126 सृजन संवाद में विमल चंद्र पाण्डेय का कहानी पाठ
जमशेदपुर :- सृजन संवाद की 126 संगोष्ठी का आयोजन स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर किया गया। इसमें देश के जाने-माने कहानीकार विमल चंद्र पाण्डेय को आमंत्रित किया गया था । सर्वप्रथम `सृजन संवाद’ कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. विजय शर्मा ने सभी का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि इस गोष्ठी के साथ `सृजन संवाद’ अपने 13वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इस बीच सृजन संवाद ने देश विदेश के अनगिनत पाठकों, लेखकों व शोधार्थियों के बीच बनाई पहुंच बनाई है। अब इसकी बाल्यावस्था समाप्त हो गई है और यह किशोरावस्था में पदार्पण कर रहा है। किशोरावस्था ‘तनाव और तूफ़ान’ का काल होता है। तनाव प्रगति का वाहक होता है और तूफ़ान नई जमीन तोड़ता है। सृजन संवाद साहित्य, सिनेमा और कला की दुनिया में सार्थक हस्तक्षेप करना चाहता है। इस बीच हर माह साहित्य, सिनेमा एवं विभिन्न कलाओं पर चर्चा होती रही है। अब हमें और गंभीरता तथा जिम्मेदारी के साथ काम करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का संचालन कर रही डॉ. विजय शर्मा ने कहानीकार अजय मेहताब को अतिथि का परिचय देने हेतु आमंत्रित किया। अजय मेहताब ने ज्ञानपीठ युवा लेखन पुरस्कृत विमल चंद्र पाण्डेय का विस्तृत परिचय दिया। ‘डर’, ‘मारण मंत्र ’, ‘ई इलहाब्बाद है भइया’, ‘मस्तूलों के इर्द-गिर्द’, ‘उत्तर प्रदेश की खिड़की‘’, ‘भले दिनों की बात थी’, ‘सिनेमा की दुनिया और दुनिया का सिनेमा’, ‘लहरतारा’ के रचयिता तथा फ़िल्मकार विमल चंद्र पाण्डेय ने अपनी एक शुरुआती बहुचर्चित कहानी ‘डर’ का स्पष्ट स्वर में पाठ किया। कहानी किशोरी मन के मनोविज्ञान व समाज पर आधारित है। कहानी “डर” ग्रामीण परिवेश में एक युवा होती बालिका की कहानी है, जो अपने आस पास व समाज में घट रहे घटनाक्रमों से जूझते हुए अपने अस्तित्व की रक्षा करने की कोशिश करती है। विमल चंद्र पांडेय जी ने अपनी कहानी “डर” का पाठ करते हुए दर्शकों/श्रोताओं को बाँधे रखा।
कहानी ‘डर’ पर टिप्पणी करते हुए दिल्ली से समीक्षक रश्मि रावत ने कहानी की खूबियों के साथ उसे समय के साथ आए परिवर्तन के अनुकूल पुन: लिखे जाने की आवश्यकता की बात कही। राँची से लेखिका कनक लता रिद्दि ने कहानी के लिखे जाने के समय को वैश्वीकरण तथा उदारीकरण से जोड़ते हुए बताया कि आज भी विकास की अवधारणा अधूरी है। राँची से वैभव मणि त्रिपाठी ने कहानी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए बताया कि अपने कार्यक्रम ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ में वे इस कहानी को भोजपुरी में प्रस्तुत कर चुके हैं जिसे श्रोताओं ने खूब पसंद किया है।
बनारस से नाटककार-फ़िल्मकार जयदेव दास धन्यवाद ज्ञापन ने किया। कार्यक्रम के दौरान दिल्ली से रक्षा गीता, पतरातु से कहानीकार विनीता परमार, नीलांकुज सरोज, सिने-समीक्षक विनोद दास, देहरादून से सिने- सिक्षक-समीक्षक मन मोहन चड्ढा, गुजरात से उमा सिंह, डॉ. प्रणवा भारती, इलाहाबाद से सुरभि विप्लव, जमशेदपुर से क्षमा त्रिपाठी, आभा विश्वकर्मा, प्रियंका सिंह, मिथलेश दुबे, गोमिया से प्रमोद बर्णवाल, हजारीबाग से भारती सिंह एवं अन्य प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
कार्यक्रम का तकनीकि सहयोग ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी का रहा। कार्यक्रम में फ़ेसबुक पर देश-विदेश से कई दर्शक/श्रोता उपस्थित थे, जिनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और समृद्ध हुआ। विमल चंद्र पाण्डेय ने 13वें साल में प्रवेश केलिए ‘सृजन संवाद’ को बधाई व शुभकामनाएँ दीं।