क्या है क्लाउड सीडिंग, जिसका दुबई की बाढ़ से जोड़ा जा रहा कनेक्शन, क्या भारत में भी कभी हुआ इस्तेमाल…
लोक आलोक न्यूज सेंट्रल डेस्क:-What is cloud seeding दुबई में अचानक से हुई बारिश से बाढ़ आ गई। इसके कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं जिसमें देखा जा सकता है कि बड़ी-बड़ी बिल्डिंग पानी में डूबी है और कारें पानी में तैर रही हैं। समाचार एजेंसी एएफपी ने बताया कि इतनी ज्यादा बारिश के पीछे का कारण क्लाउड सीडिंग हो सकता है। क्लाउड सीडिंग क्या है आइए जानते हैं…
एक तरफ जहां दुनिया के कई देश तेज गर्मी से जूझ रहे हैं, तो वहीं संयुक्त अरब अमीरात (दुबई) बाढ़ की स्थिति झेल रहा है। जहां दुबई के लोग बादल देखते तक के लिए तरसते थे, उसी देश में बारिश से लोग आज परेशान हैं। दुबई में एक दिन में एक साल जितनी बारिश दर्ज की गई है।
दुबई में बारिश से कोहराम
दुबई में एकाएक हुई इस बारिश से हाहाकार मच गया। इसके कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि बड़ी-बड़ी बिल्डिंग पानी में डूबी है और कारें पानी में तैर रही हैं। मंगलवार को दुबई में 142 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि यहां सालभर में औसतन 95 मिलीमीटर बारिश ही हो पाती है। AFP के मुताबिक, यूएई में हुई भारी बारिश की एक वजह क्लाउड सीडिंग भी हो सकती है। हालांकि यूएई सरकार ने क्लाउड सीडिंग से इनकार किया है।
क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक आर्टिफिशियल बारिश कराने का एक तरीका है। इसमें सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस को हवाई जहाज की मदद से बादलों पर छोड़ा जाता है। इसमें छोटे कणों को बादलों के बहाव के साथ छिड़क दिया जाता है। ये कण हवा से नमी को सोखते हैं और इसके बाद वो कंडेंस होकर इसके द्रव्यमान को बढ़ा देते हैं। इसके बाद बादलों से बारिश की मोटी बूंदे बनती हैं और बरसने लगती हैं।
कब हुई इसकी शुरुआत?
क्लाउड सीडिंग की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया के बाथुर्स्ट स्थित जनरल इलेक्ट्रिक लैब में फरवरी 1947 में हुआ था। यहीं इसका प्रदर्शन किया गया। इसके बाद कई देशों ने इसका इस्तेमाल किया।
सबसे पहले कहां हुआ इस्तेमाल?
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के न्यूयॉर्क में 1940 के दशक में इसका इस्तेमाल किया गया था। वहीं, इसके बाद चीन और कई और देशों ने इसका इस्तेमाल किया।
क्या भारत में भी हुआ प्रयोग?
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 1952 में भारत में इसका पहली बार परीक्षण किया गया। वहीं, 1984 में तमिलनाडु में इसका पहली बार प्रयोग किया गया। इसके बाद आंध्र प्रदेश में भी इसका इस्तेमाल किया गया।