चौथे दिन की जाती है मां कूष्मांडा की पूजा,देवी को प्रिय है कुम्हड़े

0
Advertisements

जमशेदपुर:  सूर्य के समान तेज वाली देवी कूष्मांडा को नवरात्री के चौथे दिन पूजा करने का विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि देवी ने अपनी मंद मुस्कान से पिंड से ब्रह्मांड तक का सृजन इसी स्वरूप में किया था।इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं।जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। मां कूष्‍मांडा को अष्‍टभुजाओं वाली देवी भी कहा जाता है। उनकी भुजाओं में बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल सजे है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन शेर है।संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा का अर्थ होता है कुम्हड़।बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं।

Advertisements

मान्‍यता है कि जो मनुष्‍य सच्‍चे मन से और संपूर्ण विधिविधान से मां की पूजा करते हैं, उन्‍हें आसानी से अपने जीवन में परम पद की प्राप्ति होती है।पूजा में मां को लाल रंग का पुष्‍प, गुड़हल, या फिर गुलाब अर्पित करें। इसके साथ ही सिंदूर, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाएं।

See also  आदित्यपुर : टूसू-मकर मेला सेवा समिति शहरबेड़ा में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, 500 साड़ी और खिचड़ी का हुआ वितरण

Thanks for your Feedback!

You may have missed