श्रीराम कथा में राम-सीता विवाह के प्रसंग की हुई कथा, प्रसंग सुनकर श्रद्धालुओं ने लगाए जयकारे, संगीतमय कथा पर घंटों झूमते रहे श्रद्धालु

Advertisements

■ धैर्य के साथ जीवन में भगवान श्रीराम की मर्यादाओं को अपनाने से जीवन का होगा कल्याण: पूज्य साध्वी डॉ विशेश्वरी देवी।

Advertisements
Advertisements

जमशेदपुर(संवाददाता ):- सिदगोड़ा सूर्य मंदिर कमिटी द्वारा श्रीराम मंदिर स्थापना के द्वितीय वर्षगांठ के अवसर पर संगीतमय श्रीराम कथा के तृतीय दिन कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मुन्ना अग्रवाल उनकी धर्मपत्नी एवं ईश्वर प्रसाद ने अपने धर्मपत्नी संग कथा व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया। पूजन पश्चात हरिद्वार से पधारे कथा व्यास परम् पूज्य साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी का स्वागत किया गया। स्वागत के पश्चात कथा व्यास साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी ने श्रीराम कथा के तृतीय दिन चारों भाइयों के विवाह उत्सव के प्रसंग का अत्यंत मनोरम वर्णन किया।

व्यास साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी ने राम-सीता विवाह प्रसंग सुनाते हुए कहा कि शिव-धनुष टूटने के बाद परशुरामजी आते हैं और जनक को आक्रोश व्यक्त करते हैं। उनका और लक्ष्मण जी का संवाद होता है, लेकिन प्रभु श्रीराम सरल स्वभाव से उनसे बात करते हैं, तब परशुरामजी शांत होते हैं। राजा जनक दशरथ के पास दूत भेजकर बरात लाने को कहते हैं अयोध्या में भी इस समाचार से चारों ओर खुशी का माहौल हो जाता है। राजा दशरथ जी भरत और शत्रुघ्न तथा गुरुदेव वशिष्ठ के साथ जनकपुर पहुंचते हैं। यहां भरत का विवाह मांडवी से, लक्ष्मण जी का विवाह उर्मिला से तथा शत्रुघ्न जी का विवाह श्रुतिकीर्तिका से होता है। पूज्य साध्वी जी ने कहा कि राम विवाह एक आदर्श विवाह है। तुलसीदास ने राजा दशरथ, राजा जनक, राम व सीता की तुलना करते हुए बताया है कि ऐसा समधी, ऐसा नगर, ऐसा दूल्हा, ऐसी दुल्हन की तीनों लोक में कोई बराबरी नहीं हो सकती। इस दौरान संगीतमय भजन पर श्रद्धालु घंटों झूमते रहे।

See also  5 महीने जेल में बिताने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन की हुई वापसी...

कथा में आगे वर्णन करते हुए पूज्य साध्वी ने बताया कि सबके मन में भगवान श्रीराम के राज तिलक की कामना जागृत हुई, किन्तु किसी ने भी उसे प्रकट नहीं किया। संकेत यह है कि सुख की कोई सीमा नहीं होती किन्तु उसका अन्त अवश्य होता है। हम जीवन में केवल सुख ही सुख पाना चाहते हैं, दुःख नहीं किन्तु फिर भी दुःख जीवन में आता है, क्योंकि सुख और दुःख दोनों ही जीवन के अभिन्न अंग हैं। जो सुख की कामना करता है वह दुःख से भी अछूता नहीं रह सकता। अयोध्यावासियों को भी सुख के बाद दुःख का भोग अपेक्षित था। अतः मन्थरा और कैकयी के माध्यम से श्रीराम के वन गमन की पृष्ठभूमि तैयार हुई।
महाराज दशरथ ने सत्य का पालन करते हुए कैकयी को दो वरदान दिये। जब भगवान श्रीराम को इसका ज्ञान हुआ तो वह श्रीसीता जी एवं लक्ष्मण जी सहित वन के लिए प्रस्थान करने को उद्यत हुए। श्रीराम का वन गमन कई दृष्टियों से देखा जा सकता है, जैसे 1- माता-पिता के वचन को निभाने के लिए भगवान ने समस्त वैभव का त्याग करके वन गमन स्वीकार किया। 2- अनुज श्रीमरत के लिए भ्रातृ प्रेम का दर्शन कराते हुए भगवान वन को गए। 3- संत सेवा एवं कठोर साधना के लिए भगवान ने वन स्वीकार किया। 4- वन वासी कोल भील आदि आदि जातियों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए भगवान ने वनवास स्वीकार किया। 5- अनेक भूखण्डों को एकजुट करके अखंड राष्ट्र बनाने के लिए भगवान ने वन यात्रा की। 6- रावण जैसे धर्म विरोधी एवं राष्ट्र विरोधी राक्षस के वध के लिए वनवास स्वीकार किया। 7- वानर भालुओं से मित्रता करके उन्हें सनातन धर्म से जोड़ने के लिए भगवान ने वनवास स्वीकार किया।

See also  जमशेदपुर महिला विश्वविद्यालय की पांच NCC कैडेट्स का थल सैनिक कैम्प इंटर ग्रुप कॉम्पिटिशन के लिए चयन

कल कथा के चतुर्थ दिन केवट प्रसंग एवं श्री भरत चरित्र का वर्णन।

कथा के दौरान पूर्व विधायक मेनका सरदार, विभीषण सरदार, रीता मिश्रा, निर्भय सिंह, अजय सिंह, शैलेन्द्र सिंह, राकेश चौधरी समेत सूर्य मंदिर कमेटी के अध्यक्ष संजीव सिंह, महासचिव गुँजन यादव, श्रीराम कथा के प्रभारी कमलेश सिंह, संजय सिंह, मांन्तु बनर्जी, विनय शर्मा, अखिलेश चौधरी, राजेश यादव, शशिकांत सिंह, दीपक विश्वास, दिनेश कुमार, भूपेंद्र सिंह, मिथिलेश सिंह यादव, रामबाबू तिवारी, सुशांत पांडा, पवन अग्रवाल, अमरजीत सिंह राजा, राकेश सिंह, कुमार अभिषेक, प्रेम झा, कंचन दत्ता, सुरेश शर्मा, कौस्तव रॉय, बिनोद सिंह, संतोष ठाकुर, रमेश नाग, मृत्युंजय यादव, मिथिलेश साव, मुकेश कुमार समेत अन्य उपस्थित थे।