क्यों मनाई जाती हैं साल में दो बार नवरात्रि? जानिए चैत्र और शारदीय नवरात्रि में क्या है अंतर और विशेषता…



लोक आलोक सेंट्रल डेस्क: हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह पर्व साल में दो बार क्यों मनाया जाता है? चैत्र और शारदीय — ये दो मुख्य नवरात्रियां हैं, जो पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती हैं। हालांकि दोनों ही पर्व मां दुर्गा को समर्पित हैं, फिर भी इनके पीछे की मान्यताएं, प्रकृति और उद्देश्य कुछ अलग हैं। आइए जानते हैं इन दोनों नवरात्रियों के पीछे का रहस्य।


चैत्र नवरात्रि: नववर्ष की शुरुआत के साथ
चैत्र नवरात्रि हर वर्ष वसंत ऋतु में चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है। इसे हिंदू नववर्ष की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है। यही कारण है कि इसे ‘वसंत नवरात्रि’ भी कहा जाता है। इस दौरान माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है और व्रत-उपवास रखे जाते हैं। चैत्र नवरात्रि में राम नवमी का पर्व भी आता है, जो भगवान राम के जन्म का दिन होता है।
शारदीय नवरात्रि: अंधकार पर विजय का प्रतीक
शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होती है, जो सितंबर-अक्टूबर के बीच आती है। यह नवरात्रि देवी दुर्गा की शक्ति और असुरों पर विजय का प्रतीक मानी जाती है। दसवें दिन विजयादशमी मनाई जाती है, जिसे रावण पर भगवान राम की विजय के रूप में देखा जाता है। शारदीय नवरात्रि की भव्यता और सामाजिक उत्सव भी अधिक व्यापक होते हैं, जैसे गरबा, डांडिया, दुर्गा पूजा और रामलीला।
क्या है दोनों में मुख्य अंतर?
1. समय: चैत्र नवरात्रि वसंत ऋतु में और शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु में आती है।
2. धार्मिक दृष्टिकोण: चैत्र नवरात्रि में धार्मिक रूप से आत्म-शुद्धि, ध्यान और साधना पर ज़ोर दिया जाता है, जबकि शारदीय नवरात्रि में शक्ति आराधना और सामाजिक उत्सवों की प्रधानता होती है।
3. ज्योतिषीय महत्त्व: दोनों ही नवरात्रियां सौर संक्रमण के समय होती हैं, जिन्हें ‘संधिकाल’ कहा जाता है — यह आत्मिक उन्नति के लिए उत्तम समय माना गया है।
4. लोकप्रियता: शारदीय नवरात्रि की भव्यता अधिक होती है, जबकि चैत्र नवरात्रि को अधिकतर साधक और भक्त विशेष रूप से मनाते हैं।
नवरात्रि केवल देवी की पूजा का पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मशक्ति, संयम और सांस्कृतिक चेतना का पर्व है। साल में दो बार इसका आना हमें यह याद दिलाता है कि चाहे ऋतु कोई भी हो, शक्ति, भक्ति और साधना का मार्ग कभी नहीं रुकता। दोनों नवरात्रियां मिलकर हमारे जीवन में संतुलन और ऊर्जा का संचार करती हैं।
