130वीं ‘सृजन संवाद’ कला की दुनिया में प्रयाग शुक्ल
जमशेदपुर : 5 अक्टूबर 2023 को ‘सृजन संवाद’ जमशेदपुर, की 130वीं संगोष्ठी का आयोजन स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर किया गया। इसमें प्रसिद्ध चित्रकार, कला समीक्षक, कवि, कहानीकार, फ़िल्म विशेषज्ञ प्रयाग शुक्ल आमंत्रित थे। उन्होंने ‘कला की दुनिया’ पर अपनी बात रखी। कार्यक्रम का संचालन ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी ने किया। सर्वप्रथम ‘सृजन संवाद’ की संयोजिका डॉ. विजय शर्मा ने सबका स्वागत किया। उन्होंने बताया कि वे बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न प्रयाग शुक्ल जी से कई बार मिली हैं और हर बार उन्हें बहुत सहज-सरल पाया है। उन्होंने प्रयाग शुल्क के संपादन में निकलने वाली पत्रिकाओं यथा ‘संगना’, ‘रंग-प्रसंग’ में कई बार लिखा है। ‘सृजन संवाद’ शुक्ल जी को आमंत्रित कर गौरवान्वित है।
रेखांकनकर्ता तथा साक्षात्कारकर्ता शशि भूषण बडोनी ने प्रयाग शुक्ल का विस्तृत परिचय दिया। कवि, कथाकार, अनुवादक, क्यूरेटर, कला-समीक्षक, रंगमंच और सिनेमा पर भी लिखते रहे शुक्ल जी की लगभग पचास पुस्तकें प्रकाशित हैं। अनुवाद हेतु उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है, इसके साथ द्विजदेव सम्मान, दिनकर पुरस्कार, कृति पुरस्कार, श्री नरेश मेहता पुरस्कार आदि से भी वे सम्मानित हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता कवि ओक्ताविओ पाज की कविताओं के अनुवाद साहित्य अकादेमी से प्रकाशित हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ का मूल बांग्ला से अनुवाद सराहा गया है। 1984 में आयोवा इंटरनेशन राइटिंग प्रोग्राम (अमेरिका) के लिए आमंत्रित किये गये। टाइम्स आफ इंडिया ग्रुप के पत्र —‘दिनमान’ के कला-समीक्षक रहे, और ‘नवभारत टाइम्स’ दैनिक के कला-संपादक। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका ‘रंग प्रसंग’ के और संगीत नाटक अकादेमी की पत्रिका ‘संगना’ के, संस्थापक-संपादक। देश-विदेश की बहुतेरी यात्राऐं की हैं।
विभिन्न व्यक्तियों के सानिध्य से अपने जीवन की दशा-दिशा मिलने के संदर्भ को बताते हुए प्रयाग शुक्ल ने अपने वक्तव्य में कहा कि वे जीवन में इतना कुछ कर लेते हैं, इससे उन्हें स्वयं भी आश्चर्य होता है। उन्हें अपने पिता के अलावा हुसैन, बद्री विशाल पित्ती, अज्ञेय, अशोक सेक्सरिया, सत्यजित राय तमाम लोगों से जीवन दृष्टि, कला दृष्टि, साहित्य दृष्टि प्राप्त हुई। चित्रकार राजकुमार जैसे लोगों ने उन्हें बनाया-संवारा और कठिन दिनों में निकुंठ भाव से सहारा दिया। उन्होंने कई बार तत्काल आर्थिक पूर्ति केलिए अनुवाद कार्य किया। अनुवाद कार्य बहुत कठिन होता है, यह बहुत बड़ी चुनौती है। उनके अनुवादों की भरपूर प्रशंसा हुई है। वे खूब यात्राएँ करते हैं, कई बार लोगों-संस्थाओं के बुलावे पर और कई बार अपनी इच्छा से कई स्थानों पर जाते हैं। उन्होंने कलकत्ता, हैदराबाद, दिल्ली तथा कई कॉलेज के अपने अनुभव साझा किए। वे आज के युवा कलाकारों के काम को देख कर काफ़ी प्रसन्न हैं, उन्हें कला का भविष्य उज्ज्वल दीखता है। आज कलाकार विभिन्न माध्यमों का प्रयोग कर रहे हैं, यह स्वागत योग्य है। पहचान पर उन्होंने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही, कैसी पहचान आप बनाना चाहते हैं? किसी को भी पूरी दुनिया नहीं जानती है। पहचान की चिंता छोड़ कर अपना काम करते जाना चाहिए।
बातें अभी बहुत थीं, बहुत सारे प्रश्न थे, प्रयाग शुक्ल के जीवन के कई आयामों पर दर्शक/श्रोता उन्हें सुनना चाहते थे, मगर समय की बाध्यता थी। सृजन संवाद उन्हें पुन: आमंत्रित करना चाहता है। करीब सवा घंटे चले इस प्रोग्राम में संचालक वैभव मणि त्रिपाठी, कलाकार सीरज सक्सेना तथा विजय शर्मा के प्रश्नों का उत्तर उन्होंने बहुत धैर्य के साथ दिया। फ़ेसबुक लाइव से जुड़े दर्शक/श्रोता की टिप्पणियों ने कार्यक्रम को सजीव बनाए रखा। कलाकार सीरज सक्सेना ने प्रयाग शुक्ल के वक्तव्य को समेटते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।
देहरादून से सिने-इतिहासकार-समीक्षक मनमोहन चड्ढ़ा, सत्यानंद बडोनी, प्रबोध उनियाल, उत्तराखंड से गंभीर सिंह पलनी, गोरखपुर से अनुराग रंजन, जमशेदपुर से डॉ नेहा तिवारी, डॉ. क्षमा त्रिपाठी, गीता दूबे, दिल्ली से कहानीकार ओमा शर्मा, कलाकार अंकित उपाध्याय, बृजेश्वर मणि त्रिपाठी, प्रज्ञा पाण्डेय, अभिनेत्री-व्यॉज-ओवर करने वाली उमा शर्मा, रेखांकनकर्ता अरुष सिंह, मुजफ़्फ़रपुर से चित्रांशी पाण्डेय, बैंग्लोर से पत्रकार अनघा मारीषा, कलाकार परमानंद रमण फ़ेसबुक लाइव के माध्यम से उपस्थित थे, इनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और समृद्ध हुआ।
प्रयाग शुक्ल ने भविष्य में पुन: ‘सृजन संवाद’ में आने की इच्छा जाहिर की। हम उन्हें बार-बार बुलाना चाहेंगे। डॉ. विजय शर्मा ने अगले महीने ‘सृजन संवाद’ में साहित्य चर्चा की घोषणा कर कार्यक्रम की समाप्ति की।