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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को कहा कि एयर इंडिया के भविष्य पर फैसला होने वाला है. इस एयरलाइन के लिए बोली लगाने की आखिरी तिथि 15 सितंबर थी, जो आज खत्म हो रही है. इस एयरलाइन के लिए बोली लगाने वाली कंपनियों में टाटा संस भी शामिल है. दरअसल सबसे अहम बोली टाटा ग्रुप की ओर से मानी जा रही है, जिसने नीलामी में शामिल होने की बात कबूल की. दरअसल, टाटा की बोली इस लिहाज से अहम है कि 68 साल पहले तक इस एयरलाइंस कंपनी पर टाटा का ही मालिकाना हक था. आजादी के बाद उड्डयन क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के चलते सरकार ने कंपनी के 49 फीसदी शेयर्स खरीद लिए. इस तरह 15 साल तक सफलतापूर्वक प्राइवेट एयरलाइंस के तौर पर काम कर रही टाटा एयरलाइंस सरकारी कंपनी बन गई.

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1932 में हुई थी एयरलाइन की शुरुआत हुई थी. आपको बता दें कि जे आर डी टाटा ने 1932 में टाटा एयर सर्विसेज शुरू की थी, जो बाद में टाटा एयरलाइंस हुई और 29 जुलाई 1946 को यह पब्लिक लिमिटेड कंपनी हो गई थी. 1953 में सरकार ने टाटा एयरलाइंस का अधिग्रहण कर लिया और यह सरकारी कंपनी बन गई. अब एक बार फिर टाटा ग्रुप की टाटा संस ने इस एयरलाइन में दिलचस्पी दिखाई है. कहने का मतलब ये है कि करीब 70 साल बाद एक बार फिर एयर इंडिया के टाटा ग्रुप के पास जाने की उम्मीद है. टाटा संस की ग्रुप में 66 फीसदी हिस्सेदारी है, और ये टाटा समूह की प्रमुख स्टेकहोल्डर है.

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सरकार एयरलाइन में अपनी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचना चाहती है जिसमें एआई एक्सप्रेस लिमिटेड में एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी और एयर इंडिया एसएटीएस एयरपोर्ट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी शामिल हैं. विमानन कंपनी साल 2007 में घरेलू ऑपरेटर इंडियन एयरलाइंस के साथ विलय के बाद से घाटे में है. साल 2017 से ही सरकार एयर इंडिया के विनिवेश का प्रयास कर रही है. तब से कई मौके पर प्रयास सफल नहीं हो पाए.

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