सूर्यधाम में संगीतमय श्रीराम कथा के छठे दिन कथा व्यास गौरांगी गौरी जी ने राम वनगमन, केवट प्रसंग एवं भरत मिलाप का किया वर्णन, रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई पर नम हुई श्रद्धालुओं की आँखें, श्रीराम जी के राज्याभिषेक से श्रीराम कथा का मंगलवार को होगा विश्राम, दोपहर 3:00 बजे कथा होगी प्रारंभ, संध्याकाल में होगा विशाल भंडारा का आयोजन…

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जमशेदपुर:-  सिदगोड़ा सूर्य मंदिर समिति द्वारा श्रीराम मंदिर स्थापना के तृतीय वर्षगांठ के अवसर पर सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के छठे दिन कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच सूर्य मंदिर समिति के मुख्य संरक्षक सह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, संरक्षक चंद्रगुप्त सिंह, सांसद विद्युत वरण महतो, उदितवाणी समाचारपत्र के संपादक राधेश्याम अग्रवाल, आरएसएस के इंदर अग्रवाल, राकेश चौधरी, दिनेश कुमार, देवेंद्र सिंह एवं अन्य ने व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया गया। पूजन पश्चात श्री अयोध्याधाम से पधारे मर्मज्ञ कथा वाचिका पूज्य पंडित गौरांगी गौरी जी का स्वागत किया गया। स्वागत के पश्चात कथा व्यास पंडित गौरांगी गौरी ने कथा स्थल पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के समक्ष श्रीराम कथा के छठे दिन श्रीराम वनगमन, केवट प्रसंग एवं भरत मिलाप का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया। कहा कि भरत और केवट से त्याग व भक्ति की प्रेरणा लेनी चाहिए।

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व्यास पूज्य पंडित गौरांगी गौरी ने प्रसंग सुनाते हुए बताया कि राम और भरत ने संपत्ति का बंटवारा नहीं किया बल्कि विपत्ति का बंटवारा किया। राजा दशरथ ने कैकई को वचन तो दे दिया पर उसके बाद वे निःशब्द होकर रह गए। रघुकुल की मर्यादा के लिए उन्होंने अपने प्रिय पुत्र का वियोग स्वीकार कर लिया। कथा व्यास पंडित गौरांगी गौरी ने कुसंगति को हानिकारक बताया। कहा कि मन्थरा दासी की कुसंगति के कारण ही कैकई की मति मारी गई और उसने राम के राज्याभिषेक से ठीक पहले उनके लिए वनवास मांग लिया। श्रीराम ने पिता के वचन का मान व कुल की मर्यादा रखने के लिए इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और वन को प्रस्थान किया। इस दौरान रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई भजन पर श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गयी।

वनगमन के दौरान रास्ते में केवट ने श्रद्धा भाव से भगवान राम के पैर धोए थे। साथ ही उन्हें गंगा पार कराई। बदले में केवट ने उनसे भवसागर पार कराने का वरदान मांग लिया। भगवान के चरण दोकर केवट की पीढ़ियां तर गईं। केवट ने हठ किया कि आप अपने चरण धुलवाने के लिए मुझे आदेश दे दीजिए तो मैं आपको पार कर दूंगा केवट ने भगवान से धन-दौलत, पद ऐश्वर्य, कोठी-खजाना नहीं मांगा उसने तो भगवान से उनके चरणों का प्रछालन मांगा। केवट की नाव से गंगा जी को पार करके भगवान ने केवट को उतराई देने का विचार किया। श्रीसीता जी ने अर्धागिनी स्वरूप को सार्थक करते हुए भगवान की मन की बात समझकर अपनी कर मुद्रिका उतारकर उन्हें दे दी। भगवान ने उसे केवट को देने का प्रयास किया किन्तु केवट ने उसे न लेते हुए भगवान के चरणों को पकड़ लिया। जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है ऐसे भगवान के श्रीचरणों की सेवा से केवट धन्य हो गया। भगवान ने उसके निःस्वार्थ प्रेम को देखकर उसे दिव्य भक्ति का वरदान दिया तथा उसकी समस्त इच्छाओं को पूर्ण किया।

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चित्रकूट पर भगवान का आगमन हुआ यहां से भील राज ( निषाद) भगवान को प्रणाम करके अपने गृह के लिए वापस हुए। मार्ग में सोकातुर सुमन्त जी को धैर्य देकर उन्होंने अवध में भेजा। सुमन्त के द्वारा रामजी का वन गमन सुनकर महाराज दशरथ ने प्राणों का त्याग कर दिया राम विरह में प्राणों का त्याग करके अवधेश संसार में सदा के लिए अमर हो गये।

श्रीभरत का अयोध्या में आगमन हुआ कैकयी के द्वारा मांगे गये वरदानों के सत्य से परिचित होकर उन्होंने माता कैकयी का सदा के लिए त्याग कर दिया क्योंकि राम प्रेमियों के लिए राम विरोधी का त्याग आवश्यक है। जो भगवत कर्मों में सहयोगी न बने ऐसे व्यक्ति का त्याग भक्तजनों के द्वारा किया जाता है।

कैकयी का त्याग करके श्रीभरत मां कौशल्या के भवन में आए माता कौशल्या ने भरत जी को पूर्ण वात्सल्य प्रदान किया एवं राम वनवास और दशरथ मरण की सम्पूर्ण घटना को सुनाया। भरत जी ने मां के सामने शपथ पूर्वक कहा- मां मैं आपको भगवान श्रीराम से पुनः मिलाउंगा।

कथा में आगे वर्णन करते हुए पूज्य पंडित गौरांगी गौरी ने बताया कि श्रीभरत ने चित्रकूट यात्रा के लिए सम्पूर्ण अयोध्यावासियों को तैयार कर लिया। राजतिलक की सामिग्री को साथ लेकर गुरूदेव की अनुमति से श्रीभरत सभी को साथ लेकर भगवान की खोज में चल पड़े। संकेत यह है कि जन्म जन्मांतर से भटके हुए जीव को तब तक परम शान्ति नहीं मिल सकती जब तक कि वह भगवान की खोज न कर ले। मार्ग की अनेक बाधाओं को पार करते हुए श्रीभरत चित्रकूट तक पहुंचे। सच्चे साधक के मार्ग में अनेक बाधाएं आती हैं किन्तु राम प्रेम के बल पर वह सम्पूर्ण बाधाओं को पार कर लेता है।

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भाई-भाई के प्रेम को दर्शन कराने के लिए ही श्रीराम और भरत जी के मिलन का प्रसंग आया। चित्रकूट में श्रीभरत की राम प्रेममयी दशा को देखकर वहां के पत्थर भी पिघलने लगे। भगवान ने भरत जी को स्वीकार करते हुए चित्रकूट की सभा में उन्हीं को निर्णय करने के लिए कहा तो भरत जी ने भगवान को वापस अयोध्या लौटने के लिए प्रार्थना की तथा स्वयं पिता के वचन को मानकर वनवासी जीवन बिताने का संकल्प लिया। किन्तु भगवान को यह स्वीकार नहीं था। दोनों भाई एक दूसरे के लिए सम्पत्ति और सुखों का त्याग करने के लिए उद्यत थे और विपत्ति को अपनाना चाहते थे। यही भ्रातृप्रेम है। आज वर्तमान में भाई भाई की सम्पत्ति को बांटता है विपत्ति को नहीं। यदि भाई भाई की विपत्ति को बांटने लगे तो संसार भर के परिवारों की समस्याओं का समाधान हो जाये। भाई-भाई का प्रेम आज न जाने कहां चला गया। श्रीराम-भरत के प्रेम से प्रत्येक भाई को भाई से प्रेम का संदेश लेना चाहिए।

श्रीभरत ने भगवान की चरण पादुकाओं को सिंहासनारूढ़ किया और चौदह वर्ष तक उनकी सेवा की। यह भ्रातृ प्रेम की पराकाष्ठा है। श्रीभरत ने भाई का भाग कभी स्वीकार नहीं किया बल्कि अपना भाग भी भगवान को देकर सदैव दास बनकर उनकी सेवा करते रहे। भगवान श्रीराम वन में रहकर वनवासी तपस्वी जीवन व्यतीत करते हैं किन्तु भरत तो नंदीग्राम में रहकर भी सम्पूर्ण नियमों का पालन करते हुए भी सम्पूर्ण अयोध्यावासियों का ध्यान भी रखते हैं। सब प्रकार से भरत का चरित्र रामजी से बड़ा प्रतीत होता है। भरत जी के नाम का अर्थ ही है- ‘भ’ अर्थात् भक्ति, र अर्थात् रति, ‘त’ अर्थात् त्याग । अर्थात् भगवान की भक्ति, रति और त्याग का अद्भुत उदाहरण हैं “श्री भरत”।

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कथा में मंच संचालन सूर्य मंदिर समिति के वरीय सदस्य दिनेश कुमार ने किया।

कथा के दौरान अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह, चतुर्भुज केडिया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मृत्युंजय जी, दिनेश गुप्ता, अमृत झा, टुनटुन सिंह, विश्वनाथ केवर्तो, देवानंद सिंह, संजीव कुमार, प्रोबिर चटर्जी राणा, संजीव सिंह, अमरजीत सिंह राजा, संतोष यादव, शशिकांत सिंह, महामंत्री अखिलेश चौधरी, रूबी झा, कृष्ण मोहन सिंह, बंटी अग्रवाल, कंचन दत्ता, अधेन्दू बनर्जी, लक्ष्मीकांत सिंह, प्रेम झा, प्रमोद मिश्रा एवं तृतीय वर्षगांठ आयोजन समिति के संयोजक गुंजन यादव, दिनेश कुमार, राकेश सिंह, कमलेश सिंह, कुलवंत सिंह बंटी, महेंद्र यादव, सुशांतो पांडा, पवन अग्रवाल, कल्याणी शरण, खेमलाल चौधरी, सुरेश शर्मा, संतोष ठाकुर, संदीप शर्मा बौबी, अमित अग्रवाल, धर्मेंद्र प्रसाद, अभिमन्यु सिंह चौहान, कुमार अभिषेक, महावीर सिंह, संतोष कुमार, निकेत सिंह, बंटी सिंह, राजा अग्रवाल, नीलू झा, ममता कपूर, पुष्पा तिर्की, राम मिश्रा, कुमार आशुतोष, सतीश कुमार, अनिकेत रॉय, निर्मल गोप, रुपा देवी, प्रमिला साहू, कमला साहू, मधु देवी, सरस्वती देवी, आशा देवी, उर्मिला देवी, गंगा देवी, नीलम देवी, लखी कौर, शोभा देवी, कान्ता देवी, हीरा देवी, राकेश राय, गौतम प्रसाद, कुलवंत सिंह संधू, संजू सिंह समेत अन्य अन्य उपस्थित थे।

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