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विशेष: डॉ ईरानी अब हमारे बीच नहीं रहे |भरपूर जिन्दगी जी कर उन्होंने इस दुनिया से अलविदा कह दिया | उनसे मेरा कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं था |वह टाटा स्टील के शीर्ष पद पर थे ,प्रबंध निदेशक |मैं उस कंपनी में साधारण कर्मचारी भर था | पर सभा संगोष्ठियों में कई बार उनको सुनने समझने का मौका मिला |इस वजह से उनसे जुड़े कई प्रसंग आज भी मेरी यादों में समाए हुए हैं |उन प्रसंग प्रसूनो को आज उनको श्रद्धांजलि स्वरुप समर्पित करना चाहता हूँ |

जब टाटा स्टील में मेरी नौकरी लगी तब ईरानी साहब ऊंचे ओहदे पर थे पर एम डी नहीं बने थे |मजदूरों में अक्सर चर्चा होती थी कि देर सवेर वही टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक बनेंगे | हुआ भी वही |हालाँकि उनकी ताजपोशी के पहले प्रबंधन के शीर्ष स्तर पर कुछ विवाद हुआ था पर जे आर डी टाटा के अभिभावकीय प्रभाव के कारण इस विवाद का सुखद अंत हुआ और प्रबंध निदेशक के रूप में डा. जे जे ईरानी की ताजपोशी हुई | उनके नेतृत्व में टाटा स्टील ने सफलता की नयी ऊंचाइयों को छुआ |

खरी खरी बोलना इरानी साहब का स्वभाव था |इस लिए प्रायः लोग उनको रूखा समझते थे किन्तु सच्चाई यह थी की रूक्षता उनकी बाहरी छवि थी, जिसके अंतस में एक संजीदा इंसान सदैव मौजूद रहता था|एक बार बोनस भुगतान का समय नजदीक आरहा था |उत्पादन उत्पादकता के आधार पर हुए समझौते के फलस्वरूप मजदूर बीस प्रतिशत बोनस के हक़दार थे किन्तु किसी कारणवश कंपनी के मुनाफे में काफी गिरावट आ गई थी तो शंका स्वाभाविक थी कि बीस फीसद बोनस मिलेगा कि नहीं |जब यह शंका ईरानी साहब के कानों तक पहुँची तो स्पष्ट शब्दों में उन्हों ने कहा कि मुनाफा हो न हो ,हम अग्ग्रीमेंट के मुताबिक उनको बीस परसेंट बोनस देंगा |बीस परसेंट बोनस देकर उन्हों ने समझौते का सम्मान किया | अहिन्दी भाषी होने के बावजूद वह सामन्य लोगों के बीच नि:संकोच हिन्दी ही बोलते थे |होएंगा,करेंगा और देंगा ऐसे शब्द उनकी शैली के विशिष्ट अलंकार थे जिनसे हम नौजवानों को नैसर्गिक आनंद मिलता था |उनके भाषणोपरान्त उनके उन शब्दों को हम अपनी बातचीत में शुमार कर लेते थे |

टाटा स्टील में जे डी सी का सालाना जलसा देखने लायक होता था |उस अवसर पर प्रश्नोत्तर कार्यक्रम का आकर्षण ही कुछ और था |मजदूरों की तरफ से सवाल दर सवाल पेश किए जाते थे और प्रबंधन के सम्बद्ध अधिकारी उनके जबाव देते थे |संतोषजनक उत्तर न होने पर प्रायः नोक झोक भी हुआ करती थी |ऐसे से अवसर पर एक बार हमारी विभागीय जे डी सी में सवाल किया गया कि ट्रेड अपरेंटिस की बहाली में लड़कियों को भी अवसर दिया जाय |इसका उत्तर देने के लिए मानव संसाधन विभाग के अधिकारी जैसे ही आगे बढे, मुख्य अतिथि,डा.ईरानी उठते हुए बोले, इसका जबाव हम देंगा, अभी के बाद जब भी टाटा स्टील में ट्रेड अपरेंटिस की बहाली होएगी पांच लडकियां अपरेंटिस में बहाल होंगी और ट्रेनिंग के बाद उनका एम्प्लॉयमेंट आपके विभाग में होएगा | उसी दिन से कंपनी में बतौर अपरेंटिस लड़कियों की बहाली का रास्ता साफ हुआ और प्रथम पांच लड़कियां सचमुच हमारे ही मशीन शॉप विभाग में नियुक्त हुईं |

टाटा स्टील में इ एस एस (यर्ली सेपरेशन स्कीम ) योजना डॉ. ईरानी की नायाब योजना थी जिस पर वैश्विक स्तर पर आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया हुई थी कि भई यह कैसी योजना है कि काम करने वाला एक गुना वेतन पर नौकरी करे और नौकरी छोड़ने वाला डेढ़ गुनी तनखाह लेकर घर जाए | हालांकि इस योजना का भी अपना नफा नुक्सान था किन्तु इस मामले यह अनोखी योजना थी कि इस में साठ साल की उम्र तक मासिक सुनिश्चित आय का प्रावधान था और ताउम्र मुफ्त चिकित्सा की सुविधा भी थी |

मेरे एक सहकर्मी मित्र, गायक थे |उनका कैसेट भी निकलता था |एक बार वह अपना नया कैसेट लेकर ईरानी साहब को भेंट देने गए | डॉ ईरानी ने धन्यवाद देते हुए कैसेट रख लिया |जब मित्र महोदय चलने लगे तो डाक्टर साहब बिना लग लपेट के बोले ,काम करना तो इहाँ रहना और गाना गाना तो बोम्बे जाना | भारी मन लेकर मित्र वापस आ गए |आपबीती सुनाई तो मैं ने उनसे कहा कि डा.इरानी ने आपको चेतावनी नहीं,सलाह दी है कि गायकी में कुछ कर दिखाना है तो आपको बोम्बे जाना चाहिए वरना नौकरी में तो आप यहाँ हैं ही |मेरे मित्र मुस्कराकर बोले, हाँ जी आप ठीक कहते हैं |मैंने कहा, “ठीक मैं नहीं, डॉ. ईरानी बोलते हैं लेकिन हम लोग उनको गलत समझ बैठते हैं”|

डॉ सुखचंद्र झा, वरिष्ठ इतिहासकार एवम साहित्यकार

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