गुरु और माता पिता सदैव पूजनीय – महेश्वर दास पयहारीजी महाराज


दावथ /रोहतास (चारोधाम मिश्रा):- माता-पिता और गुरु मनुष्यों के द्वारा सर्वदा पूजनीय होते हैं। जिसके द्वारा इन तीनों का समुचित आदर नहीं किया जाता है, उसकी समस्त क्रियाएं असफल ही होती हैं।पदम पुराण में कहा गया है कि पिता धर्म है, पिता स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं। जिसकी सेवा और सद्गुणों से माता-पिता संतुष्ट रहते हैं, उस संतान को प्रतिदिन गंगा-स्नान का फल मिलता है। माता सर्वतीर्थमयी है और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है। गुरु सदैव कल्याण करने वाले है।अत: सभी प्रकार से माता-पिता गुरु का पूजन अर्थात उनकी सेवा करनी चाहिए।ये बातें 1008 श्री महेश्वर दास त्यागी जी महाराज ने परमेश्वर पूरी परमानंद धाम मालियाबाग में अपने शिष्यों को सम्बोधन के दौरान कही।अवसर था सद गुरु श्री श्री 108 हनुमान देव स्वामी जी पयहारीजी के समाधी महोत्सव। वही उपेन्द्र बाबा ने कहा की आज संतान माता-पिता की संपत्ति पर तो अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती है और अपने जन्मदाता पालक को बोझ मान रही है। यह सोच अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। जिन माता-पिता ने अपने जीवन में पुत्रों-पुत्रियों का पालन पोषण, शिक्षा, विवाह आदि किया, तन-मन-धन से उनको आगे बढऩे का अवसर दिया, वे अब मिल कर भी माता-पिता की सेवा करने से मुंह मोड़ रहे हैं। इससे अधिक दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। वे यह नहीं समझते कि ईश्वर सब कुछ देखता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल अवश्य मिलता है। सभी धार्मिक ग्रंथों का सार यही है कि वृद्ध माता-पिता को प्रत्यक्ष देवता मानकर सभी प्रकार से उनकी सेवा करो और जीवन में सुखी रहने का आशीर्वाद प्राप्त करो। माता-पिता एवं परिवार की दुर्गति से रक्षा करने वाला ही वास्तव में संतान कहलाने का अधिकारी है। अत: वृद्ध माता-पिता की इच्छा का सम्मान करें। अपनी व्यस्त दिनचर्या में भी उनके साथ बातचीत करें। उनके स्वास्थ्य, सुपाच्य आहार आदि के विषय में चर्चा करते रहें। उनके प्रति सदैव सम्मान रखें।
पारिवारिक समस्याओं पर उनसे परामर्श लेने में संकोच न करें। धार्मिक स्थान, मंदिर, तीर्थ स्थान आदि पर जाने के लिए पूछते रहें। कभी उनको अकेला न छोड़ें। उनकी आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखें। कहने का तात्पर्य यह है कि हर प्रकार से माता-पिता की सेवा का ध्यान रखें और उनको प्रसन्न रखने का प्रयास करें। सभी कार्यक्रम उपेन्द्र बाबा के देख रेख में ही सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर हवन पूजा आरती सहित भव्य भंडारे का भी आयोजन किया गया।मौके पर सैकड़ों शिष्य सहित गोल्डन प्रिय उपस्थित थे।

