मंत्रीजी रोगी की मौत के बाद कागजी प्रक्रिया में लगते हैं 5 घंटे, ऐसी है एमजीएम अस्पताल की व्यवस्था, घायल को रिम्स रेफर करने के बाद भी अस्पताल प्रबंधन की ओर से समय पर नहीं की जाती है एंबुलेंस की व्यवस्था.

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जमशेदपुर : महात्मा गांधी मेमोरियल अस्पताल को कोल्हान के सबसे बड़े अस्पताल का दर्जा दिया गया है, लेकिन यहां की व्यवस्था ऐसी है कि रोगी की मौत के बाद कागजी प्रक्रियाओं को पूरी करने में डॉक्टर 5 घंटे से भी ज्यादा का समय लगाते हैं. भले ही रोगी की मौत के बाद बगल के बेड के रोगी को कितनी भी परेशानी हो. झारखंड राज्य के स्वास्थ्यमंत्री बन्ना गुप्ता भी इसी शहर के हैं. बावजूद अस्पताल की व्यवस्था में परिवर्तन होता नहीं दिख रहा है. कागज में तो सालाना करोड़ों रुपये विकास के नाम पर सरकार की ओर से खर्च किये जाते हैं लेकिन सच्चाई क्या है सभी जानते हैं.

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गरीब कहां जायेंगे इलाज कराने

आखिर कोल्हान में रहनेवाले गरीब अपना इलाज कराने के लिये कहां जायेंगे. जो आर्थिक रूप से पूरी तरह से तंग हैं उनके पास तो एमजीएम अस्पताल जाना ही मजबूरी है. वे चाहकर भी दूसरे अस्पताल में नहीं जा सकते हैं. अस्पताल में न तो डॉक्टर सीधे मुंह बात करते हैं और न ही नर्स ही किसी को भाव देता है. अगर रोगी कुछ बोल दिया तब नर्स पूरे अस्पताल को ही सिर पर उठा लेती है.

5 घंटे बेड पर ही पड़ा रहा शव

पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका की रहनेवाली जुली मुर्मू की तबियत बिगड़ने पर 16 अप्रैल की शाम 5 बजे एमजीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया था. दो घंटे के बाद ही जुली की मौत इलाज के क्रम में हो गयी थी. जुली की मौत के पांच घंटे बाद भी शव को बेड से हटाने का काम नहीं किया गया था. सूचना पर जब पत्रकार पहुंचे तब डॉक्टरों ने कागजी प्रक्रियाओं को पूरा कर शव को रात के 11.30 बजे के बाद हटाने का काम किया. इस बीच परिवार के लोगों के साथ-साथ अस्पताल में भर्ती रोगियों को कितनी परेशानी हुई होगी इसका महज अंदाजा लगाया जा सकता है.

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घंटों स्ट्रेचर पर पड़ा रहा घायल

एमजीएम अस्पताल में रविवार की रात सड़क हादसे में घायल व्यक्ति को लाया गया था. यहां पर डॉक्टरों ने उसे रिम्स रेफर कर दिया था. गरीब को रिम्स रेफर तो कर दिया था, लेकिन परिजन के पास इतने रुपये नहीं थे कि वे उसे निजी वाहन से लेकर जायें. अस्पताल में एंबुलेंस की व्यवस्था की गयी है, लेकिन घायल को स्ट्रेचर पर ही घंटों तड़पता हुआ देखा गया. एमजीएम अस्पताल की ऐसी हालत सिर्फ रविवार की ही नहीं है बल्कि अस्पताल में इसी तरह की व्यवस्था है. इस व्यवस्था में सुधार न तो मंत्रीजी कर पा रहे हैं और न ही अस्पताल प्रबंधन.

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