आगामी विधानसभा चुनाव: भाजपा के लिए सरायकेला विधानसभा क्या इस बार भी साबित होगा अभेद्य किला? पूर्व मुख्यमंत्री सह चंपाई सोरेन क्या इस बार भी पेश करेंगे दावेदारी या फिर बेटे बाबूलाल सोरेन समाजसेवी का बड़ी बेटी दुखनी सोरेन को मिल सकेगा उत्तराधिकारी बनने का मौका?…
सरायकेला:– आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर क्षेत्र में सरायकेला विधानसभा सीट के लिए एक बार फिर से अटकलें तेज हो गई हैं। तकरीबन दो दशकों तक भाजपा के लिए अभेद्य किला बनी हुई सरायकेला विधानसभा सीट पर वर्तमान विधायक चंपाई सोरेन सह पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के सामने प्रत्याशी घुटने टेक ते नजर आ रहे हैं। यहां तक कि बीते 2014 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भी सरायकेला विधानसभा सीट पर लहर अपना असर दिखने में नाकामयाब साबित हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि सरायकेला विधानसभा क्षेत्र की जनता पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन द्वारा किए गए विकास कार्यों और सभी के सुख-दुख में अपने मिलनसार स्वभाव के कारण कोई और विकल्प पसंद ही नहीं कर रही है। इसी बीच एक और विषय चर्चा का विषय बना हुआ है कि सरायकेला विधानसभा सीट से सात बार विधायक रह चुके पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन क्या आठवीं बार भी इतिहास दोहराएंगे। या फिर अपनी विरासत अपने उत्तराधिकारी को सौंपेंगे। वैसे उनके प्रबल उत्तराधिकारी के तौर पर उनके बेटे बाबूलाल सोरेन और समाजसेविका बड़ी बेटी दुखनी सोरेन का नाम सबसे आगे बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि बेटे बाबूलाल सोरेन की सरायकेला क्षेत्र में काफी अच्छी पकड़ होने के साथ-साथ आदिवासी और महतो समाज में भी उनकी एक अच्छी पहचान रही है। वहीं बड़ी बेटी दुखनी सोरेन की पहचान एक स्वच्छ छवि वाली समाज सेविका के रूप में प्रचलित है। दुखनी सोरेन लोगों के सुख-दुख में सदैव सम्मिलित होने और लोगों की मांगों को सरकार तक पहुंचाने तथा जनता की हक की लड़ाई लड़ने के लिए समर्पित स्वभाव की रही है। वही दुखनी सोरेन को आदिवासी वर्ग के साथ-साथ गैर आदिवासी वर्ग का भी अच्छा खासा समर्थन मिलता रहा है। उक्त सभी मंथन के बीच आमजन कयास लग रही है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन खुद ही मैदान में उतरेंगे या फिर एक नए चेहरे को जनता के सामने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर लाएंगे। या फिर भाजपा के लिए गले की हड्डी बनी हुई सरायकेला विधानसभा सीट पर जनता भाजपा को मौका देती है या नहीं?