वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे: काउंसलिंग से 2200 लोगों ने चुनी नई राह, सीआईपी और रिनपास में चलाए जा रहे सुसाइड प्रिवेंशन काउंसलिंग सेशन…
रांची/झारखंड:सुसाइड की कोशिश कर चुके 2200 से ज्यादा लोगों ने पिछले एक साल में रिनपास और सीआईपी में काउंसलिंग के बाद फिर से जीने का रास्ता चुना है। रिम्स के आंकड़ों के अनुसार, साल 2023 में लगभग 6000 लोग आत्महत्या के प्रयास के बाद अस्पताल में भर्ती हुए थे, जिनमें से करीब 65% की जान बचाने में डॉक्टर सफल रहे।
सीआईपी और रिनपास में आत्महत्या रोकथाम के लिए काउंसलिंग क्लीनिक चलाए जा रहे हैं, जहां मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामलों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इन संस्थानों ने हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए हैं, जिन पर प्रतिदिन 7 से 10 कॉल आती हैं। पिछले एक साल में सीआईपी की हेल्पलाइन पर 1327 कॉल आ चुकी हैं, जबकि रिनपास की हेल्पलाइन पर 884 लोगों ने मदद के लिए संपर्क किया है।
सिर्फ रांची में ही पिछले तीन महीनों में 100 से ज्यादा आत्महत्याओं के मामले दर्ज किए गए हैं। आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के मुताबिक, हर साल भारत में करीब 7 लाख 3 हजार लोग आत्महत्या करते हैं। इसका मतलब है कि प्रतिदिन लगभग 1927 और प्रति घंटे 80 लोग आत्महत्या करते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते आत्मघाती प्रवृत्तियों को पहचाना जाए और उचित काउंसलिंग दी जाए, तो लगभग 60% आत्महत्याओं को रोका जा सकता है।
रिम्स के न्यूरोसर्जरी विभाग के डॉक्टर विकास कुमार के अनुसार, इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन की रिपोर्ट के अनुसार, हर 100 मौतों में से 1 आत्महत्या से होती है। पुरुषों में आत्महत्या की दर महिलाओं की तुलना में दोगुनी है। आत्महत्या करने वालों में 60% लोग 60 साल से कम उम्र के होते हैं।
सीआईपी के डॉ. एसके मुंडा ने बताया कि 18 से 57 वर्ष की उम्र के लोग ज्यादातर कामकाजी होते हैं, इसलिए कार्यस्थल का तनाव आत्महत्या के मामलों में प्रमुख भूमिका निभाता है। तनावपूर्ण कार्यस्थल पर काम करने से आत्मघाती प्रवृत्तियां बढ़ती हैं। यदि सहकर्मी के व्यवहार में बदलाव नजर आए, तो उनसे बात कर ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है।
पुरुष प्रधान व्यवसायों में, जैसे- कंस्ट्रक्शन, मीडिया, डॉक्टरी, आर्मी और पुलिस में आत्महत्या का खतरा अधिक होता है। इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन के अनुसार, इन क्षेत्रों में काम करने वाले पुरुषों में आत्महत्या का जोखिम ज्यादा पाया जाता है।