तीन साल से फैसला सुरक्षित, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट को लगाई फटकार; कहा– न्याय न मिलना सबसे बड़ा अन्याय, मांगी पूरी रिपोर्ट…

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लोक आलोक सेंट्रल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम सुनवाई के दौरान झारखंड हाई कोर्ट को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि “जहां न्याय में देरी, न्याय से वंचित करने के समान है, वहीं न्याय न मिलना उससे भी अधिक पीड़ादायक और अन्यायपूर्ण है।” यह टिप्पणी चार आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों की अपील पर सुनवाई के दौरान की गई, जिनके मामले पर हाई कोर्ट ने लगभग तीन साल पहले फैसला सुरक्षित रखा था, लेकिन अब तक सुनाया नहीं गया।

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बिरसा मुंडा जेल में बंद इन चार दोषियों – पिला पाहन, सोमा बदंग, सत्यनार और धर्मेश उरांव – ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि उनकी अपीलों पर जल्द से जल्द फैसला सुनाया जाए, क्योंकि वे बिना अंतिम निर्णय के वर्षों से जेल में बंद हैं। इनमें से कुछ दोषी 11 से 16 साल तक की सजा काट चुके हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए झारखंड हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वे दो महीने से अधिक समय से सुरक्षित रखे गए सभी फैसलों की विस्तृत रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करें।

वकील फौजिया शकील ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय से आते हैं और अपीलों पर निर्णय न होने के कारण वे कानूनी राहत से वंचित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह समस्या केवल चार लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐसी ही स्थिति में 10 अन्य आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे कैदी भी हैं, जिनकी अपीलें वर्षों से लंबित हैं।

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याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि दोषियों ने कई बार राज्य के अधिकारियों, विधिक संस्थाओं और जेल निरीक्षण के दौरान अपनी शिकायतें दर्ज कराई थीं, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसलों का हवाला देते हुए फिर दोहराया कि किसी भी निर्णय को सुरक्षित रखने के बाद अधिकतम तीन से छह महीनों के भीतर फैसला सुनाया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि आजीवन सजा काट रहे ऐसे दोषी जिन्हें आठ साल की वास्तविक सजा हो चुकी है, उन्हें जमानत दी जानी चाहिए।

इस मामले ने न्याय प्रणाली में फैसलों की अनावश्यक देरी की गंभीरता को फिर से उजागर कर दिया है और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने ऐसी देरी को लेकर सख्ती से जवाबदेही तय करने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है।

 

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