ऐसी मान्यता है की केदारनाथ में भक्त और भगवान का सीधा मिलन होता है, अनोखी है केदारनाथ धाम की कहानी, यहां आकर पूरी होती है हर मनोकामना

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केदारनाथ धाम (Shreya): जब भी भारत के तीर्थ जगह का नाम लिया जाता है तो उसमें केदारनाथ धाम का नाम सबसे पहले लिया जाता है। भगवान शिव का ये जाना-माना ज्योतिर्लिंग धाम हिमालय की गोद में उत्तराखंड में बसा है। भगवान शिव का ये केदारनाथ धाम सिर्फ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का हिस्सा में ही नहीं बल्कि भारत और उत्तराखंड के चार धाम और पंच केदार का हिस्सा में भी गिना जाता है।

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कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है जिसका निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने करवाया था लेकिन कुछ मान्यताएं ऐसी भी हैं कि भगवान शिव के इस धाम की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने किया था। केदारनाथ मंदिर पुरानी सनातन सभ्यता और संस्कृति की निशानी है और ये जगह हिंदू धर्म में बहुत ही माना जाता है। केदारनाथ मंदिर से हिंदुओं की आस्था जुड़ी हुई है।

केदारनाथ मंदिर हिंदू धर्म में प्रसिद्ध है और ये मंदिर भारत के राज्य उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में है। केदारनाथ मंदिर हिमालय पर्वत की गोद में बसा 12 ज्योतिर्लिंग में शामिल है। इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली से किया गया है और इसे पांडव वंश जनमेजय ने बनाया है। केदारनाथ मंदिर को द्वापर युग में बनाया था। केदारनाथ मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो ये मंदिर बहुत ही पुराना है और विद्वानों और ऋषियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 80वीं शताब्दी में द्वापर युग के समय हुआ था। इस मंदिर के चारों ओर बर्फ के पहाड़ हैं। केदारनाथ मंदिर ख़ास तौर से पांच नदियों से जुरी हुई मुख्य धाम माना जाता है और ये नदियां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी है।

ऐसा माना जाता हैं कि ब्राम्हण गुरु शंकराचार्य खुद इस शिवलिंग की पूजा करते हैं। केदारनाथ मंदिर के सारे मंदिर के पुरोहित और यजमानों और तीर्थ यात्रियों के लिए धर्मशाला मौजूद है। मंदिर के मुख्य पुजारी के लिए मंदिर के आसपास भवन बना हुआ है। मंदिर के बीच में मंडप और गर्भ ग्रह के चारों और गोल घुमने का रास्ता बना हुआ है। मंदिर के बाहरी हिस्से में नंदी बैल वाहन भी बना हुआ हैं। मंदिर के बीच में श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग बना है जिसके सामने भगवान गणेश जी की मूर्ति और मां पार्वती के यंत्र का चित्र है। ज्योतिर्लिंग के ऊपरी भाग पर असली स्फटिक माला बना हुआ है। श्री ज्योतिर्लिंग के चारों और बड़े-बड़े चार खंबा बना हुआ हैं। इन बड़े-बड़े चार खंभों पर मंदिर की छत टिकी हुई है। ज्योतिर्लिंग के पश्चिमी भाग में एक दीया बना है और हजार सालों से इसकी रौशनी मंदिर की आस्था को बनाए हुए हैं। इस दीया का देखभाल मंदिर के पुरोहित सालों से करते आ रहे हैं ताकि ये हमेशा मंदिर के भाग में और पूरे केदारनाथ धाम में अपने प्रकाश को बनाए रखें। मंदिर की दीवारों पर सुंदर फूलों की फोटो को हाथ से बनाया गया है।

कहा जाता है कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का स्थापना तब हुआ जब एक दिन हिमालय के केदार की चोटी पर भगवान विष्णु के अवतार और नारायण तप कर रहे थे। उनकी तपस्या से भगवान शंकर खुश हुए और उन्हें दर्शन दिए और उनकी प्रार्थना के फल के रूप में उन्हें आशीर्वाद दिया कि वो ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा यहां वास करेंगे।
केदारनाथ मंदिर के बाहर नंदी बैल वाहन के रूप में बसे है और स्थापित उन्हें तब किया गया जब द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की जीत हुई और भातर हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शंकर के दर्शन करना चाहते थे। इसके फलस्वरूप वो भगवान शंकर के पास जाना चाहते और उनका आशीर्वाद पाना चाहते थे लेकिन भगवान शंकर उनसे नाराज थे।

पांडव भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी पहुंचे लेकिन भगवान शंकर ने उन्हें वहां दर्शन नहीं दिए। इसके बाद पांडवों ने हिमालय जाने का फैसला किया और हिमालय तक पहुंच गए लेकिन भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए भगवान शंकर वहां से भी चल गए और केदार में वास किया। पांडव भी भगवान शंकर का आशीर्वाद पाने के लिए एक साथ और लगन से भगवान शंकर को ढूंढते ढूंढते केदार पहुंच गए। भगवान शंकर ने केदार पहुंचकर बैल का रूप धारण कर लिया था। केदार पर बहुत सारी बैल थी। पांडवों को कुछ शक हुआ इसीलिए भीम ने अपना बड़ा रूप धारण किया और दो पहाड़ों पर अपने पैर रख दिए भीम के इस रूप से डरकर बैल भीम के पैर के नीचे से दोनों पैरों में से होते हुए भागने लगे लेकिन एक बैल भीम के पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं थी। भीम अपने बल से उस बैल पर हावी होने लगे लेकिन वेल धीरे-धीरे अपने से ज़मीन में सम्मिलित होने लगा लेकिन भीम ने बैल की त्रिकोण पीठ का भाग पकड़ लिया। पांडवों के इस साहस और एकजुटता से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और तभी ही उन्हें दर्शन दिए। भगवान शंकर ने आशीर्वाद रूप में उन्हें पापों से मुक्ति का वरदान दिया। तब से ही नंदी बैल के रूप में भगवान शंकर की पूजा की जाती है।

छोटा चार धाम यात्रा में 4 मंदिरों की यात्रा कराई जाती है जिसमें सबसे पहले केदारनाथ मंदिर शामिल है। केदारनाथ मंदिर के अलावा दूसरे तीन मंदिर बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री है। हर साल मंदिर को देखने के लिए तारिख तय की जाती है और ये हिंदू पंचांग के अनुसार ओंकारेश्वर मंदिर के पुरोहितों ने तय करते है। अक्षय तृतीया और महाशिवरात्रि के दिन पुरोहितों केदारनाथ में बसा शिवलिंग की पूजा के लिए तारिख तय की जाती है।

केदारनाथ मंदिर के द्वार आम लोगो के दर्शन के लिए सुबह 6:00 बजे खुल जाते हैं। भगवान शंकर की पूजा में मुख्य रूप से प्रातः कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, अष्टोंपाचार पूजन‌, संपूर्ण आरती, पांडव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, शिव सहस्त्रनाम और भी पूजा शामिल हैं। केदारनाथ मंदिर में दोपहर 3:00 से 5:00 के बीच एक पूजा होती है और इसके बाद भगवान के आराम के लिए फलस्वरुप मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है। मंदिर के कपाट दोबारा शाम 5:00 बजे खुल जाते हैं और आम जनता और भक्तजन दर्शन कर सकते हैं। इसके बाद पांच मुख वाले भगवान शिव को तैयार किया जाता है और रात की आरती का समय 7:30 से 8:30 के बीच तय किया गया है जिसमें भगवान शिव की आरती की जाती है। इसके बाद मंदिर के गेट बंद हो जाते हैं।

सर्दी में केदारनाथ घाटी बर्फ से लग जाती है इसीलिए पुरोहितों ने नवंबर 15 से लेकर सर्दी खत्म यानी 14 या 15 अप्रैल तक केदारनाथ मंदिर के गेट बंद कर दिए जाते हैं। सर्दी के दौरान भगवान शंकर की पांच मुख वाली मूर्ती को उखीमठ में स्थापित किया जाता है।

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