संत इग्निशियस लोयोला का जीवन हर समुदाय के लोग के लिए लाभप्रद है, 500 जयंती वर्ष : फादर (डॉ) मुक्ति क्लेरेंस, एस.जे.

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ईश्वर में सब कुछ नया देखना।

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विशेष (500 जयंती वर्ष)  :  प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 31 जुलाई को येशु समाज के पुरोहित और बंधु गण अपने संरक्षक संत लोयोला का पुण्यतिथि उत्साह उमंग से मना रहे हैं। येशु समाजी – पुरोहित और बंधु गण का वह समाज है, जो सारे विश्व में अपने शिक्षा शोध, समाजिक कार्यों, आध्यात्मिक कार्यों के लिए विख्यात है। भारत वर्ष में येसु समाजी का योगदान सराहनीय रहा है, जिनकी पुष्टि समाज के हर वर्ग के लोग करते हैं। संत जेवियर कॉलेज मुंबई, कोलकाता, अहमदाबाद, रांची इत्यादि कॉलेज और विश्वविद्यालय का संचालन इन्हीं के संस्था द्वारा संचालित किया जाता है। जमशेदपुर में येशु समाजी एक्स.एल.आर.आई. , एक्स. आई.टी.ई. , लोयला जैसे उच्च कोटि के शिक्षण संस्थान को चलाते हैं। हमें बताने में यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वर्तमान के पोप फ्रांसिस येशु समाज संघ के पुरोहित हैं। इस वर्ष येसु समाजी अपने पूज्यनीय संत इग्निशियस को विशेष रूप से याद कर रहे हैं क्योंकि इस वर्ष उनके मन परिवर्तन का (500 जयंती वर्ष ) दृढ़ इच्छाशक्ति हिलकोरे ले रहा है। येसु समाजी अपने को यह जयंती वर्ष मनाने के लिए आध्यात्मिक रूप से तैयार हैं और विनती करते हैं कि उन्हें उनकी कृपा भी मिले और वह सब कुछ ईश्वर में देख सकें।

संत इग्निशियस की आध्यात्मिकता एवं चिंतन केवल येशू समाजी और ईसाई समुदाय के लोग के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के हर एक नागरिक के लिए लाभप्रद है।  इनकी दूरदर्शिता सोच देश और संस्कृति विशेष तक सीमित नहीं है। बहुत सारे शैक्षणिक जर्नल पत्रिका में संत इग्निशियस के सोच को मनोवैज्ञानिक और प्रबंधकिय बताया गया है ,येशु समाज (जेसूट ) संसार का अनूठा संगठन है, जिसकि कार्यप्रणाली संत इग्निशियस के आध्यात्मिकता से प्रेरित है। गूगल की एक बटन उनके खयाति के बारे में सैकड़ों वेबसाइट को हमारे समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। वर्तमान परिस्थिति में येसु समाज ने अपने चार अंतर्राष्ट्रीय एपोस्टोलिक प्राथमिकताओं को घोषित किया है, जहां उन्होंने ईश्वर की इच्छा के अनुसार निर्णय लेने की कोशिश की है:

  1. आध्यात्मिक साधना के द्वारा ईश्वर के मार्ग को दिखाना।
  2. नवयुवकों का साथ देना।
  3. समाज के हाशिए पर हैं उनकी आवाज बनना।
  4. पर्यावरण की देखभाल करना।

संत इग्निशियस लोयोला ने अपने जीवन में बारंबार हृदय परिवर्तन का बोध किया है : जैसे कार्डोनर नदी के किनारे, वेनिस शहर में, रोम के नजदीक ला- स्तोर्ता के छोटे गिरजाघर में इत्यादि। परंतु पंपलोना युद्ध के दौरान 20 मई 1521 ईसवी में घायल होने के बाद स्वास्थ्य लाभ लेते समय उन्होंने प्रथम बार स्वच्छंद भाव से अपने आप में बदलाव की अनुभूति की थी। फलस्वरूप उन्होंने अपने जीवन रूपी नैया का दिशा परिवर्तन किया। उन्होंने दुनिया के राजा के बजाय स्वर्ग के राजा का अनुसरण करना निश्चय किया। ह्रदय परिवर्तन की इसी शुरुआती घटना की स्मृति में येसु समाजी इग्निशियस वर्ष मना रहे हैं। इस इग्निशियस वर्ष का विषय है : ईश्वर में सब कुछ नया देखना।

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इग्निशियस वर्ष हम सब को एक अवसर प्रदान करता है कि हम संत इग्निशियस के जीवन पर चिंतन करें और उसके जीवन को अनुभव करें, ताकि उनके समान हमारे जीवन में भी परिवर्तन संभव हो, हमारा हृदय भी कोमल बन जाए, हम भी ईश्वर के नजरिए से सब कुछ नया देख सकें।

अतः इग्निशियस वर्ष को कृपा और आशीष का वर्ष की संज्ञा देने से नकारा नहीं जा सकता। यह वर्ष हमें प्रेरणा देता है कि जिस तरह संत इग्निशियस ने अपने जीवन में ईश्वर के आश्चर्यजनक कार्यों को अनुभव किया और अपना जीवन सौभाग्यपूर्ण बनाया, उसी तरह हम भी ईश्वर की आशीष को प्राप्त करें, अपने जीवन में परिवर्तन की लहर का अनुभव करें, अपना रुख सोच व्यवहार में बदलाव करें और अंततः अपने जीवन को सार्थक बनाएं।

जब जागो तभी सवेरा हम सबको सीख देता है कि जिस तरह सुबह का ज्ञान जागने के उपरांत होता है उसी तरह हम अपने जीवन में प्रतिबद्धता आनंद सकारात्मकता स्फुर्थी का अनुभव जीवन में बदलाव के छन ही महसूस कर सकते हैं।

पिछले 500 वर्षों से संत इग्निशियस अपने अनुग्रह से येशु समाज को जागरूक और जूझारू बनाते रहे हैं। इस इग्निशियस वर्ष के दौरान और थोड़ी कृपा हम सब को अपने कर्म क्षेत्र में मजबूत कर सकता है। संत इग्निशियस का अनुग्रह पाकर हम भी ईश्वर के और नजदीक आ सकते हैं और उनमें सब कुछ नया देख सकते हैं।

संत इग्निशियस वर्ष निम्नलिखित गुणों को सिखाता है:

  1.  विश्वास और प्रेम- वर्तमान में हमारा देश कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। कोविड-19 ने हमारे जीवन में सामान्य तौर तरीकों को चकनाचूर कर दिया है। इस परिवेश में हमारे पास विश्वास व प्रेम ही एकमात्र विकल्प है जो हमको एक नए सिरे से देखने में सक्षम बनाता है। विश्वास और प्रेम ईश्वर की उपस्थिति का चिन्ह है। इस परिपेक्ष में इग्निशियस वर्ष को हम विश्वास और प्रेम के दीप जलाने की शक्ति प्रदान करता है। जीवन में विश्वास और प्रेम की अनुभूति शीघ्र प्राप्त नहीं होती, पर यह प्रतिदिन आध्यात्मिक और मानवीय क्षेत्र में प्रगति करने से प्राप्त होती है। जैसे संत इग्निशियस का ह्रदय परिवर्तन पूर्णरूपेण पंपलोना युद्ध के उपरांत नहीं हुआ किंतु यह यह घटना उनके लिए एक पाठ्यक्रम निर्धारित किया और उनके जीवन का कायापलट कर दिया। इस अनुभव ने उनको प्रतिदिन आत्म परीक्षण करने के लिए विवश किया। इसका फल यह हुआ कि वे अब जागृत और आध्यात्मिक व्यक्ति बन गए जो उनको ईश्वर को नजदीकी से अनुसरण करने का इच्छा और बल प्रदान किया।
  2. अर्थ और उद्देश्य-   हम सब अनूठे हैं, हमारा व्यवहार अनुपम है। इस संसार को सुंदर बनाने में हम सब अपना सराहनीय योगदान देते आ रहे हैं। अपनी क्षमता को नए संसार के निर्माण में न्योछावर करते हैं। किंतु जीवन में किसी कारणवश निरस्ता हावी होने के कारण अपने जीवन को जल का प्रवाह सूख जाता है। जीवन में अर्थ और उद्देश्य धूमिल हो जाता है और जीवन केबल समय सारणी में लुप्त हो जाता है। ऐसे घड़ी में भी संत इग्निशियस हमारे जीवन में आशा लेकर आते हैं क्योंकि संत इग्निशियस अपने जीवन में अर्थ और उद्देश्य को खोजने के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे। अतः हम उनसे अपने जीवन में अर्थ एवं उद्देश्य प्राप्त करना चाहिए।
  3. आशा और सकारात्मकता भावना-  कभी-कभी जीवन की चुनौतियां जैसे अपने कार्य में असफल होना, दिल की मुराद पूरी ना होना, रिश्ते में कड़वाहट होना, उम्मीद का बांध टूटना, आदि में हमें हताशा और निराशा होती है जो हमारे मन को विचलित कर देता है। इस प्रकार हम नकारात्मकता और मायूसी के गर्त में गिरते चले जाते हैं। इस परिस्थिति में भी संत इग्निशियस हमारी मदद करते हैं। अपने ईश्वर के साथ नए रिश्ते स्थापित करने के पश्चात कुछ समय के विचलन के उपरांत उन्होंने अपने आपको ईश्वर में स्थिर पाया। उन्होंने ईश्वर को अपना केंद्र बिंदु माना। उन्होंने संसार को डर की दृष्टि से नहीं बल्कि आशा से देखा तथा ईश्वर के प्यार से सारे संसार को उज्जवलित करने हेतु अपना जीवन संपूर्ण रूप से अर्पित कर दिया।
  4. विवेकपूर्ण निर्णय-  संत इग्निशियस ने अपने जीवन के हर एक पथ पर अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और उसके अनुसार निर्णय लिया। 1521 ईसवी में बीमार होने के पश्चात जब वह स्वस्थ हो रहे थे तब उन्होंने अपनी ह्रदय की आवाज को सुना और निर्णय लिया कि ईश्वर उन्हें बुला रहे हैं और उन्होंने अपने पुराने सैनी जीवन को छोड़ दिया। यह निर्णय उन्होंने अपने मनोभाव का अवलोकन करने के पश्चात लिया कि कैसे ईश्वर के पथ पर चलने की सोच हमें उमंग से भर देता है किंतु सैनिक बनने की सोच उन्हें नाराज बना देता है। उन्हें ज्ञात हुआ कि निर्णय केवल उनके अंतर्गत नहीं अपितु अन्य लोगों के अंतर्गत भी हे सकता है। वे अपने निर्णय में ईश्वर की इच्छा को समझने लगे थे। वे सोचते थे यदि अन्य संत गण 5 घंटे घुटने टेक कर प्रार्थना कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं 7 घंटे प्रार्थना कर सकते हैं। जब कोई 12 घंटा उपवास कर सकता है तो वह क्यों नहीं 20 घंटे उपवास कर सकते हैं। इन सभी घटनाओं में उन्होंने अपने हृदय में उत्पन्न होने वाली अच्छी और बुरी प्रवृत्तियों को पहचाना। यहां उन्होंने अपने हृदय की आवाज सुनी और मन में संकल्प किया कि ईश्वर नहीं चाहते कि वह अन्य संतों की तरह जीवन जीयें। उन्हें ज्ञात हुआ कि ईश्वर चाहते हैं कि वह अपने व्यक्तिगत जीवन में अपनी क्षमता के अनुसार बिना किसी से तुलना प्रतिस्पर्धा किए हुए उनकी खोज करें। इस प्रकार हम सब भी संत इग्निशियस की तरह अपने जीवन में अपने अंतरात्मा एवं ईश्वर की आवाज सुनकर निर्णय ले सकते हैं। ईश्वर की आवाज सुन कर लिया गया निर्णय हमें जीवन में नजदीकी से उनका अनुसरण करने में आवश्यक, सहायक, सिद्ध होता है। हर मनुष्य के जीवन में पहले से ही ईश्वर को साथी बनाने की लालसा है।
  5.  हर चीज में ईश्वर की प्राप्ति-  अपने मन परिवर्तन के लंबे अंतराल के दौरान संत इग्निशियस को ईश्वर की महान अनुभूति प्राप्त हुई। उन्होंने अनुभव किया कि संपूर्ण सृष्टि ईश्वर से शुरू होती है और इश्वर में वापस लौट जाती है। वह हर मनुष्य के जीवन में क्रियाशील है। इस सच्चाई को नहीं पहचान पाने के कारण हमारा संबंध खराब हो जाता है और हम ईश्वर और अन्य मनुष्यों से दूर हो जाते हैं। हम ईश्वर की खोज में विफल हो जाते हैं। इस पृष्ठभूमि पर संत इग्निशियस हमें सिखाता है कि जब हम इश्वर की परिकल्पना गहराई से नहीं करते, हम हर चीज में ईश्वर की खोज करने में विफल हो जाते हैं। हमें बीज में पेड़, लारवा में तितली और दृष्टि व्यक्ति में संत को देखने की कृपा की जरूरत है। ईश्वर सब जगह है, ईश्वर को हम अपने प्रार्थना और मिस्सा बलिदान में भी अनुभव कर सकते हैं क्योंकि इस समय हमारा हृदय और मन ईश्वर में संलग्न हो जाता है। अपने कार्यों में भी ईश्वर की अनुभूति कर सकते हैं। क्योंकि कार्य देवतुल्य होता है। अपने पर्यावरण में ईश्वर को देखा जा सकता है क्योंकि सब ईश्वर की कृति है। अंत में ईश्वर हमारे हाथ में, सोच में, कलम में, हृदय में सब जगह है।
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निकर्षः-  हम सब इग्नासियुस वर्ष की यात्रा में शामिल हो चुके हैं, हमें यात्रा रूपी नाव को खेना है जहाँ ईश्वर हमें बुला रहे हैं जिससे हम अपने गंतव्य स्थान पर पहुँच सकेंगे। इस यात्रा में हमें एक दूसरे की मदद और रखवाली करना है। इग्नासियुस वर्ष परिवर्त्तन की चर्चा करता है। परिवर्त्तन हमारे मूल्यों पर आधारित है। येसु समाज सबसे आशा करता है कि हम सब संत इग्नासियुस से प्रभावित हो और अपनी आध्यात्मिकता में प्रगति करें। फलस्वरूप हम सब आंतरिक व बाह्य रूप से स्वतंत्र हो जाएँ। हमारा हृदय कोमल हो जाए और ईश्वर के नजारिये से सब कुछ नया देख सकें।

 

फादर (डॉ) मुक्ति क्लेरेंस, एस.जे.

सहयोगी प्रधानाचार्या,  XITE कॉलेज, जमशेदपुर

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