भारत में कैसे शुरू हुआ था धन का इस्तेमाल करना??कैसे आया ये पैसे इस्तेमाल करने का खयाल, कब हुआ था सबसे पहले पैसे की शुरुवात…
लोक आलोक न्यूज सेंट्रल डेस्क:भारत में धन (मुद्रा) का उपयोग एक लंबी और विविध इतिहास की कहानी है। मुद्रा का विकास विभिन्न सभ्यताओं, साम्राज्यों और शासकों के माध्यम से हुआ।
प्राचीन काल–
प्राचीन भारत में, वस्तु विनिमय प्रणाली (बार्टर सिस्टम) प्रचलित थी, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होता था। इस प्रणाली में, लोग अपने पास मौजूद वस्तुओं या सेवाओं का आदान-प्रदान करते थे। लेकिन इस प्रणाली में समस्याएँ थीं, जैसे कि सामान की विभाज्यता और उनके मूल्य का निर्धारण करना।
पहली मुद्राएँ–
भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुरानी ज्ञात मुद्राएँ पंचमार्क सिक्के थे, जो लगभग 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्रचलित हुए। ये सिक्के चांदी के थे और इन पर विभिन्न चिन्ह (पंचमार्क) बने होते थे। महाजनपदों के काल में इन सिक्कों का उपयोग व्यापक रूप से होता था। इन सिक्कों का उत्पादन विभिन्न जनपदों और राज्यों द्वारा किया जाता था।
मौर्य काल–
मौर्य साम्राज्य (321-185 ईसा पूर्व) के समय में मुद्रा प्रणाली में और भी सुधार हुआ। इस काल में चांदी के सिक्के जिन्हें ‘पंचमार्क सिक्के’ कहा जाता था, का प्रचलन और भी बढ़ गया। मौर्य शासकों ने सिक्कों पर विभिन्न प्रतीक और चिन्ह अंकित किए, जिससे उनकी पहचान और मूल्य निर्धारण सरल हो गया।
गुप्त काल–
गुप्त साम्राज्य (320-550 ईस्वी) के दौरान, भारतीय मुद्रा प्रणाली ने एक नई ऊंचाई प्राप्त की। इस काल में स्वर्ण मुद्राओं (गोल्ड कॉइन्स) का प्रचलन हुआ। गुप्त शासक अपने सिक्कों पर अपने चित्र और विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र अंकित करते थे। इन सिक्कों की कला और शिल्पकला उच्च कोटि की होती थी।
मध्यकाल–
मध्यकाल में मुस्लिम शासकों के आगमन के साथ, भारतीय मुद्रा प्रणाली में भी परिवर्तन हुए। दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य ने अपने सिक्के चलाए। मुगल काल (1526-1857) में विशेषकर, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब के शासनकाल में सोने, चांदी और तांबे के सिक्कों का व्यापक प्रचलन हुआ। मुगलों के सिक्के उत्कृष्ट कला और शिल्पकला के प्रतीक थे।
ब्रिटिश काल–
ब्रिटिश काल (1858-1947) के दौरान, भारतीय मुद्रा प्रणाली ने एक नया रूप लिया। 1835 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने एकीकृत मुद्रा प्रणाली लागू की और ‘रुपया’ को आधिकारिक मुद्रा के रूप में स्थापित किया। यह रुपया चांदी का सिक्का था। बाद में, ब्रिटिश सरकार ने कागजी मुद्रा (पेपर करंसी) भी शुरू की, जिसे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (1935 में स्थापित) द्वारा नियंत्रित किया जाने लगा।
स्वतंत्रता के बाद–
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत सरकार ने भारतीय रुपया (INR) को देश की आधिकारिक मुद्रा के रूप में जारी रखा। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भारतीय मुद्रा प्रणाली का प्रबंधन संभाला और समय-समय पर नए सिक्के और नोट जारी किए। आज, भारतीय मुद्रा प्रणाली में 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 200, 500 और 2000 रुपये के नोट शामिल हैं।
निष्कर्ष–
भारत में मुद्रा का इतिहास अत्यंत पुराना और समृद्ध है। यह विभिन्न सभ्यताओं और शासकों के योगदान का परिणाम है। प्रारंभिक पंचमार्क सिक्कों से लेकर आधुनिक भारतीय रुपये तक, भारतीय मुद्रा प्रणाली ने एक लंबा सफर तय किया है। इस यात्रा में विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों का योगदान रहा है, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को आज के स्वरूप में ढाला है।