पद्म श्री दुलारी देवी ने खोला जीवन का सबसे बड़ा राज, मधुबनी जिले के रांटी गांव की रहने वाली 55 वर्षीय दुलारी देवी अपने खानदान में पहली महिला , जिन्होंने मिथिला पेंटिंग बनाना सीखा, उनसे पहले उनके परिवार में किसी का भी मिथिला पेंटिंग से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था…पद्म श्री मिलने के बाद कैमरा देखते ही क्यों रोने लगी थी??

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जमशेदपुर :- आज के बदलते परिवेश में भी ग्रामीण सुदूरवर्ती क्षेत्रों में  बच्चे सरकारी स्कूलों में जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं, लेकिन आज से सालों पहले किसी गांव की स्थिति क्या रही होगी इसका अंदाजा आप लगा सकते है। कहानी है मधुबनी के रांटी गांव में एक गरीब मछुआरे के घर पर पैदा हुई बेटी की जिंदगी की । जो अपने जीवन में बस इतना ही जानती थी कि एक गरीब परिवार होने के वजह से बेटी सुबह से उठकर मां को घर का खाना बनाने में हाथ बंटाने के बाद दूसरे के घरों में जाकर चौका बर्तन करती और जब पिता मछली पकड़कर बाजार में उसे बेचने जाते तब घर पर परिवार इस इंतजार में रहता कि कुछ पैसे आएंगे तब घर का चूल्हा जलेगा। लेकिन बात यही खत्म नही होती, इतने अभावों में पलनेवाली बेटी बर्तन मांजने के साथ साथ अपनी हाथों से चित्र भी बनाती, रंग न मिलते तो कीचड़ को सुखाकर चित्रकारी करती आगे चलकर इस बेटी को मधुबनी पेंटिंग की दिग्गज आर्टिस्ट कर्पूरी देवी और दिवंगत महासुंदरी देवी का मार्गदर्शन मिला और फिर जिंदगी ने एक करवट ले ली। ये बेटी कोई और नहीं बल्कि मिथिलांचल और बिहार की गौरव मधुबनी पेंटिंग की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार पद्मश्री दुलारी देवी है। मधुबनी से  जमशेदपुर पद्म श्री दुलारी देवी  टाटा स्टील के सालाना कार्यक्रम ‘आर्ट इन इंडस्ट्री’ में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करने पहुंची है जहां उन्होंने लोक आलोक न्यूज से बातचीत करते हुए अपने जीवन के बचपन के संघर्ष को साझा किया। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे अब मधुबनी में मधुबनी पेटिंग सिखाने के लिए सारी सुविधाएं मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि तीन साल का डिग्री कोर्स और छह महीने के सर्टिफिकेट कोर्स के प्रशिक्षण की व्यवस्था है। उन्होंने मधुबनी पेंटिंग के प्रचार प्रसार के लिए किए जा रहे प्रयासों को लेकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार की प्रशंसा भी की।
दुलारी देवी ने कहा कि देश-विदेश से कलाप्रेमी पेंटिंग सीखने मधुबनी आते हैं जिनके लिए खाने पीने और रहने की पूरी व्यवस्था है। दुलारी देवी को इस बात का संतोष है कि जिस प्रकार उन्होंने बचपन में मुश्किल हालातों के बीच मधुबनी पेटिंग की कला को सीखा, आज हालात बदल चुका हैं और अब नई पीढ़ी इस कला को आगे लेकर जा रही है।

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दुलारी देवी मिथिला आर्ट इंस्टीट्यूट में कलाप्रेमियों को मधुबनी आर्ट की बारीकियां सिखाती हैं। वह आज भी सुबह चार बजे उठकर मधुबनी पेंटिंग बनाती हैं जिसमें वह लोक कला और संस्कृति को प्रदर्शित करती हैं। उन्हें कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। मधुबनी पेंटिंग के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए बिहार सरकार की ओर से उन्हें ‘मिथिला अस्मिता सम्मान’ दिया जा चुका है। वहीं 2021 में उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्मश्री से भी नवाज़ा गया।

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बिहार की पद्म श्री दुलारी देवी और उनके मिथिला पेंटिंग के बारे में तो सभी लोग जानते हैं। लेकिन आज हम पद्मश्री दुलारी देवी के जीवन से जुड़ी ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जिसको सुनने के बाद आपको गर्व महसूस होगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 8 नवंबर 2021 को बिहार की दुलारी देवी को पद्म श्री से सम्मानित किया था। मधुबनी जिले के रांटी गांव की रहने वाली 55 वर्षीया दुलारी देवी अपने खानदान में पहली महिला हैं, जिन्होंने मिथिला पेंटिंग बनाना सीखा। उनसे पहले उनके परिवार में किसी का भी मिथिला पेंटिंग से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था।

कैमरा देखते ही फफक-फफक कर रोने लगी थी पद्म श्री

बताया जाता है कि सम्मान लेने के बाद जब दुलारी देवी को बिहार संग्रहालय बुलाया गया, तो उस दौरान कैमरा देखते ही दुलारी देवी रोने लगी। उस समय उन्होंने कहा था कि मेरी बहुत दिनों से इच्छा थी कि कोई मेरी भी तस्वीर खींचें। आज इतने सारे कैमरे देख कर मन भावुक हो गया।

दुलारी देवी आज भी बात करते हुए बताती है कि मुझे कभी नहीं लगा था कि झाड़ू पोछा करने वाली को इतना सम्मान दिया जाएगा। मैं तो बस पेंटिंग करती थी और उसमें खुश थी। मेरे जैसे गरीब महिला को पद्म श्री जैसा बड़ा सम्मान मिला और इतने सारे कैमरे देख अपनी संघर्ष की कहानी याद आ गई थी।

पहले कभी कुर्सी पर नहीं बैठी थी

दुलारी देवी अपनी संघर्षों के दौर को याद करते हुए बताती है कि प्रख्यात कलाकार कर्पूरी देवी और महासुंदरी देवी के यहां झाड़ू पोछा और बर्तन धुलने का काम करती थी। वहीं से यह कला सीखा। पहले कभी भी कुर्सी पर नहीं बैठे थे और आज बड़े बड़े कार्यक्रमों में गद्देदार सोफे पर बैठने को मिलता हैं। लोग सम्मान करते हैं। यहीं सब देख मन थोड़ा भावुक हो जाता हैं।

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अपनी पहली पेंटिंग को याद करते हुए दुलारी देवी बताती हैं कि पहली बार एक मछुवारे की पेंटिंग बनाई थी। उसके सर पर टोकरी में मछली और कंधे पर एक बैग था। फिर उसके बाद कमला पूजा की कहानी, राम-सीता समेत कई पेंटिंग बना चुकी हूं। दुलारी देवी की पेंटिंग अब विश्विख्यात हो चुका है। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी दुलारी देवी के पेंटिंग देखने को मिलते है।खास तौर पर अगर पद्म श्री दुलारी देवी के पेंटिंग देखना चाहते हैं तो बिहार संग्रहालय में देख सकते हैं।

टाटा स्टील सालाना तौर पर कार्यक्रम आर्ट इन इंडस्ट्रीज़ का आयोजन करती है। कोविड काल के दौरान यह कार्यक्रम आयोजित नहीं हो पाया लेकिन इस बार के कार्यक्रम में देश भर से आए नामी गिरामी कलाकार शामिल है जिसमें पद्मश्री दुलारी देवी, चंद्रा भट्टाचार्या, फरहाद, मादुरी भादुरी, तृप्ति दवे, विवेक शर्मा, लीला विंसेट समेत अन्य शामिल है। यह आयोजन 31 अक्टूबर से लेकर 4 नवंबर तक चलेगा जिसमें ख्यातिप्राप्त ये सभी कलाकार कैनवास पर अपने रंगों का जादू भरेंगे।

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