पहलगाम आतंकी हमला: कहां से आए आतंकी, कैसे चलीं गोलियां और क्यों चुन लिया गया ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’? जानिए बीते दिन कश्मीर की घाटी में क्या-क्या हुआ…



लोक आलोक सेंट्रल डेस्क:जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पर्यटक स्थल पहलगाम में मंगलवार को एक बार फिर आतंकवाद ने अपनी कायरता का चेहरा दिखाया। बायसरन घाटी में हुए इस हमले ने न सिर्फ इंसानियत को शर्मसार किया बल्कि अमरनाथ यात्रा से पहले सुरक्षा को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह हमला 2019 के बाद का सबसे बड़ा आतंकी हमला बताया जा रहा है।


हमला कहां और कैसे हुआ?
श्रीनगर से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित पहलगाम के पास ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ कही जाने वाली बायसरन घाटी में यह हमला दोपहर करीब तीन बजे हुआ। देवदार के घने जंगलों से निकले आतंकवादी सेना की वर्दी में थे। उन्होंने वहां मौजूद पर्यटकों से पहचान पत्र दिखाने को कहा। प्रारंभिक जानकारी के मुताबिक, आतंकी पर्यटकों के धर्म की पहचान कर उन्हें निशाना बना रहे थे।
गोलियों की आवाजें गूंजने लगीं और पिकनिक मना रहे, खच्चर पर सफर कर रहे, या स्थानीय व्यंजनों का स्वाद ले रहे पर्यटक जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। कुछ लोग पास के पेड़ों के पीछे छिपकर अपनी जान बचाने में कामयाब रहे। इस हमले में भारतीय नागरिकों के साथ-साथ कुछ विदेशी नागरिकों के भी हताहत होने की खबर है।
कौन थे हमलावर, कहां से आए?
इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है, जो लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी संगठन माना जाता है। TRF का सरगना पाकिस्तान में बैठा शेख सज्जाद गुल है। बताया जा रहा है कि हमलावर किश्तवाड़ के रास्ते कोकरनाग होते हुए बायसरन घाटी पहुंचे थे। स्थानीय लोगों के मुताबिक, आतंकियों की संख्या चार से पांच के बीच थी।
हमले के बाद क्या हुआ?
घटना की सूचना मिलते ही सुरक्षा बल मौके पर रवाना हुए। घायलों को सुरक्षित निकालने के लिए हेलीकॉप्टर भेजे गए। इस दौरान स्थानीय टूरिस्ट गाइड और खच्चर चालक भी मानवता का परिचय देते हुए मदद में जुट गए। उन्होंने कई घायलों को कंधों पर उठाकर मुख्य रास्ते तक पहुंचाया।
हमले के बाद आतंकी पहाड़ियों की ओर भाग निकले और फिलहाल किसी के पकड़े जाने की सूचना नहीं है।
हमले का समय और संदेश क्यों है महत्वपूर्ण?
यह हमला ऐसे समय हुआ है जब अमरनाथ यात्रा में सिर्फ ढाई महीने का वक्त बचा है।
यह स्थान यात्रा के नूनवान बेस कैंप से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय सऊदी अरब दौरे पर हैं, और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत यात्रा पर।
साल 2000 में भी अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की यात्रा के दौरान छत्तीसिंहपुरा में 35 सिखों की हत्या हुई थी।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:
प्रधानमंत्री मोदी ने हमले की निंदा करते हुए कहा कि “इस जघन्य कृत्य के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई अडिग है।”
गृहमंत्री अमित शाह ने भी कड़े शब्दों में कहा कि “हमले के पीछे शामिल हर व्यक्ति को कड़ा दंड मिलेगा।”
राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि “सरकार को अब सिर्फ ‘सामान्य हालात’ का ढोल पीटना बंद कर ठोस कार्रवाई करनी चाहिए।”
पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने इसे न सिर्फ पर्यटकों पर, बल्कि पूरी कश्मीरियत पर हमला बताया। उन्होंने जांच की मांग करते हुए सुरक्षा एजेंसियों की भी जवाबदेही तय करने की बात कही।
सवाल अभी भी कायम हैं…
घाटी में आतंकी नेटवर्क किस हद तक फिर सक्रिय हो गया है? क्या अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाने की तैयारी चल रही है? क्या डोमिसाइल को लेकर भड़काई जा रही अफवाहें आतंकवाद का नया चेहरा हैं?
पहलगाम का यह हमला हमें फिर याद दिलाता है कि आतंक की आग कभी भी मासूम जिंदगी को लील सकती है। ये सिर्फ गोलियां नहीं थीं, ये उस भरोसे पर हमला था जो लोग जम्मू-कश्मीर की खूबसूरती और शांति पर करते हैं।
इस बार सवाल सख्त हैं और जवाबों में अब कोई जगह नहीं बची बहानों की।
