त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग : ऐसी मान्यता है कि यहाँ कालसर्प दोष से मिलती है मुक्ति

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त्र्यंबकेश्वर महादेव : (shreya )-  त्र्यंबकेश्वर मंदिर हिंदुओं के पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ स्थल में से एक है। ये भारत में स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से 10वां ज्योतिर्लिंगों है। ये मंदिर भारत के महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर गौतमी नदी के किनारे पर है। इस मंदिर की खासियत है कि ये सदाशिव, ब्रह्मा विष्णु भगवान के तीन लिंगों के रुपों में त्रिदेव विद्यमान है। जिनके दर्शन से त्रिदेव की पूजा का फल मिलता है और मोक्षद्वार खुल जाते हैं। इसके अलावा इस मंदिर के सामने तीन पहाड़ है जिसमें 1- ब्रह्मगिरी पर्वत 2- नीलगीरी पर्वत 3 गंगाद्वार पर्वत है। ये भगवान शिव के स्वयभूं ज्योतिर्लिंग मंदिर होने के कारण और अपनी पुरानी अहमियत और भव्यता से हर वक्त सुर्खियों में रहता है।

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इस प्रसिद्ध मंदिर को नानासाहेब पेशवा ने बनाया था। भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण 1755 से शुरू हुआ था। जो 1786 तक पुरा किया गया था। लेखों के अनुसार इस प्रसिद्ध, भव्य और आकर्षित मंदिर का निर्माण कार्य के लिए लगभग 18 लाख खर्च किए गए थे। कहा जाता है कि त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है, इस मंदिर का निर्माण कार्य बहुत ही अद्भुत, अनोखी और आकर्षित है। ये मंदिर का भव्य इमारत सिंधु आर्यशैली का अद्भुत उदाहरण है। इस मंदिर के गर्भगृह में से देखने के बाद सिर्फ आंख ही दिखाई देती है, ना की लिंग। अगर अच्छी तरह से देखा जाए तो 1 इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं, जिसे त्रिदेव लिंग कहा जाता है,जो ब्रह्मा विष्णु महेश का अवतार माना जाता है।

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भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक होने के कारण इसे दूसरे ज्योतिर्लिंग की तरह पवित्र और वास्तविक माना जाता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर हिंदू धर्म की वंशावली का पंजीकरण माना जाता है। इस मंदिर में वंशावली पंजीकरण के साथ ही इस मंदिर के पंचकोशी में काल सर्प शांति ,त्रिपिंडी विधि और नारायण नागवली विधि भी करवाई जाती है। ये आयोजन भत्तफ़ों द्वारा अपनी मनोकामना पूरी या अपनी इच्छा पूरी होने के बाद किया जाता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर भगवान शिव की मंदिर होने के कारण इस मंदिर से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु, और शिव एक ही में विराजित है, जिस कारण इसे त्रिदेव विराजित मंदिर कहा जाता है। भगवान शिव की मंदिर होने के कारण ये हिंदू धर्म की मान्यता कही जाती है। कहां जाता है इस जगह पर मां गंगा जी ने दोबारा अवतार लिया था।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर की पूजन विधि में उज्जैन और ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग की तरह बंकेश्वर महादेव की एक राजा की तरह हर सोमवार को शाही सवारी निकाली जाती है। त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखोटे को पालकी में बिठा कर गांव में घुमाया जाता है। पुराणों के अनुसार कहा गया है कि, गांव में घुमाने के बाद कुशावर्त घाट तीर्थ में स्नान कराया जाता है।

इस मंदिर का रहस्य महर्षि गौतम के साथ जुड़ा हुआ है। पुराणों की लेख अनुसार कहा जाता है कि, महर्षि गौतम की मठ में ब्राह्मणों और उनकी पत्नियों का निवास था। ब्राह्मण की पत्नियां महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या से किसी वजह से नाराज थी। इस निराशा के कारण उन्होंने अपने पतियों से अनुरोध किया कि वे महर्षि गौतम को अपमान करें और इस आश्रम से निकाले। इस अनुरोध को मान कर सभी ब्राह्मणों ने भगवान श्री गणेश जी की आराधना की। भगवान श्री गणेश जी ब्राह्मणों से खुश होकर उनके सामने प्रगट हुए और उनसे अपनी इच्छा मांगने को कहा।

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भगवान श्री गणेश जी की वर मांगने की बात सुनकर सभी ब्राह्मणों ने कहा कि, अगर वो उनकी उपासना या श्रद्धा से खुश है तो, वो उनकी महर्षि गौतम को अपमान करने की इच्छा पूरी करें और इस आश्रम से बाहर निकाल दीजिए। भगवान श्री गणेश जी ने ये इच्छा सुनकर उन्हें समझाने की बहुत कोशिश किया लकिन ब्राम्हण अपनी पत्नी के अनुसार अपने इस ख्याल से ना हटने का सोच रखा था। आखिर में भगवान श्री गणेश जी को उनकी मांगी गई इच्छा की पूरी करनी पड़ी।

इस इच्छा को पूरी करने के बाद भगवान श्री गणेश जी ने दुर्बल गाय का रूप धारण किया तथा महर्षि गौतम जी के खेत में चरने लगे। जब गौतम ऋषि ने दुर्बल गाय को अपने खेत में चरते हुए देखा तो वो गुस्से में आकर उन्होंने अपना तृण उठाया और उस गाय को भगाने के लिए। जैसे ही, उन्होंने तृण से गाय को स्पर्श किया, गाय जमीन पर गिर गयी। जिससे उसकी मृत्यु हो गई। जब ये ब्राह्मणों को पता चला तो सभी ब्राह्मण गौतम ऋषि का अपमान करने लगे और उन्हें आश्रम छोड़कर जाने को कहा।
महर्षि गौतम दुखी होकर ब्राह्मणों से अनुरोध करने लगे की मुझे इस गौ हत्या पाप से बचाइए मुझे इस पाप से मुक्ति के लिए मार्ग दिखाइए। सभी ब्राह्मणों ने विचार करके। महर्षि गौतम को पृथ्वी की तीन बार पूरी परिक्रमा करने को कहा तथा इस परिक्रमा को पूरी करने के बाद एक महिना तक ब्रह्मागिरी पहाड़ पर व्रत रख के 101 बार चक्कर लगाने के लिए कहा। इस बात को सुनते ही महर्षि गौतम ने अपने पाप से मुत्तिफ़ पाने के लिए इसे पूरा किया।

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इस विधि को पूरा करने के बाद भगवान शिव ने खुश होकर गौतम ऋषि को दर्शन दिए। उनसे कहा कि वो अपनी इच्छा से कोई वरदान मांग सकते हैं। ऋषि ने अपनी इच्छा में गौ हत्या के पाप से मुत्तिफ़ पाने के लिए वरदान मांगा। ये सुनते ही शिवजी ने बताया कि ये कोई पाप नहीं है, ब्राह्मणों के मांगे गए वरदान को पूरी करने के लिए श्री गणेश जी ने किया था। जिसके लिए शिव जी कहते हैं, कि वो ब्राह्मणों को दंड देना चाहते हैं। तो महर्षि गौतम ने भगवान शिव जी से अनुरोध किया कि वो ऐसा ना करें क्योंकि ब्राह्मणों के कारण ही मुझे आपके दर्शन हुए।

वहां उपस्थित ऋषि-मुनियों और देवताओं ने महर्षि गौतम का समर्थन किया। आदिशंकर से उस जगह पर हमेशा के लिए विराजित होने की इच्छा की। जिसके बाद ये जगह त्रिदेव और शिवशंभू महादेव के 10 वें ज्योतिर्लिंग त्रंबकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है।

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