समय की मार: जमशेदपुर में घटती लाइब्रेरी की संख्या, मोबाइल ने छीना पढ़ने का शौक…



लोक आलोक सेंट्रल डेस्क:एक वक्त था जब लाइब्रेरी ज्ञान का सबसे बड़ा केंद्र मानी जाती थी, लेकिन आज के डिजिटल युग में किताबों की खुशबू और लाइब्रेरी की शांति दोनों ही धीरे-धीरे गुम होती जा रही हैं। जमशेदपुर शहर इसका ताजा उदाहरण है, जहां समय के साथ न केवल लाइब्रेरी की संख्या कम हुई है, बल्कि मोबाइल के बढ़ते उपयोग ने पढ़ने वालों की संख्या में भी भारी गिरावट ला दी है।


अब सिर्फ दो सक्रिय लाइब्रेरी
वर्तमान में शहर में केवल दो लाइब्रेरी ही सक्रिय रूप से संचालित हो रही हैं—बाराद्वारी स्थित सोबरन मांझी जिला पुस्तकालय और बिष्टूपुर स्थित मुस्लिम लाइब्रेरी। इन दोनों जगहों पर प्रतिदिन 50 से 60 बच्चे पढ़ाई के लिए आते हैं, लेकिन बुजुर्ग और नियमित पाठकों की उपस्थिति लगभग नगण्य है।
पुस्तक मेला दिखाता है उम्मीद की किरण
हर साल शहर में लगने वाला पुस्तक मेला यह दर्शाता है कि अब भी किताबों से प्रेम करने वाले लोग मौजूद हैं, लेकिन नियमित रूप से पढ़ने के लिए उचित स्थानों की कमी महसूस की जा रही है।
सोबरन मांझी जिला पुस्तकालय: सुविधाओं से युक्त आधुनिक लाइब्रेरी
वर्ष 2022 में स्थापित इस पुस्तकालय में 8वीं से लेकर यूपीएससी तक की तैयारी के लिए जरूरी सभी किताबें मौजूद हैं। यहां एनसीईआरटी, NDA, CDS, UPSC, CA, JEE आदि से जुड़ी पुस्तकें उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त, एक छोटा सा म्यूजियम भी मौजूद है जिसमें धार्मिक ग्रंथों व अन्य दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह है। पुस्तकालय में बैठकर पढ़ाई करना नि:शुल्क है और नियमित आने वाले छात्रों को किताबें घर ले जाने की सुविधा भी दी जाती है।
मुस्लिम लाइब्रेरी: इतिहास और पुस्तकों का खजाना
1932 में स्थापित मुस्लिम लाइब्रेरी झारखंड की सबसे पुरानी लाइब्रेरी मानी जाती है। यहां 35 हजार से ज्यादा किताबें मौजूद हैं। लाइब्रेरी में कुरान, गीता, बाइबल समेत हर धर्म की धार्मिक पुस्तकें मिलती हैं। इसके साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए भी पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। बैठकर पढ़ाई पूरी तरह नि:शुल्क है, जबकि किताबें घर ले जाने पर 100 रुपये प्रतिमाह का शुल्क लिया जाता है।
मोबाइल की लत बन रही बाधा
लाइब्रेरी प्रबंधन और पाठकों का कहना है कि मोबाइल और इंटरनेट की आसान उपलब्धता ने युवाओं को लाइब्रेरी से दूर कर दिया है। जहां पहले विद्यार्थी घंटों लाइब्रेरी में बिताते थे, अब वही समय वे मोबाइल स्क्रॉल करने में गंवा देते हैं।
जमशेदपुर जैसे शिक्षित शहर में भी अगर लाइब्रेरी की संख्या और पाठकों की रुचि घट रही है, तो यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है। डिजिटल युग में भी किताबों की अहमियत बनी रहे, इसके लिए समाज, सरकार और युवाओं को मिलकर प्रयास करने होंगे।
