही हुई और उसके बाद मैट्रिकुलेशन के लिए उनका दाखिला मेरठ के सरकारी हाई स्कूल में करा दिया गया। सन 1923 में में चरण सिंह ने विज्ञान विषय में स्नातक किया और दो वर्ष बाद सन 1925 में उन्होंने ने कला वर्ग में स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई की और फिर विधि की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सन 1928 में गाज़ियाबाद में वक़ालत आरम्भ कर दिया। वकालत के दौरान वे अपनी ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष उन्हें न्यायपूर्ण प्रतीत होता था।

See also  टाटा-जम्मूतवी एक्सप्रेस समेत 6 ट्रेनों को रेलवे ने किया रद्द, यात्री होंगे हल्कान

कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (1929) के बाद उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया और सन 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान ‘नमक कानून’ तोड़ने चरण सिंह को 6 महीने की सजा सुनाई गई। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने स्वयं को देश के स्वतन्त्रता संग्राम में पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया। सन 1937 में मात्र 34 साल की उम्र में वे छपरौली (बागपत) से विधान सभा के लिए चुने गए और कृषकों के अधिकार की रक्षा के लिए विधानसभा में एक बिल पेश किया। यह बिल किसानों द्वारा पैदा की गयी फसलों के विपड़न से सम्बंधित था। इसके बाद इस बिल को भारत के तमाम राज्यों ने अपनाया।

1930 में गांधीजी द्वारा चलाये गये “सविनय अवज्ञा आन्दोलन” में नमक कानून तोड़ने का आव्हान किया, चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिंडन नदी पर नमक बनाया था एवम “डांडी मार्च” में भी भाग लिया। इस दौरान इन्हें 6 माह के लिए जैल भी जाना पड़ा। इसके बाद इन्होने महात्मा गाँधी जी की छाया में खुद को स्वतन्त्रता की आँधी का हिस्सा बनाया।  1940 के सत्याग्रह आन्दोलन में भी यह जेल गए उसके बाद 1941 में बाहर आये. फरवरी 1937 में इन्हें विधानसभा के लिए चुना गया। 31 मार्च 1938 में इन्होने “कृषि उत्पाद बाजार विधेयक” पेश किया यह विधेयक किसानों के हित में था, यह विधेयक सर्वप्रथम 1940 में पंजाब द्वारा अपनाया गया. आजादी के बाद, चरण सिंह 1952 में, उत्तरप्रदेश के राजस्व मंत्री बने एवम किसानों के हित में कार्य करते रहे, इन्होने 1952 में “जमींदारी उन्मूलन विधेयक ” पारित किया।

See also  आदित्यपुर : एनआईटी जमशेदपुर में एनएसएस का तीन दिवसीय सस्टेनेबल डेवलपमेंट कार्यक्रम का हुआ समापन, मुख्य वक्ता ने कहा अगर कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता रहा तो 2050 तक 10 लाख प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएंगी

चौधरी चरण सिंह का निधन 1987 में हुआ।  दिल्ली में यमुना के किनारे उनकी समाधि है जिसे किसान घाट के तौर पर जाना जाता है. उनके निधन के बाद लोक दल का नया अध्यक्ष उनके बेटे अजित सिंह को बनाया गया. इसी लोक दल के सहारे उनके बेटे आज राजनीति के मैदान में हैं. देश में अनेक सरकार संस्थान चौधरी चरण सिंह के नाम से हैं।  लखनऊ का अमौसी एयरपोर्ट को भी चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट कहा जाता है।  मेरठ में भी उनके नाम से चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय है।

Thanks for your Feedback!

You may have missed