129वें संगोष्ठी में सृजन संवाद ने मनाई सरलादेवी चौधरानी की जयंति

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जमशेदपुर:- जमशेदपुर की साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था सृजन संवाद की 129 संगोष्ठी का आयोजन स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर किया गया। शनिवार दिन में ग्यारह बजे साहित्य अकादमी पुरस्कृत उपन्यासकार अलका सरावगी प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित थीं। अक्टूबर माह में गाँधीजी की जयंति सब लोग मनाते हैं, 129वीं सृजन संवाद गोष्ठी ने सरलादेवी की जयंति (जन्म 9 सितंबर 1872) मनाना तय किया। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. मंजुला मुरारी ने किया। उन्होंने स्वागत हेतु ‘सृजन संवाद’ कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. विजय शर्मा को आमंत्रित किया। डॉ. विजय शर्मा ने मंच पर उपस्थित तथा फ़ेसबुक लाइव से जुड़े श्रोताओं/दर्शकों का स्वागत करते हुए बताया कि अलका सरावगी ने अपने पहले उपन्यास ‘कलिकथा वाया बाईपास’ से ही साहित्य में अपना मजबूत स्थान बना लिया है। आज वे सृजन संवाद के मंच से अपने नवीनतम उपन्यास ‘गाँधी और सरलादेवी चौधरानी: बारह अध्याय’ (वाणी प्रकाशन) पर बात करेंगी।

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करीम सिटी कॉलेज, मॉसकॉम की विभागाध्यक्ष एवं इंग्लिश की प्रोफ़ेसर डॉ. नेहा तिवारी ने वक्ता अलका सरावगी का परिचय देते हुए उनसे अपनी बात कहने (विषय: एक नायाब रिश्ते का सफ़र) का आग्रह किया। उन्होंने यह भी बताया कि ‘कलिकथा वाया बाइपास’, ‘शेष कादंबरी’, ‘कोई बात नहीं’, ‘एक ब्रेक के बाद’, ‘जानकीदास तेजपाल मैन्शन’ ‘कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए’, ‘तेरह हलफ़नामे’ (अनुवाद), ‘गाँधी और सरलादेवी चौधरानी’ की लेखिका को न केवल तमाम पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, वरन उनके कार्य का उर्दू, मराठी, गुजराती, मलयालम, बाँग्ला, इंग्लिश, इटैलियन, जर्मन, स्पैनिश भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।

 

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करीब एक घंटे में अपनी बात रखते हुए, अलका सरावगी ने एक प्रश्न का उत्तर देते हुए विस्तार से बताया कि कोरोना काल में गेराल्डिन फोर्ब्स की किताब ‘लॉस्ट लेटर्स एंड फेमिनिस्ट हिस्ट्री’ पढ़ते और गेराल्डिन फोर्ब्स से बात करते हुए उन्हें इस उपन्यास को लिखने का ख्याल आया। इसे लिखना एक बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्ति से भी संबंधित है जो राष्ट्रीय आंदोलन की अगुआई कर रहा था। दूसरी ओर सरलादेवी चौधरानी अपने आप में एक तेजस्वी मगर इतिहास में किनारे कर दी गई स्त्री पात्र हैं। हिन्दी जगत को वे सरलादेवी चौधरानी से परिचित कराना चाहती थीं। बंगाल में तो सरलादेवी चौधरानी जानी जाती हैं, मगर बंगाल के बाहर उन्हें और उनके कार्य को कम लोग जानते हैं। रवींद्रनाथ टैगोर की इस भाँजी ने पहले बंगाल, फ़िर पंजाब तथा बाद में अखिल भारतीय स्तर पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए कई काम किए। बारहमासी प्रेम पर बारह अध्यायों में लिखी इस कृति ‘गाँधी और सरलादेवी चौधरानी: बारह अध्याय’ में दो-तीन पात्रों की सहायता से भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण कालखंड को समेटा गया है। करीब एक सवा घंटे चले इस कार्यक्रम में अलका सरावगी ने अपनी बात विस्तार से रखी तथा प्रश्नों के उत्तर भी दिए।

 

कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन जाने-माने कहानीकार पंकज मित्र ने अलका सरावगी के वक्तव्य पर टिप्पणी करते हुए दिया। कार्यक्रम को सृजन संवाद फ़ेसबुक लाइव के माध्यम में देहरादून से सिने-समीक्षक मन मोहन चड्ढा, जमशेदपुर से डॉ.क्षमा त्रिपाठी, डॉ. नेहा तिवारी, राँची से तकनीकि सहयोग देने वाले ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी, तंज़ानिया से कहानीकार प्रियंका ओम, गोरखपुर से पत्रकार अनुराग रंजन, लखनऊ से डॉ. मंजुला मुरारी, डॉ. राकेश पाण्डेय आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे। जिनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और समृद्ध हुआ। सबकी सहमति रही कि अलका सरावगी को पुन: आमंत्रित किया जाए क्योंकि बातें अभी समाप्त नहीं हुई हैं। ‘सृजन संवाद’ की अक्टूबर मास की गोष्ठी (130वीं) कला पर होगी। इसी सूचना के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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