अनंत चतुर्दशी 2024: मां द्रौपदी द्वारा प्रारंभ की गई अनंत पूजा का विशेष महत्व, जानें अनंत चतुर्दशी का आधुनिक संदर्भ…
लोक आलोक सेन्ट्रल डेस्क– आज अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व है, जो भगवान विष्णु की पूजा और अनंत सुख-समृद्धि की कामना का प्रतीक है। इस विशेष दिन पर हिंदू धर्म के अनुयायी भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं। खास बात यह है कि इस पूजा की शुरुआत महाभारत काल में मां द्रौपदी द्वारा की गई थी, जब उन्होंने अपने संकटों से मुक्ति के लिए भगवान कृष्ण का आह्वान किया था। भगवान कृष्ण ने उन्हें अनंत पूजा और व्रत करने की सलाह दी थी, जिससे उनके कष्ट समाप्त हुए और इस पूजा का शुभारंभ हुआ।
अनंत चतुर्दशी का त्योहार हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है। यह पर्व भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा के लिए समर्पित है, जो सृष्टि, पालन और विनाश के प्रतीक हैं। इस दिन को मुख्य रूप से विष्णु भक्तों द्वारा मनाया जाता है, जो भगवान से सुख, समृद्धि और जीवन में आने वाले सभी संकटों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने और पूजा करने से भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन के हर पहलू में अनंत आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
महाभारत की कथा के अनुसार, जब कौरवों ने पांडवों को छल से हराकर द्रौपदी का अपमान किया और पांडवों को वनवास दिया, तब द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को याद किया। अपने संकटों से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान कृष्ण से सहायता मांगी। भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को अनंत चतुर्दशी का व्रत और पूजा करने की सलाह दी, जिसके परिणामस्वरूप उनके जीवन से संकटों का अंत हुआ। यह कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से ही पांडवों को उनके सारे कष्टों से मुक्ति मिली और उनका सम्मान पुनः स्थापित हुआ।
इसी मान्यता के साथ आज भी भक्त अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और अपने जीवन के सभी संकटों को समाप्त करने की प्रार्थना करते हैं। इस दिन विशेष रूप से महिलाएं अनंत सूत्र, जिसे अनंत धागा कहा जाता है, बांधती हैं और भगवान विष्णु से अपने परिवार की सुरक्षा और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं। पूजा के दौरान एक अनंत सूत्र, जो रेशम या कपास का धागा होता है, बनाया जाता है। इस धागे पर 14 गांठें होती हैं, जो अनंत भगवान विष्णु के 14 रूपों का प्रतीक मानी जाती हैं। इसे पूजा के बाद पुरुष दाहिने हाथ और महिलाएं बाएं हाथ पर बांधती हैं।
पूजा विधि में भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीप जलाकर भोग अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही विशेष प्रसाद, जैसे चावल, दूध, और मिठाई का भोग लगाया जाता है। अनंत सूत्र को बांधते समय भगवान विष्णु से संकटों और दुःखों से मुक्ति की प्रार्थना की जाती है। इसे बांधने के बाद भक्त 14 दिन तक इसे उतारते नहीं हैं, ताकि उन्हें भगवान विष्णु का निरंतर आशीर्वाद प्राप्त हो।
अनंत चतुर्दशी मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, और मध्य प्रदेश के हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इसके अलावा, यह पर्व महाराष्ट्र और गुजरात में भी मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी का पर्व गणपति विसर्जन के साथ भी जुड़ा हुआ है, जहां लोग भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन करते हैं और इसके साथ भगवान विष्णु की अनंत पूजा का भी आयोजन करते हैं।
यह पर्व विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो किसी बड़ी चुनौती, संकट या रोग से गुजर रहे होते हैं। अनंत चतुर्दशी का व्रत उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में मदद करता है।
आज के समय में अनंत चतुर्दशी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में शांति और संतुलन लाने का भी प्रतीक है। आधुनिक जीवन की समस्याओं, जैसे मानसिक तनाव, आर्थिक संकट, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए इस पर्व को एक प्रेरणा के रूप में देखा जाता है। भगवान विष्णु की पूजा और अनंत सूत्र धारण करने से नकारात्मकता को दूर कर जीवन में अनंत ऊर्जा का संचार होता है।
अनंत चतुर्दशी का पर्व न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन में आने वाली कठिनाइयों से लड़ने का एक माध्यम भी है। मां द्रौपदी द्वारा प्रारंभ की गई इस पूजा के महत्व को समझते हुए, आज भी लाखों भक्त भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए इस दिन व्रत रखते हैं और अनंत धागा धारण करते हैं। यह पर्व जीवन में अनंत सुख, समृद्धि, और संकटों से मुक्ति दिलाने की कामना के साथ मनाया जाता है।
इसलिए, अनंत चतुर्दशी का व्रत और पूजा हर व्यक्ति को अपने जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति और भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए अवश्य करना चाहिए।