महालया: आज मां दुर्गा का नेत्रदान करेंगे मूर्तिकार…
जमशेदपुर:आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर मनाए जाने वाले सर्वपितृ अमावस्या का दिन आज है, जो पितृपक्ष का अंतिम दिन है। इस दिन अपने पितरों के तर्पण और श्राद्ध का अंतिम मौका होता है। यदि पूरे पितृपक्ष में किसी कारणवश तर्पण नहीं किया जा सका, तो आज का दिन विशेष महत्व रखता है।
आज जहां लोग अपने पूर्वजों का तर्पण करेंगे, वहीं रात्रि महालया पर मूर्तिकार माता दुर्गा की आंखों में रंग भरेंगे। इस प्रक्रिया के पहले मूर्तिकार विशेष रूप से मां दुर्गा की पूजा करते हैं। इसके बाद से कलश स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र की शुरुआत होगी, जो कि 3 अक्टूबर से प्रारंभ होगी।
माता दुर्गा का धरती पर आगमन:
धार्मिक मान्यता के अनुसार, महालया को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मां दुर्गा कैलाश पर्वत से धरती पर विदा लेती हैं। सत्येंद्र शास्त्री के अनुसार, यदि महालया के दिन देवी का आगमन नहीं होता है, तो शारदीय नवरात्र में मां के 9 स्वरूपों की पूजा नहीं हो पाती। इस दौरान विधिपूर्वक मां दुर्गा की उपासना करने से भक्तों को दुखों से मुक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
पितरों को अंतिम विदाई:
महालया के दिन पितरों को अंतिम विदाई दी जाती है। इसके लिए दूध, तील, कुशा, पुष्प और गंध मिश्रित जल अर्पित किया जाता है, जिससे पूर्वज तृप्त होते हैं। इस दिन विशेष रूप से पितरों की पसंद का भोजन बनाया जाता है, जिसे विभिन्न स्थानों पर प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। इसके अतिरिक्त, भोजन का पहला हिस्सा गाय को, दूसरा देवताओं को, तीसरा कौवे को, चौथा कुत्ते को, और पांचवा हिस्सा चीटियों को दिया जाता है। जल से तर्पण करने से पितरों की प्यास बुझती है।
महालया का यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह अपने पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।