एडवोकेट का ड्रेस कोड काला coat ही क्यों..? क्या कुछ और नहीं पहन सकते वह लोग…
लोक आलोक न्यूज सेंट्रल डेस्क :- देश में अलग-अलग प्रोफेशन में ड्रेस कोड अलग है. क्या आप जानते हैं कि काला कोट कबसे वकीलों का ड्रेस कोड बना है? इसके अलावा जानिए काले कपड़े में क्यों लगती है ज्यादा गर्मी, क्या है इसके पीछे वजह.
दुनियाभर के देशों में हर एक प्रोफेशन के लिए एक ड्रेस कोड बना हुआ है. जैसे डॉक्टरों के लिए सफेद कोट हैं. वकीलों के लिए काला कोट है. आपने देखा होगा कि वकील किसी भी कोर्ट कैंपस में हमेशा काला कोर्ट पहनते हैं. लेकिन बढ़ती गर्मी में काला कोट पहनने से गर्मी और ज्यादा लगती है. इसको लेकर अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि वकीलों ने कब काला कोर्ट पहनना शुरू किया था? आज हम आपको इसके पीछे का इतिहास बताएंगे.
काला कोर्ट
वकील कोर्ट रूम या अपने चैंबर हर जगह पर काला कोर्ट पहने होते हैं. इस काले कोर्ट से ही उनकी पहचान होती है. जानकारी के मुताबिक वकीलों के काला कोट पहनने की परंपरा इंग्लैंड से शुरू हुई थी. भारतीय न्यायिक व्यवस्था अंग्रेजों के सिस्टम से ही चलती है. इसलिए भारतीय कोर्ट में वकीलों के ब्लैक कोट पहनने का रिवाज अब भी चल रहा है. 1865 में इंग्लैड के शाही परिवार ने किंग्स चार्ल्स द्वितीय के निधन पर कोर्ट में जज और वकीलों को ब्लैक कपड़े पहनने का आदेश दिया था. हालांकि वकीलों के काले कोट का ड्रेस कोड प्रस्ताव 1637 में ही रखा जा चुका था. जिस कारण वो आम लोगों से अलग दिखे. तब से कोर्ट में ब्लैक कोट पहनने का चलन शुरू हो गया था. वहीं भारत में साल 1961 में वकीलों के लिए काला कोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया था. माना जाता है कि यह ड्रेस कोड वकीलों में अनुशासन लाता है और न्याय के प्रति उनमें विश्वास को बढ़ाता है.
क्या है मामला
सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक इस गर्मी में काले कोट का जिक्र हो रहा है. दरअसल अधिवक्ता शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने अपनी याचिका में कोर्ट से आग्रह किया है कि गर्मी के महीनों में वकीलों को काला कोट और गाउन पहनने से छूट दी जानी चाहिए. याचिका में उन्होंने कहा है कि बढ़ती गर्मी के मौसम में इससे वकीलों को परेशानी और स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं. याचिका में उन्होंने कहा है कि काले कोट और गाउन को ब्रिटिश ड्रेस कोड के रूप में लागू किया गया था. हालांकि इसे लागू करते समय देश की जलवायु पर ध्यान नहीं दिया गया था.