Jharkhand Famous Temple: यहां भद्र रूप में विराजमान हैं मां काली, कार्तिक अमावस्या पर आप भी आइए जरूर , देख के हो जाएंगे हैरान…

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लोक आलोक न्यूज डेस्क/ झारखंड:-रांची से 150 किमी दूरी इटखोरी मेें सनातन, बौद्ध एवं जैन धर्म का समागम हुआ है। प्रागैतिहासिक काल से इस पवित्र भूमि पर धर्म संगम की अलौकिक भक्ति धारा बहती चली आ रही है। सनातन धर्मावलंबियों के लिए यह पावन भूमि मां भद्रकाली तथा सहस्र शिवलिंग महादेव के सिद्ध पीठ के रूप में आस्था का केंद्र है।

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ऐसा माना जाता है कि शांति की खोज में निकले युवराज सिद्धार्थ ने यहां तपस्या की थी। उस वक्त उनकी मां उन्हें वापस ले जाने आई थी। लेकिन जब सिद्धार्थ का ध्यान नहीं टूटा तो उनके मुख से इतखोई शब्द निकला जो बाद में इटखोरी में तब्दील हुआ।

प्राचीन काल में तपस्वी मेघा मुनि ने अपने तप से इस परिसर को सिद्ध करके सिद्धपीठ के रूप में स्थापित किया था। भगवान राम के वनवास तथा पांडवों के अज्ञातवास की पौराणिक धार्मिक कथाओं से मां भद्रकाली मंदिर परिसर का जुड़ाव रहा है। पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी मंदिर परिसर काफी महत्वपूर्ण है।

यहां का सहस्र शिवलिंग काफी अनूठा है। एक ही पत्थर को तराश कर बनाए गए सहस्र शिवलिंग में 1008 शिवलिंग उत्कीर्ण हैैं। सहस्र शिवलिंग के जलाभिषेक करने पर एक साथ सभी एक हजार आठ शिवलिंग का जलाभिषेक होता है। सहस्र शिवलिंग मंदिर के सामने ही नंदी की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है।

मां भद्रकाली की प्रतिमा कीमती काले पत्थर को तराश कर बनाई गई है। करीब पांच फुट ऊंची आदमकद प्रतिमा चतुर्भुज है। प्रतिमा के चरणों के नीचे ब्राम्ही लिपि में अंकित है कि प्रतिमा का निर्माण नौवीं शताब्दी काल में राजा महेंद्र पाल द्वितीय ने कराया था।

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मंदिर परिसर में एक अद्भूत बौद्ध स्तूप है। इसे मनौती स्तूप भी कहा जाता है। बौद्ध स्तूप में भगवान बुद्ध की 1004 छोटी व चार बड़ी प्रतिमाएं बनी हैं। भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा महा परायण की मुद्रा में भी है। इस स्तूप को पुरातत्व विभाग ने नौवीं शताब्दी काल का बताया है।

मंदिर के म्यूजियम में जैन धर्म के दसवें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ स्वामी का एक चरण चिह्न है। पत्थर को तराशकर बनाया गया यह चरण चिह्न वर्ष 1983 में ग्रामीणों द्वारा खुदाई के दौरान प्राप्त हुआ था। उस वक्त एक तांब्र पत्र भी मिला था। जिसमें ब्राह्मी लिपि में जैन धर्म के दसवें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ स्वामी का जन्म स्थान इस स्थल को बताया गया है।

मंदिर परिसर में ही एक प्राचीन कनुनिया माई का मंदिर है। एक शिला में सूरज, चांद के साथ त्रिशुल उत्कीर्ण है। इसी शिला में नर व नारी की भी प्रतिमा उत्कीर्ण है। पुरातत्व विभाग इसे सती स्तंभ बताता है।

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